UPPCL : निजीकरण के खिलाफ आज काली पट्टी बांधकर विरोध, कंसल्टेंट के विज्ञापन का विरोध, सवालों के घेरे में एनर्जी टास्क फोर्स

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Jan 13, 2025 08:52

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि पावर कारपोरेशन ने जिस जल्दबाजी से सबसे पहले मसौदे को मंजूरी कराई और अब एक नया मसौदा लेकर आ गया, इससे पूरी तरीके से गोलमाल की ​बात जाहिर हो रही है।

Lucknow News : दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (DVVNL) और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (PuVVNL) के निजीकरण के फैसले के खिलाफ यूपी में आज माहौल गरमाया हुआ है। उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) को चेतावनी देने के लिए सभी जगह बिजली कर्मचारी और अभियंता आज काली पट्टी बांधकर काम करेंगे। ऊर्जा संगठन इस लड़ाई को लेकर पहले से ही जनप्रतिनिधियों, किसान और उपभोक्ताओं के बीच ले जाकर उनका समर्थन हासिल करने में लगे हुए हैं।  

नियामक आयोग की मंजूरी के ​बगैर नहीं निकाला जा सकता कंसल्टेंट का विज्ञापन
इस बीच दक्षिणांचल व पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को पीपीपी मॉडल के तहत देने के लिए ट्रांजैक्शन एडवाइजर (कंसल्टेंट) के लिए विज्ञापन का विरोध शुरू होगया है। उपभोक्ता परिषद ने कहा इसे कानूनी तौर पर पूरी तरह गलत ठहरया है। संगठन ने कहा है कि बिना नियामक आयोग के अनुमति के ऐसा नहीं किया जा सकता है। साथ ही सबसे बड़ा सवाल है कि 5 दिसंबर 2024 को एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में पीपीपी मॉडल का मसौदा पहले ही पारित किया जा चुका है। उसको भी कंसल्टेंट ने ही बनाया था। 



एनर्जी टास्क फोर्स की विश्वसनीयता खत्म 
वह मसौदा पूरी तरह फेल हो गया, ऐसे में अब कैसे विश्वास किया जाए की एनर्जी टास्क फोर्स अब जो ट्रांजैक्शन एडवाइजर निकालने के लिए विज्ञापन जारी करने का आदेश दे रहा है, उसमें कोई गोलमाल नहीं है। उपभोक्ता परिषद ने कहा है कि वास्तव में एनर्जी टास्क फोर्स की विश्वसनीयता पूरी तरह खत्म हो गई है। संगठन ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि ऐसे में एनर्जी टास्क फोर्स के किसी भी प्रस्ताव पर कोई कार्रवाई न की जाए, क्योंकि आने वाले समय में यह सीएजी ऑडिट का बड़ा मुद्दा बनेगा।

सीएम से असंवैधानिक प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि पावर कारपोरेशन ने जिस जल्दबाजी से सबसे पहले मसौदे को मंजूरी कराई और अब एक नया मसौदा लेकर आ गया, इससे पूरी तरीके से गोलमाल की ​बात जाहिर हो रही है। मुख्यमंत्री को सरकार की छवि बचाने के लिए इस प्रकार की असंवैधानिक प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाते हुए उच्च स्तरीय जांच का आदेश दे देना चाहिए, जिससे प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का सरकार में विश्वास बना रहे। 

जांच का आदेश किया जाए जारी
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति की बात करते आए हैं। ऐसेे में जिस प्रकार से प्रदेश के 42 जनपदों को निजी क्षेत्र में देने के लिए रोज नए-नए प्रस्ताव सामने आ रहे हैं, उसे ये साबित हो रहा है कि बड़ा खेल करने में अफसर जुटे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप से ही सच्चाई उजागर हो सकती है। प्रकरण में तत्काल जांच का आदेश पारित करना बेहद जरूरी है। उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि संगठन का एक बार फिर ये कहना हैै कि पावर कारपोरेशन जिस प्रकार से ट्रांजैक्शन एडवाइजर निकालने के लिए हर तरह के संवैधानिक हथकंडे अपना रहा है, उससे साबित होता है की दाल में कुछ काला है।

पीपीपी मॉडल से 76 हजार नौकरियों पर खतरा, आरक्षण होगा खत्म
इस बीच निजीकरण के खिलाफ कर्मचारी और अभियंता संगठन आज काली पट्टी बांधकर अपनी ताकत दिखाने को तैयार हैं। ऊर्जा संगठनों का कहना है कि इस फैसले से 76,000 से अधिक कर्मचारियों की नौकरी खतरे में पड़ सकती है। अगर पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम निजी कंपनियों को सौंपे गए, तो पूरे प्रदेश में बिजली वितरण का निजीकरण हो जाएगा। इससे 50,000 संविदा कर्मियों और 26,000 नियमित कर्मचारियों की छंटनी की संभावना है। उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने कहा कि पीपीपी मॉडल का सीधा असर अभियंताओं के आरक्षण पर पड़ेगा। अभी तक यूपीपीसीएल प्रबंधन इस बात को स्पष्ट नहीं कर सका है कि आखिरकार निजीकरण से किसका हित होगा। उपभोक्ताओं को भी इससे फायदा मिलने वाला नहीं है। 
 

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