Harela Festival : लोकपर्व ‘हरेला’ से आज यहां हुई सावन की शुरुआत, पर्यावरण संरक्षण का मिलता है संदेश, जानें विशेषता

UPT | Harela Festival

Jul 16, 2024 15:08

उत्तर प्रदेश समेत देश के अन्य राज्यों के लोगों के लिए सावन माह की शुरुआत भले ही इस बार 22 जुलाई से हो रही हो। लेकिन, उत्तराखंड के लोग हरेला से सावन की शुरुआत मानते हैं। इसलिए उनका सावन माह मंगलवार से शुरू हो गया है।

Short Highlights
  • प्रकृति पूजन को समर्पित है हरेला, पूरे देश में देवभूमिवासी मना रहे पर्व
  • बुजुर्ग खास अंदाज में देते हैं खुशहाली की दुआएं
Lucknow News : चिलचिलाती गर्मी से जूझते वक्त हर किसी को सावन के महीने का इंतजार होता है। वहीं धार्मिक लिहाज से भी सावन के महीने का बड़ा महत्व है। पंचांग के मुताबिक साल के पांचवे महीने को श्रावण माह कहा जाता है। इस महीने में धार्मिक कार्यों का पुण्य कई गुना मिलता है। खासतौर से यह पूरा माह शिव आराधना के लिए बेहद अहम माना गया है। वहीं इसी सावन से जुड़ा है लोक पर्व हरेला, जिसे मंगलवार को उत्तर प्रदेश में रहने वाले उत्तराखंड के मूल निवासी बेहद हर्षोल्लास के साथ मना रहे हैं। वास्तव में हरेला सुख, समृद्धि, शांति एवं पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है।

लोकपर्व हरेला है बेहद खास
उत्तराखंड भले ही पृथक राज्य बनने के बाद भौगोलिक रूप से आज उत्तर प्रदेश से अलग हो। लेकिन, देवभूमि के लोग बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं। दोनों प्रदेशों की संस्कृति, तीज-त्योहारों और यहां रहने वाले लोगों ने एक-दूसरे को बेहद अटूट रिश्ते से जोड़ा हुआ है। लोकपर्व हरेला इन्हीं में से एक है। 

अन्य राज्यों में 22 जुलाई से सावन का शुभारंभ
उत्तर प्रदेश समेत देश के अन्य राज्यों के लोगों के लिए सावन माह की शुरुआत भले ही इस बार 22 जुलाई से हो रही हो। लेकिन, उत्तराखंड के लोग हरेला से सावन की शुरुआत मानते हैं। इसलिए उनका सावन माह मंगलवार से शुरू हो गया है। एक ही धर्म से जुड़े होने के बावजूद अलग-अलग तिथियों में धार्मिक माह की शुरुआत और उसकी मान्यता देश की धार्मिक रीतियों की विविधता को प्रदर्शित करता है।

वर्ष में एक से अधिक बार मनाया जाता है हरेला
दिलचस्प बात है कि कोई भी त्योहार साल में जहां एक बार आता है, वहीं हरेला के साथ ऐसा नहीं है। देवभूमि से जुड़े कुछ लोगों के यहां चैत्र, श्रावण और आषाढ़ की शुरुआत होने पर इस पर्व को मनाया जाता है। इस तरह वर्ष में तीन बार इस पर्व की खुशियां मनाई जाती है। वहीं कहीं एक बार मनाने की परंपरा है। इनमें सबसे अधिक महत्व सावन के पहले दिन पड़ने वाले हरेला पर्व का होता है, क्योंकि ये सावन की हरियाली का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से सावन की शुरुआत होती है। पूरा माहौल धार्मिक हो जाता है और पार्थिव शिवलिंग पूजा के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। 

खास तरीके से बोये जाते हैं अन्न के बीज 
हरेला शब्द की उत्पत्ति हरियाली से हुई है। हरेला के त्योहार से नौ दिन पहले घर के मंदिर या गांवों के देवालयों के अन्दर सात प्रकार के अन्न जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट को टोकरी में रोपित किया जाता है। इससे लिये एक विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है। पहले टोकरी में एक परत मिट्टी की बिछाई जाती है, फिर इसमें बीज डाले जाते हैं। इसके बाद फिर से मिट्टी डाली जाती है, फिर से बीज डाले जाते हैं, यही प्रक्रिया पांच-छह बार अपनाई जाती है।

दसवें दिन काटा जाता है हरेला
इस बात का खास ध्यान रखा जाते है कि इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाए। आमतौर मंदिर या किसी कमरे के भीतर इसे रखा जाता है। प्रतिदिन सुबह पानी से सींचा जाता है। नौवें दिन इनकी एक स्थानीय वृक्ष की टहनी से गुड़ाई की जाती है और दसवें यानी की हरेला के दिन इसे काटा जाता है। मंगलवार को उत्तराखंड के मूल निवासियों ने इस परंपरा को निभाया। वहीं कहीं कही हरेला को नौवें दिन काटने की परंपरा है।

इस तरह दिया जाता है शुभाशीष
हरेला काटने के बाद घर के बुजुर्ग इसे तिलक-चन्दन-अक्षत से अभिमंत्रित करते हैं, जिसे हरेला पतीसना कहा जाता है। इसके बाद इसे देवता को अर्पित किया जाता है। इसके बाद घर की बुजुर्ग महिला सभी सदस्यों को हरेला लगाती हैं। लगाने का अर्थ यह है कि हरेला सबसे पहले पैर, फिर घुटने, फिर कन्धे और अंत में सिर में रखा जाता है और आशीर्वाद स्वरुप यह पंक्तियां, ‘जी रये, जागि रये…धरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये…सूर्ज जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो..दूब जस फलिये, सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये’ बोली जाती है। मंगलवार को उत्तराखंड मूल के परिवारों में यह शब्द बार-बार सुनाई देते रहे।

जीवन में खुशहाली का प्रतीक है हरियाली में दी जाने वाली शुभकामना
इनका अर्थ है कि हरियाला तुझे मिले, जीते रहो, जागरूक रहो, पृथ्वी के समान धैर्यवान, आकाश के समान उदार बनो, सूर्य के समान तेजस्वी, सियार के समान बुद्धि हो, दूर्वा के तृणों के समान पनपते हुए और इतने दीर्घायु हो कि दंतहीन होने पर चावल भी पीस कर खाना पड़े और शौच जाने के लिए लाठी का उपयोग करना पड़े, तब भी तुम जीवन का आनन्द ले सको। बड़े बुजुर्गों की ये दुआएं छोटों के जीवन में खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक बनती हैं।

परिवार की एकता का प्रतीक है हरेला
हरेला का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि अगर परिवार का कोई सदस्य त्योहार के दिन घर में मौजूद न हो, तो उसके लिए बकायदा हरेला रखा जाता है और जब भी वह घर पहुंचता है तो बड़े-बजुर्ग उसे हरेला से पूजते हैं। वहीं कई परिवार इसे अपने घर के दूरदराज के सदस्यों को आज भी कूरियर के जरिए पहुंचाते हैं। एक अन्य विशेष बात है कि जब तक किसी परिवार का विभाजन नहीं होता है, वहां एक ही जगह हरेला बोया जाता है, चाहे परिवार के सदस्य अलग-अलग जगहों पर रहते हों। परिवार के विभाजन के बाद ही सदस्य अलग हरेला बो और काट सकते हैं। इस तरह से आज भी इस पर्व ने कई परिवारों को एकजुट रखा हुआ है। इसके साथ ही इस दिन शिव-परिवार की मूर्तियां भी गढ़ी जाती हैं, जिन्हें डिकारे कहा जाता है। शुद्ध मिट्टी की आकृतियों को प्राकृतिक रंगों से शिव-परिवार की प्रतिमाओं का आकार दिया जाता है और इस दिन उनकी पूजा की जाती है।

देवभूमि के सावन की अलग शुरुआत के पीछे मान्यता
देश भर में सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू हो रहा है। लेकिन, उत्तराखंड में 16 जुलाई से सावन के पवित्र माह की शुरुआत के पीछे यहां की अपनी पंचांग व्यवस्था है। दरअसल उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और नेपाल सावन बाकी राज्यों से अलग होता है। देश के उत्तर मध्य और पूर्वी भागों में पूर्णिमा के बाद नए हिंदू माह की शुरुआत होती है। इस पंचांग व्यवस्था में उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र के अलावा उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्य आते हैं। इसलिए उनके सावन पूर्णिमा से शुरू होकर पूर्णिमा के आसपास खत्म होते हैं। वहीं उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र, नेपाल और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में सौर पंचांग के अनुसार महीने शुरू और खत्म होते हैं। यानी जब सूर्य भगवान एक राशि से दूसरी राशि में जाते हैं, तब नए माह की शुरुआत होती है।

इन तारीख में होती है सावन की शुरुआत
सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। यह संक्रांति हमेशा महीनों के बीच में पड़ती है। इसलिए प्रति माह संक्रांति 15-16 या 17 तारीख के आसपास पड़ती है। इसीलिए हमेशा उत्तराखंड का सावन का महीना 16 या 17 जुलाई के आसपास से शुरू होकर 15 या 16 अगस्त को खत्म हो जाता है। 

प्रकृति पूजन और पर्यावरण संरक्षण को समर्पित है लोक पर्व हरेला
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धा​मी ने सभी देवभूमिवासियों को मंगलवार को हरेला पर्व की शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि आप सभी को हरियाली व सुख-समृद्धि के प्रतीक उत्तराखंड के पौराणिक लोकपर्व हरेला की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। जी रया, जागि रया..फूल जैसा खिली रया.. यौ दिन यौ मास, सभै भेटने रया। उन्होंने कहा कि प्रभु से प्रार्थना करता हूं कि आप सभी के जीवन में सुख, समृद्धि एवं खुशहाली बनी रहे। सीएम धामी ने लोगों से प्रकृति पूजन और पर्यावरण संरक्षण को समर्पित लोक पर्व हरेला की परंपरा को आगे बढ़ाने व प्रकृति को हरा-भरा रखने का संकल्प लेेने की अपील की। उन्होंने लोगों को 'एक पेड़ मां के नाम' अभियान से जुड़कर अधिक से अधिक संख्या में पौधारोपण कर पर्यावरण को हरा-भरा बनाने के लिए प्रेरित किया। 

मेयर सुषमा खर्कवाल ने मनाया हरेला पर्व
लखनऊ की मेयर सुषमा खर्कवाल ने भी लोकपर्व हरेला को उत्साह से मनाया। उत्तराखंड की प्रकृति एवं संस्कृति को समर्पित लोकपर्व हरेला पर्व पर उनके कैंप-कार्यालय पर पर्वतीय महापरिषद लखनऊ महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष जानकी अधिकारी, महासचिव चित्रा कांडपाल और राधिका बोरा ने उन्हें हरेला लगाया। साथ ही उत्तराखण्डी खाद्य उपहार भेंटकर हरेला पर्व की बधाई एवं शुभकामनाएं दी।
 

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