यूपी में शीतगृह संचालकों पर सख्त नियम : सड़ी सब्जियों के लिए बनाना होगा अलग प्लांट, अब बनानी होगी कंपोस्ट खाद

UPT | कोल्ड स्टोर में रखी सब्जियां

Nov 11, 2024 10:45

प्रदेश में अब निजी शीतगृह संचालकों के लिए नए और सख्त दिशा-निर्देश लागू किए जा रहे हैं। इसके तहत शीतगृह में रखी सड़ी-गली सब्जियों और आलू का निस्तारण वैज्ञानिक तरीके से किया...

Lucknow News : प्रदेश में अब निजी शीतगृह संचालकों के लिए नए और सख्त दिशा-निर्देश लागू किए जा रहे हैं। इसके तहत शीतगृह में रखी सड़ी-गली सब्जियों और आलू का निस्तारण वैज्ञानिक तरीके से किया जाएगा। अब इन सड़ी गली सब्जियों को न तो सड़क पर फेंका जा सकेगा और न ही गड्ढे में दबाया जाएगा। इसके बजाय शीतगृह संचालकों को सड़ी गली सामग्री से कंपोस्ट खाद तैयार करने के लिए एक अलग प्लांट स्थापित करना होगा। यह कदम सरकार ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश के बाद उठाया है ताकि पर्यावरण को बचाया जा सके और मिट्टी एवं भूजल की गुणवत्ता को संरक्षित किया जा सके।
 
वैज्ञानिक तरीके से होगा सड़ी गली सब्जियों का निस्तारण
प्रदेश के उद्यान विभाग के प्रमुख सचिव बीएल मीणा ने सभी जिलाधिकारियों को यह निर्देश दिया है कि शीतगृह संचालकों को सड़ी गली सब्जियों और आलू के निस्तारण के लिए दो महीने का समय दिया जाए। इस दौरान शीतगृहों में प्लांट स्थापित कर इनसे कंपोस्ट खाद तैयार की जाएगी। इसे विशेषज्ञों की निगरानी में किया जाएगा और किसानों को यह खाद उपलब्ध कराई जाएगी। इससे शीतगृह संचालकों को अतिरिक्त आमदनी भी होगी। शीतगृहों में सड़ी गली सब्जियों को नष्ट करने के तरीके पर अब पूरी तरह से नियंत्रण रखा जाएगा। इन सब्जियों को न तो खुले में फेंका जा सकेगा और न ही शीतगृह में ढेर किया जा सकेगा। इस निर्णय के पीछे मुख्य कारण यह है कि सड़ी गली सब्जियों का खुले में निस्तारण करने से मिट्टी में मौजूद धातुएं और रसायन प्रभावित हो रहे हैं। जिससे मिट्टी और भूजल की गुणवत्ता खराब हो रही है।

प्रदेश में शीतगृहों की स्थिति
प्रदेश में कुल 198 निजी शीतगृह हैं। जिनमें हर साल करीब 140 से 150 लाख मीट्रिक टन आलू और 50 लाख मीट्रिक टन अन्य सब्जियां स्टोर की जाती हैं। हालांकि इस बड़े पैमाने पर स्टोर किए जाने के बावजूद हर साल लगभग 2-3 फीसदी सब्जियां सड़ जाती हैं। इन सड़ी गली सब्जियों का निस्तारण कई शीतगृह संचालक न तो उचित तरीके से करते हैं और न ही पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए। कुछ संचालक इन सब्जियों को सड़कों के किनारे फेंकवा देते हैं, जबकि कुछ उन्हें गड्ढा खोदकर मिट्टी में दबा देते हैं। यह सब पर्यावरण के लिए हानिकारक साबित हो रहा था।

कंपोस्ट खाद बनाने के फायदे
सड़ी गली सब्जियों से कंपोस्ट खाद बनाने की प्रक्रिया न केवल पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि इससे शीतगृह संचालकों को अतिरिक्त आय का स्रोत भी मिलेगा। यह खाद किसानों को वितरित की जाएगी। जिससे किसानों को उर्वरक की कमी नहीं होगी और साथ ही साथ शीतगृह संचालकों को इससे आर्थिक लाभ भी होगा। इस प्रकार यह कदम दोनों पक्षों—किसानों और शीतगृह संचालकों—के लिए लाभकारी साबित होगा।

इन बातों पर भी देना होगा ध्यान
  • अमोनिया गैस रिसाव का प्रबंधन – शीतगृहों में अमोनिया गैस का रिसाव एक गंभीर सुरक्षा खतरा हो सकता है। इसके लिए आपदा प्रबंधन योजना तैयार की जाएगी।
  •  जनरेटर संचालन – शीतगृहों में जनरेटर की संचालन व्यवस्था दुरुस्त रखनी होगी और इसके लिए एक लॉगबुक तैयार करना होगा।
  • श्रमिक सुरक्षा – शीतगृहों में काम करने वाले श्रमिकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए हेलमेट, जूते और अन्य सुरक्षा उपकरणों की व्यवस्था की जाएगी। इसके अलावा, श्रमिकों के संपर्क नंबर भी दर्ज किए जाएंगे ताकि किसी भी आपात स्थिति में जल्दी संपर्क किया जा सके।
  • वर्षा जल संचयन – शीतगृहों में वर्षा जल संचयन प्रणाली लागू करनी होगी और भूजल प्राधिकरण के मानकों का पालन करना होगा।

कोल्ड स्टोर एसोसिएशन की प्रतिक्रिया
प्रदेश के कोल्ड स्टोर एसोसिएशन के अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल ने कहा कि सामान्यत: शीतगृहों में आलू और अन्य सब्जियां खराब नहीं होतीं। अगर कभी विपरीत परिस्थितियों में कुछ सब्जियां खराब हो जाती हैं, तो उनका निस्तारण कंपोस्ट के रूप में किया जाता है। हालांकि, सरकार द्वारा दिए गए नए निर्देशों का पालन पूरी तरह से किया जाएगा और नए आदेश के तहत जिला प्रशासन को स्थिति से अवगत कराया जाएगा।

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