बहराइच में बुलडोजर कार्रवाई : हाईकोर्ट ने नोटिस का जवाब देने को 15 दिन का दिया वक्त, 23 अक्टूबर को अगली सुनवाई

UPT | Bahraich Violence

Oct 20, 2024 20:32

अहम बात है कि न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से ध्वस्तीकरण पर रोक नहीं लगाई है। हालांकि अदालत ने ये भी कहा कि उसके पास यह मानने का कोई कारण नहीं है कि उत्तर प्रदेश सरकार ध्वस्तीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करेगी। वहीं खंडपीठ ने एक एसोसिएशन की ओर से जनहित याचिका दायर करने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि ऐसी याचिकाओं के दूरगामी परिणाम होंगे।

Lucknow News : बहराइच हिंसा के आरोपियों के मकानों पर बुलडोजर एक्शन का मामला हाईकोर्ट की चौखट पर पहुंच गया है। इस मामले में शुक्रवार की शाम 23 मकानों पर अतिक्रमण हटाने का नोटिस चस्पा किए जाने के बाद से लोगों में हड़कंप मच गया था। शनिवार सुबह से ही लोग अपना अतिक्रमण हटाने में जुटे थे, वहीं रविवार को इस मामले में दायर पीआईएल पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने यूपी सरकार की ओर जारी किए गए तोड़फोड़ नोटिस का जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया है। इस प्रकरण में अब 23 अक्टूबर को सुनवाई होगी। 

23 अक्टूबर को स्थिति होगी स्पष्ट
इसे बाद बहराइच हिंसा के आरोपियों के घर पर फिलहाल बुलडोजर एक्शन रोका जा सकता है। हालांकि इसे लेकर अधिकारियों की ओर से स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा जा रहा है। माना जा रहा है कि हाईकोर्ट में मामले को लेकर स्थिति साफ होने के बाद ही लोक निर्माण विभाग के अधिकारी आगे की कार्रवाई करेंगे। 



आरोपियों की संपत्तियों को ध्वस्त करने की प्रस्तावित कार्रवाई को चुनौती 
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रविवार को एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स के उपाध्यक्ष उत्तर प्रदेश पूर्वी, सैयद महफूजुर रहमान के माध्यम से दायर जनहित याचिका पर रविवार को सुनवाई की। इसमें बहराइच हिंसा मामले में आरोपियों की संपत्तियों को ध्वस्त करने की उत्तर प्रदेश सरकार की प्रस्तावित कार्रवाई को चुनौती दी गई है। प्रकरण में जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने प्रभावित लोगों को यूपी सरकार की ओर जारी किए गए तोड़फोड़ नोटिस का जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया। ये समय रविवार से माना जाएगा। इससे पहले 18 अक्टूबर को घरों पर चिपकाए गए नोटिस में कब्जेदारों से तीन दिन के भीतर नोटिस का जवाब देने को कहा गया था।

आदेश में स्पष्ट रूप से ध्वस्तीकरण पर रोक नहीं लगाई
अहम बात है कि न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से ध्वस्तीकरण पर रोक नहीं लगाई है। हालांकि अदालत ने ये भी कहा कि उसके पास यह मानने का कोई कारण नहीं है कि उत्तर प्रदेश सरकार ध्वस्तीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करेगी। वहीं खंडपीठ ने एक एसोसिएशन की ओर से जनहित याचिका दायर करने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि ऐसी याचिकाओं के दूरगामी परिणाम होंगे। जनहित याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार और उसके लोक निर्माण विभाग को मुस्लिम समुदाय से संबंधित आरोपी व्यक्तियों की संपत्तियों को ध्वस्त करने से रोकने के निर्देश देने की मांग की गई थी।

पीड़ितों ने प्रस्तावित ध्वस्तीकरण नोटिस के खिलाफ न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़ितों ने प्रस्तावित ध्वस्तीकरण नोटिस के खिलाफ न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया था और ऐसी स्थिति में एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका का कोई मतलब नहीं था। इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने यह तर्क देने की कोशिश की कि सरकार की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के 17 सितंबर के अंतरिम आदेश के विपरीत है। इसमें कहा गया था कि देश में सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों या जलाशयों पर अतिक्रमण को छोड़कर उसकी अनुमति के बिना कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए। इस पर अदालत ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि उसके पास यह मानने का कोई कारण नहीं है कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करेगी।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश पहले से स्पष्ट
अदालत ने कहा कि जहां तक ​​निर्माण को ध्वस्त करने का सवाल है, सर्वोच्च न्यायालय 17 सितंबर, 2024 को पहले ही आदेश पारित कर चुका है। हमारे पास यह मानने का कोई कारण नहीं है कि यूपी सरकार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश का पालन नहीं करेगी। यह स्पष्ट करते हुए कि वह विवादित नोटिसों में हस्तक्षेप नहीं करेगी, खंडपीठ ने राज्य के वकील को संबंधित सड़क पर निर्माण के लिए स्वीकृत मानचित्रों की संख्या निर्दिष्ट करने के लिए तीन दिन का समय दिया। 

नोटिस वाले लोग कोर्ट में दाखिल करें अपना जवाब
न्यायालय ने यह भी कहा कि वह उम्मीद करता है कि जिन व्यक्तियों को नोटिस जारी किया है, वे कार्यवाही में भाग लेंगे और अपना जवाब दाखिल करेंगे। इस मौके पर याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि पिछले कुछ दिनों में बहराइच में स्थिति काफी खराब रही है। दुर्भावनापूर्ण अभियोजन के डर से प्रभावित व्यक्तियों, आरोपियों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ा और अब उन्हें कार्यवाही में भाग लेने के लिए कहा जा रहा है। वकील की इस दलील को सुनने के बाद न्यायालय ने प्रभावित व्यक्तियों को सड़क नियंत्रण अधिनियम 1964 के तहत जारी नोटिसों पर जवाब दाखिल करने के लिए 15 दिन का समय दिया।

पीडब्ल्यूडी की नोटिस में निर्माण को बताया गया अवैध
दरअसल विवादित पीडब्ल्यूडी नोटिस में कहा गया है कि ये निर्माण अवैध हैं, क्योंकि इन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क के केंद्रीय बिंदु से 60 फीट के भीतर बनाया गया है, जो कि स्वीकार्य नहीं है। अधिकारियों का कहना है कि महराजगंज में सड़कें चौड़ी करने के लिए अतिक्रमण हटाया जा रहा है। नोटिस में कहा गया है कि यदि निर्माण कार्य बहराइच के जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति या विभागीय पूर्व अनुमोदन से किया गया है, तो ऐसी अनुमति की मूल प्रति तत्काल उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसके अलावा, नोटिस में कब्जाधारियों से तीन दिन के भीतर 'अवैध' निर्माण हटाने को कहा गया है। इसमें कहा गया है कि ऐसा न करने पर प्राधिकारियों द्वारा पुलिस और प्रशासन की सहायता से निर्माण हटा दिया जाएगा तथा निर्माण हटाने पर होने वाले खर्च की वसूली राजस्व कार्यवाही के माध्यम से की जाएगी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सौरभ शंकर श्रीवास्तव तथा अधिवक्ता मोहम्मद तैय्यब उपस्थित हुए।

अब तक एक हजार लोगों के खिलाफ केस दर्ज, 88 भेजे गए जेल 
बहराइच में विगत 13 अक्टूबर को मूर्ति विसर्जन के दौरान दो समुदाय के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इस दौरान रामगोपाल मिश्रा की गोली मारकर हत्या कर दी गई। जिसके बाद भीड़ आक्रोशित हो गई। वहीं अगले दिन 14 अक्टूबर को आक्रोशित भीड़ ने जमकर आगजनी की घटना को अंजाम दिया। इस मामले में मुख्य आरोपी अब्दुल हमीद, फहीम, अफजल, अफजल और रिंकू उर्फ सरफराज को शुक्रवार को गिरफ्तार किया जा चुका है। सीजेएम कोर्ट से पांचों आरोपियों को 14 दिनों के लिए रिमांड पर भेज गया है। प्रकरणा में अब तक 11 एफआईआर दर्ज की गई हैं, जिनमें लगभग 1000 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है और 88 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है।

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