Lucknow News : खून की बूंदों से होगी किडनी कैंसर की पहचान, एसजीपीजीआई को शोध में मिली कामयाबी

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Nov 14, 2024 09:39

डॉ. बसंत कुमार के अनुसार, नेफ्रो ब्लास्टोमा बच्चों की किडनी में पाया जाने वाला एक प्रकार का कैंसर होता है। यह अध्ययन ट्यूमर की पहचान और उसके विकास की प्रक्रिया पर केंद्रित था। ट्यूमर को बढ़ने के लिए अधिक मात्रा में रक्त की आवश्यकता होती है, और इस प्रक्रिया में खून के विशिष्ट तत्वों की भूमिका होती है।

Lucknow News : अब बच्चों में किडनी के कैंसर की पहचान मात्र खून की कुछ बूंदों से की जा सकती है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग ने इस दिशा में दो साल का गहन अध्ययन किया, जिसमें 40 बच्चों को शामिल किया गया। इस महत्वपूर्ण शोध से यह साबित हुआ है कि खून की सामान्य जांच से किडनी में कैंसर की उपस्थिति का पता चल सकता है। इस अध्ययन का निष्कर्ष जल्द ही सर्जन ऑफ इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक जर्नल में प्रकाशित होने जा रहा है।

कैंसर के उपचार और निदान के क्षेत्र में बड़ी खोज
पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष, डॉ. बसंत कुमार ने बताया कि इस अध्ययन को एम्स ऋषिकेश में आयोजित इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक सर्जन के राष्ट्रीय सम्मेलन में विशेष रूप से सराहा गया। विभाग की रिसर्च स्कॉलर, डॉ. पूजना कन्नेगंती ने इस शोध पत्र को प्रस्तुत किया और यूपी चक्रवर्ती सम्मान प्राप्त किया। यह विभाग के लिए गर्व का क्षण था और यह खोज कैंसर के उपचार और निदान के क्षेत्र में एक बड़ी प्रगति के रूप में देखा जा रहा है।



नेफ्रो ब्लास्टोमा: बच्चों में किडनी का कैंसर
डॉ. बसंत कुमार के अनुसार, नेफ्रो ब्लास्टोमा बच्चों की किडनी में पाया जाने वाला एक प्रकार का कैंसर होता है। यह अध्ययन ट्यूमर की पहचान और उसके विकास की प्रक्रिया पर केंद्रित था। ट्यूमर को बढ़ने के लिए अधिक मात्रा में रक्त की आवश्यकता होती है, और इस प्रक्रिया में खून के विशिष्ट तत्वों की भूमिका होती है।

ट्यूमर के लिए आवश्यक खून की भूमिका
अध्ययन के दौरान, जिन बच्चों की किडनी में ट्यूमर पाया गया, उनकी खून की रिपोर्ट में बेसिक फाइब्रोब्लास्ट ग्रोथ फैक्टर और वेस्कुलर इंडोथीलियल ग्रोथ फैक्टर बढ़े हुए मिले। इन बढ़े हुए फैक्टर्स से ट्यूमर की उपस्थिति का पता चला। इस शोध में ट्यूमर वाले और बिना ट्यूमर वाले बच्चों के खून की तुलना की गई, और यह स्पष्ट हुआ कि विशिष्ट ग्रोथ फैक्टर बढ़ने से ट्यूमर की पहचान की जा सकती है।

चिकित्सा टीम की भूमिका 
इस अध्ययन में एसजीपीजीआई के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के कई डॉक्टरों का योगदान रहा, जिनमें डॉ. विकास अग्रवाल, डॉ. रजनीकांत यादव, डॉ. विजय और डॉ. अंकुर प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त, लखनऊ की टीम में शामिल डॉ. प्रिया मैथ्यू, डॉ. पूजा प्रजापति, और डॉ. निशांत अग्रवाल को भी उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया है। इस शोध ने बच्चों के कैंसर निदान की प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

रिनल सेल कार्सिनोमा है किडनी कैंसर का मेडिकल नाम
किडनी कैंसर, जिसे चिकित्सकीय रूप से रिनल सेल कार्सिनोमा (RCC) कहा जाता है, एक प्रकार का कैंसर है जो किडनी की कोशिकाओं में विकसित होता है। यह रोग ज्यादातर वयस्कों को प्रभावित करता है, लेकिन बच्चों में भी इसका एक प्रकार होता है जिसे नेफ्रोब्लास्टोमा या विल्स ट्यूमर कहा जाता है। किडनी कैंसर के लक्षण, कारण, निदान, और उपचार की पूरी जानकारी नीचे दी गई है:

किडनी कैंसर के प्रकार
रिनल सेल कार्सिनोमा (RCC) :
यह सबसे सामान्य प्रकार है, जो किडनी के फिल्टरिंग ट्यूब्स में विकसित होता है।
ट्रांजिशनल सेल कार्सिनोमा : यह किडनी और मूत्रवाहिनी के जोड़ में उत्पन्न होता है।
विल्स ट्यूमर : बच्चों में पाया जाने वाला प्रकार, जो ज्यादातर 3 से 4 साल की उम्र में देखा जाता है।
किडनी सार्कोमा : एक दुर्लभ प्रकार, जो किडनी के संयोजी ऊतकों में उत्पन्न होता है।

किडनी कैंसर के लक्षण
  • पेशाब में खून आना (हेमट्यूरिया)
  • पीठ के एक तरफ दर्द
  • अचानक वजन कम होना
  • थकान और कमजोरी
  • लगातार बुखार
  • खून की जांच में एनीमिया (खून की कमी)
किडनी कैंसर के कारण
धूम्रपान :
धूम्रपान करने वालों में किडनी कैंसर का जोखिम दोगुना बढ़ जाता है।
मोटापा : मोटापा हार्मोनल असंतुलन उत्पन्न कर सकता है जो किडनी कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है।
उच्च रक्तचाप : उच्च रक्तचाप से प्रभावित लोग भी इस बीमारी के उच्च जोखिम पर होते हैं।
पारिवारिक इतिहास : अगर परिवार में किसी को किडनी कैंसर हुआ है तो यह जोखिम बढ़ा सकता है।
लंबे समय तक दर्द निवारक दवाओं का उपयोग : विशेष प्रकार की दवाइयों का लंबे समय तक सेवन कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकता है।

निदान प्रक्रिया
शारीरिक परीक्षण और चिकित्सा इतिहास :
डॉक्टर लक्षणों की जांच कर, शारीरिक परीक्षण और पूर्व चिकित्सा इतिहास की समीक्षा करते हैं।
अल्ट्रासाउंड : किडनी में गांठ या असामान्यता का पता लगाने के लिए।
सीटी स्कैन (CT Scan) और एमआरआई (MRI) : विस्तृत इमेजिंग से ट्यूमर की स्थिति और आकार की जानकारी मिलती है।
बायोप्सी : संदिग्ध ऊतक का परीक्षण कर कैंसर की पुष्टि की जाती है।
खून की जांच : इसमें एनीमिया या रक्त में उच्च कैल्शियम के स्तर की पहचान की जाती है।

उपचार के तरीके
नेफ्रेक्टॉमी :
किडनी को आंशिक या पूर्ण रूप से निकालना।
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी : छोटे चीरे के माध्यम से ट्यूमर को निकालने की विधि।
रेडियोथेरेपी : कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए उच्च ऊर्जा वाली किरणों का उपयोग।
कीमोथेरेपी : दवाओं के माध्यम से कैंसर कोशिकाओं को खत्म करना। हालांकि, किडनी कैंसर के मामलों में यह विधि कम प्रभावी होती है।
इम्यूनोथेरेपी : शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर से लड़ने के लिए प्रोत्साहित करने वाली दवाएं।
टार्गेटेड थेरेपी : विशेष दवाओं का उपयोग जो कैंसर की बढ़ती कोशिकाओं को निशाना बनाती हैं।

किडनी कैंसर से बचाव के उपाय
  • स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं।
  • धूम्रपान और अत्यधिक शराब का सेवन न करें।
  • नियमित व्यायाम करें।
  • संतुलित आहार का सेवन करें जिसमें फल, सब्जियां और कम वसा वाले खाद्य पदार्थ शामिल हों।
  • ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखें।

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