आगरा बार-बार आते थे जाकिर हुसैन : वाह ताज! कहने वाले की ताजमहल से जुड़ी ये हसरत रह गई अधूरी

UPT | उस्ताद जाकिर हुसैन

Dec 16, 2024 17:16

ताजमहल के प्रति अटूट प्रेम और उसकी सुंदरता के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करने वाले उस्ताद जाकिर हुसैन के लिए आगरा हमेशा खास रहा...

Agra News : ताजमहल के प्रति अटूट प्रेम और उसकी सुंदरता के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करने वाले उस्ताद जाकिर हुसैन के लिए आगरा हमेशा खास रहा। 'वाह ताज!' कहने वाले विश्व प्रसिद्ध तबला वादक का सपना था कि वह ताजमहल के साये में अपनी प्रस्तुति दें, लेकिन उनका यह सपना अधूरा ही रह गया। 15 दिसंबर को 11 सीढ़ी पार्क में ताजमहल के साए में कार्यक्रम चाहते थे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।  स्ताद जाकिर हुसैन के निधन से संगीत जगत को गहरी क्षति हुई है जिसे कभी भी पूरा नहीं किया जा सकेगा। वह पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैसे सम्मान के साथ-साथ तीन बार ग्रैमी अवार्ड से नवाजे गए थे। वह 40 साल से ताजमहल और आगरा से जुड़े हुए थे और हमेशा इस शहर में आने और अपने तबले का जादू दिखाने की इच्छा रखते थे।

सुधीर नारायण का भावुक संदेश
आगरा के प्रसिद्ध गजल गायक सुधीर नारायण ने उस्ताद जाकिर हुसैन को याद करते हुए बताया कि 15 दिसंबर को उस्ताद ताजमहल के पास 11 सीढ़ी पार्क में एक विशेष कार्यक्रम करना चाहते थे। दोनों के बीच तारीख तय हो गई थी, लेकिन किसी कारणवश वह कार्यक्रम संभव नहीं हो सका। अगले साल आगरा आने का उस्ताद ने वादा किया था, लेकिन नियति ने कुछ और ही ठान रखा था।



ताजमहल से गहरा जुड़ाव
उस्ताद जाकिर हुसैन का ताजमहल से विशेष प्रेम था। 5 फरवरी 2019 को वह अपनी पत्नी एंटोनियो मिनेकोला और मित्र जूडी के साथ ताजमहल का दीदार करने आगरा आए थे। इसके बाद उन्होंने आगरा किला और फतेहपुर सीकरी का भी भ्रमण किया था। सीकरी में उन्होंने चादर चढ़ाई थी। 2014 में उस्ताद जाकिर हुसैन ने ताज नेचर वॉक में "जश्न ए ताज" नामक कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति दी थी। उस दिन उनके तबले की थाप से राधे कृष्ण की आवाज गूंज उठी थी और हजारों दर्शकों ने उनकी कला को सराहा था। वह कार्यक्रम आगरा में तबला संगीत की एक ऐतिहासिक प्रस्तुति बन गया।

आईटीसी के संगीत सम्मेलन में हर साल शामिल होते थे
उस्ताद जाकिर हुसैन का ताजमहल से जुड़ाव इतना गहरा था कि 1980 के दशक में जब भी आईटीसी ग्रुप ने आगरा में संगीत सम्मेलन आयोजित किया वह हर साल इसमें शामिल होते थे। यह सिलसिला 1992 तक चलता रहा। उस्ताद जाकिर हुसैन के जाने से संगीत की दुनिया में एक रिक्तता आ गई है, लेकिन उनकी कला और योगदान हमेशा याद किया जाएगा।

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