मानवता शर्मसार : चार दिन की बच्ची को बस में लावारिस छोड़ा, महिला सिपाहियों ने निभाया मां का फर्ज

UPT | चार दिन की बच्ची को बस में लावारिस छोड़ा।

Sep 21, 2024 14:32

राजधानी में मानवता को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है। चारबाग बस अड्डे पर खड़ी रोडवेज बस में कोई चार दिन की बच्ची को लावारिस छोड़ गया।

Lucknow News : राजधानी में मानवता को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है। चारबाग बस अड्डे पर खड़ी रोडवेज बस में कोई चार दिन की बच्ची को लावारिस छोड़ गया। बच्ची के रोने की आवाज सुनकर बस चालक की उस पर नजर पड़ी। उसे अकेला देखकर चालक के होश उड़ गए। नवजात को तौलिया से लपेटा गया था। पास में ही दूध की बोतल रखी थी। बस चालक ने पास के पुलिस पिंक बूथ को सूचना दी। पुलिस बच्ची को लावारिस छोड़ने वालों की पहचान के लिए बस अड्डे सहित आसपास के सीसीटीवी फुटेज खंगाल रही है। 

तौलिया में लिपटी मिली बच्ची
अयोध्या डिपो की रोडवेज बस के कंडक्टर ने बताया कि शुक्रवार रात गोरखपुर से आलमबाग होते हुए चारबाग बस अड्डे पहुंचे। इसके बाद भोजन करने चले गए। खाना खाने के बाद वापस लौटे तो बस में नवजात की रोने की आवाज आ रही थी। अंदर जाकर देखा तो सीट पर तौलिया में लिपटी एक बच्ची थी। यह बच्ची आलमबाग में नहीं थी। चारबाग बस अड्डे पर कोई इस बच्ची को बस में छोड़कर चला गया। इसकी सूचना पास में स्थित पु​लिस पिंक बूथ पर दी।


 
महिला सिपाहियों ने कलेजे से लगाया
पिंक बूथ पर तैनात महिला सिपाही सपना गिरी और किरन बच्ची की मां की भूमिका में नजर आईं। उन्होंने बच्ची का डायपर बदला और गोद में उठाकर कलेजे से लगा लिया। नवजात को दुलारा और झटपट बोतल में दूध भरकर बच्ची को पिलाया। सूचना मिलने पर चाइल्ड लाइन की टीम पहुंची। टीम जब बच्ची को अपने साथ लेकर जाने लगी दोनों महिला सिपाहियों की आख से आसूं झलक पड़े। 

खंगाले जा रहे सीसी कैमरे 
कॉर्डिनेटर जया ने बताया कि हमारी टीम बच्ची की जांच कराने के लिए झलकारी बाई अस्पताल ले गई। वह एकदम स्वस्थ्य है। फिलहाल बच्ची की देखभाल की जा रही है। वहीं एडीसीपी मध्य मनीषा सिंह ने बताया कि सीसीटीवी कैमरे की मदद से पता लगाया जा रहा है कि बच्ची को कौन छोड़कर गया है।

सोच बदलने की कोशिशों में कमी
सरकार एक तरफ बेटियों के लिए तमाम योजनाएं चला रही है। वहीं दूसरी ओर अभी भी बच्चियों को जिंदा मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। चारबाग बस अड्डे पर लावारिस मिली नवजात समाज की सोच बदलने को लेकर जारी कोशिशों में अभी भी कुछ कमी रहने की गवाही दे रही है। 
 

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