बुलंदशहर में गोमूत्र की बिक्री : महिलाओं की मुहिम से बढ़ रही आत्मनिर्भरता और आय, दूध के समान चला रहीं डेयरियां

UPT | बुलंदशहर में गोमूत्र की बिक्री

Dec 16, 2024 15:27

यहां दूध की तर्ज पर अब गोमूत्र भी डेयरियों पर बिक रहा है। खास बात यह है कि इस नवाचार की बागडोर महिलाओं के हाथों में है। जो महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से इसे संचालित कर रही हैं।

Bulandshahr News : उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में एक अनूठा प्रयोग ग्रामीण विकास और महिला सशक्तिकरण की दिशा में नई मिसाल पेश कर रहा है। यहां दूध की तर्ज पर अब गोमूत्र भी डेयरियों पर बिक रहा है। खास बात यह है कि इस नवाचार की बागडोर महिलाओं के हाथों में है। जो महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से इसे संचालित कर रही हैं। गोमूत्र की बिक्री और प्रोसेसिंग का यह मॉडल न केवल ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहा है, बल्कि किसानों को अतिरिक्त आय का जरिया भी प्रदान कर रहा है। एक गाय से रोजाना 10-15 लीटर तक गोमूत्र एकत्र किया जा रहा है। जिससे किसान 100-200 रुपये प्रतिदिन कमा रहे हैं।

दूध की तरह गोमूत्र का मूल्य निर्धारण
नरसेना क्षेत्र के भदौरी, भदौरा, नित्यानंदपुर नंगली, नरसेना, मवई और अन्य गांवों में महिला समूहों द्वारा गोमूत्र कलेक्शन सेंटर चलाए जा रहे हैं। यहां गोमूत्र का मूल्य उसकी ग्रेविटी (गुणवत्ता) के आधार पर निर्धारित किया जाता है। जैसे दूध की कीमत फैट के आधार पर तय होती है। गोमूत्र का दाम 10 से 20 रुपये प्रति लीटर तक है।
  
महिलाओं की बदली जिंदगी
स्याना तहसील के भदौरा गांव में कलेक्शन सेंटर चलाने वाली राजकुमारी ने बताया कि गोमूत्र की बिक्री से ग्रामीण महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम हो रही हैं। उन्होंने कहा, "हम महिलाएं अब न केवल अपने परिवार की आय बढ़ा रही हैं, बल्कि खुद को आत्मनिर्भर महसूस कर रही हैं।" नित्यानंदपुर नगली गांव की सुषमा देवी के अनुसार उनकी डेयरी पर हर दिन लगभग 200 लीटर गोमूत्र एकत्र किया जाता है। इसे बड़े ड्रमों में संग्रहित कर नरसेना स्थित ऑर्गेनिक फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी (FPO) में भेजा जाता है। यहां गोमूत्र को खरीदकर उससे ऑर्गेनिक खाद और कीटनाशक बनाए जाते हैं।

गोमूत्र से ऑर्गेनिक कृषि का विस्तार 
नरसेना ऑर्गेनिक फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी के मालिक डॉक्टर प्रवीण राणा ने बताया कि गोमूत्र से ऑर्गेनिक खाद और कीटनाशक तैयार किए जा रहे हैं। इन उत्पादों का उपयोग ऑर्गेनिक सब्जियां और खाद्य पदार्थ उगाने में किया जा रहा है। जिला प्रशासन भी इस नवाचार को प्रोत्साहन दे रहा है और सहकारी समितियों के माध्यम से गोमूत्र से बने उत्पादों को बाजार में बेचा जा रहा है। डॉ. राणा ने बताया, "पहले गोमूत्र केवल गोशालाओं से खरीदा जाता था लेकिन अब महिला समूहों की भागीदारी से इसे ग्रामीण स्तर पर बड़े पैमाने पर इकट्ठा किया जा रहा है। आने वाले समय में हम कलेक्शन सेंटर का दायरा और बढ़ाएंगे।"

छुट्टा गोवंश की समस्या का समाधान
यह पहल छुट्टा गोवंश की समस्या का समाधान भी बन रही है। जहां गोवंश किसानों के लिए आर्थिक बोझ माने जाते थे। वहीं अब ये अतिरिक्त आय का जरिया बन रहे हैं। पिछले तीन महीनों में इन महिला समूहों ने लगभग 20,000 लीटर गोमूत्र इकट्ठा कर बेचा है।

50 से अधिक महिलाएं जुड़ीं
नरसेना क्षेत्र के दर्जनभर गांवों में 50 से अधिक महिलाएं इस एफपीओ समूह के साथ काम कर रही हैं। सुषमा देवी, कमला देवी और जगवती देवी जैसे कई नाम इस अभियान का नेतृत्व कर रही हैं। इन महिलाओं का कहना है कि पहले वे केवल घरेलू जिम्मेदारियों तक सीमित थीं, लेकिन अब इस पहल ने उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनने का अवसर दिया है।

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