69000 शिक्षक भर्ती : सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ेंगे अभिषेक मनु सिंघवी, अभ्यर्थियों ने फीस के लिए मांगी आर्थिक मदद

UPT | 69000 Teacher Recruitment

Sep 13, 2024 00:09

अभ्यर्थियों ने कहा कि इस पर हमारी जिंदगी ही दांव पर नहीं लगी है, बल्कि उत्तर प्रदेश और देश के सभी पिछड़े, दलित वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षण बचाने की जिम्मेदारी भी हम सबके ऊपर है।

Lucknow News : प्रदेश में 69000 शिक्षक भर्ती मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के कारण आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की नियुक्ति लटक गई है। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को नए सिरे से मेरिट सूची जारी करने का आदेश दिया था। सरकार ने इस पर सहमति भी दी थी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आरक्षित अभ्यर्थी एक बार फिर वहीं पर आ गए हैं, जहां से उनकी लड़ाई शुरू हुई थी। सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 23 सितंबर को होनी है। अभ्यर्थियों का कहना है​ कि कोर्ट में लड़ाई लड़ने के लिए आर्थिक रूप से मजबूत होना बेहद जरूरी है। उनके सामने पहले से आर्थिक संकट है, ऐसे में वह लोगों से मदद की अपील कर रहे हैं।

हाईकोर्ट से जीतने के बावजूद न्याय नहीं मिला
अभ्यर्थियों का कहना है कि 69000 शिक्षक भर्ती में आरक्षण घोटाले की सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई में सामाजिक न्याय को चाहने वाले सभी लोगों की जरूरत है। आरक्षण को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाने की हम सभी लगातार चार सालों से अपनी लड़ाई सड़क और कोर्ट में लड़ रहे हैं। हाईकोर्ट से जीतने के बावजूद भी हमें न्याय नहीं मिला। अब हमें सुप्रीम कोर्ट में फंसा दिया गया है।

नौकरी के साथ बताई सामाजिक और आरक्षण बचाने की लड़ाई
आरक्षित अभ्यर्थी अमरेंद्र पटेल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के महंगे वकीलों की फीस जुटा पाना हम लोगों के लिए संभव नहीं है। लोगों के सहयोग के बिना ये संभव नहीं है। इस मामले में दूसरे पक्ष के कई महंगे वकीलों के सामने कम से कम टॉप मोस्ट एक सीनियर एडवोकेट खड़ा करना जरूरी है। ये तभी हो पाएगा, जब समाज के लोग आर्थिक रूप से मदद करें। ये लड़ाई सामाजिक लड़ाई भी है और आने वाली पीढ़ियों के लिए आरक्षण बचाने वाली लड़ाई है। हमने इस लड़ाई में अपना सब कुछ झोंक दिया है।

सुप्रीम कोर्ट में 23 सितंबर को अंतिम सुनवाई
अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में इस लड़ाई में अपना पक्ष मजबूती से रखने के लिए अब देश के चर्चित वकील अभिषेक मनु सिंघवी को हायर किया है। अभ्यर्थी उनकी फीस की व्यवस्था के लिए लोगों से आर्थिक मदद की अपील कर रहे हैं। उनका कहना है कि हमारा केस 23 सितंबर को लगा है, जो की अंतिम सुनवाई का दिन है। अभ्यर्थियों ने कहा कि इस पर हमारी जिंदगी ही दांव पर नहीं लगी है, बल्कि उत्तर प्रदेश और देश के सभी पिछड़े, दलित वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षण बचाने की जिम्मेदारी भी हम सबके ऊपर है। उन्होंने कहा कि हम लोग यदि सुप्रीम कोर्ट में हार गए तो आने वाले समय में बेसिक शिक्षा महकमे या किसी भी अन्य विभागों में हमारे वर्ग का आरक्षण नहीं बचेगा। वास्तव में 69000 शिक्षक भर्ती उत्तर प्रदेश ही नहीं देश में सबसे बड़े आंदोलन में से एक है। इसलिए लोग इसमें आर्थिक रूप से सहयोग करें।

सत्तापक्ष से विरोधी दलों का मिला साथ, अभ्यर्थी बोले- सिर्फ आश्वासन से नहीं बनेगी बात
उधर इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का इंतजार कर रही है। अंतिम सुनवाई के बाद मामले में स्थिति साफ होगी। इसलिए प्रदेश सरकार जल्दबाजी में फैसला नहीं करना चाहती। हाईकोर्ट से उसे नई सूची जारी करने का वक्त मिला है। ऐसे में सरकार का प्रयास है कि इस बार ऐसा समाधान किया जाए, जिससे फिर कोई सवाल नहीं उठे। सरकार की ओर से आरक्षण के नियमों का पालन करने की भी बात कही गई है। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संदीप सिंह, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी सभी आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों से उनके साथ खड़े होने का भरोसा दिला चुके हैं। एनडीए के सहयोगी दल सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर, निषाद पार्टी के डॉ. संजय निषाद, अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल, प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री आशीष पटेल भी आरक्षित अभ्यर्थियों की मांग का लगातार समर्थन कर रहे हैं।

इसके अलावा आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष और सांसद चंद्रशेखर आजाद ने भी सुप्रीम कोर्ट से आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के समर्थन में अपील की है। वहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी इस मामले में भाजपा सरकार पर हमलावर बने हुए हैं। अब बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी इन अभ्यर्थियों के साथ खड़े होने का भरोसा दिलाया है। इस तरह देखा जाए तो सत्तापक्ष से लेकर विरोधी दल सभी आरक्षित अभ्यर्थियों के समर्थन में बयान दे रहे हैं। वहीं प्रदर्शनकारी अभ्यर्थियों का कहना है कि हमें अब तक सिर्फ आश्वासन ही मिला है। हम चार वर्षों से सड़क पर अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं।

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