गाजियाबाद विधानसभा उपचुनाव : गाजियाबाद उपचुनाव में 2022 के प्रदर्शन भी नहीं दोहरा सकी बसपा, दलित और मुस्लिम वोट भी खिसके

UPT | गाजियाबाद सदर विधानसभा उपचुनाव में बसपा की स्थिति।

Nov 25, 2024 12:08

बसपा सुप्रीमो की प्रत्याशियों से मुलाकात तो हुई, लेकिन उनके नाम की घोषणा पार्टी ने अंतिम समय पर की, जिससे वोटरों में ऊहापोह रहा।

Short Highlights
  • विधानसभा उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी की जमानत भी हुई जब्त
  • गाजियाबाद विधानसभा उपचुनाव में प्रत्याशी बदलने का असर बसपा के प्रदर्शन पर
  • बसपा का कैडर वोट बैंक भी दूसरे दलों की ओर स्वीप कर गया
Ghaziabad Sadar Assembly by-election result : गाजियाबाद में लगातार चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को वोटों के लिए तरसना पड़ गया। नतीजों से साफ है कि गाजियाबाद में वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार बसपा का करीब 70 फीसद से अधिक वोट बैंक दूसरे दलों में शिफ्ट हो गया। दलित वोट बैंक ने बसपा को नकार दिया तो पार्टी मुस्लिम वोटरों का भरोसा भी नहीं जीत सकी।

दूसरा कदम भी उसे नई दिशा नहीं दिखा सका
बसपा का उपचुनाव लड़ने का दूसरा कदम भी उसे नई दिशा नहीं दिखा सका। इससे पहले लोकसभा चुनाव में भी बसपा को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। फिलहाल बसपा का प्रदर्शन उसके अस्तित्व पर किसी बड़े खतरे का संकेत दे रहा है।

गाजियाबाद में बसपा धड़ाम हो गई
चुनावी नतीजों पर गौर करें तो गाजियाबाद में बसपा धड़ाम हो गई। बसपा प्रत्याशी अपनी ज़मानत भी नहीं बचा सके।  बसपा का वोट 10736  पर सिमट गया। जो प्रत्याशियों की जमानत जब्त बचाने के आधे से भी कम रहा ।  वोटरों ने बसपा से ज्यादा आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) और ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तिहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) को तरजीह दी है। जिस कारण बसपा का वोट बैंक इन दोनों दलों में बट गया।

2022 के चुनाव में बसपा प्रत्याशी को 32691 वोट मिले
बसपा का 2022 के विधानसभा चुनाव में इससे ठीक प्रदर्शन था। 2022 के चुनाव में बसपा प्रत्याशी को 32691 वोट मिले थे। गाजियाबाद में टिकट बदलने का खेल बसपा को भारी पड़ गया और उसके प्रत्याशी परमानंद गर्ग 10,736 वोट ही हासिल कर पाए।

बड़े नेता बनाए रहे दूरी
बसपा के इस खराब प्रदर्शन की वजह पार्टी के बड़े नेता हैं, जिन्होंने उपचुनाव में प्रचार करने की जहमत तक नहीं की। पार्टी नेता महाराष्ट्र और झारखंड में खुद को मजबूत करने के फेर में यूपी के उपचुनाव में अपनी जमीन को खो बैठे। प्रत्याशियों ने अपने दम पर प्रचार किया, जो जीत में तब्दील नहीं हो सका।

वोटरों में ऊहापोह रहा
बसपा सुप्रीमो की प्रत्याशियों से मुलाकात तो हुई, लेकिन उनके नाम की घोषणा पार्टी ने अंतिम समय पर की, जिससे वोटरों में ऊहापोह रहा। सोशल इंजीनियरिंग के बल पर चुनाव जीतने की उसकी कसरत किसी काम नहीं आई। टिकट वितरण में बदले चेहरों पर दांव लगाने की कीमत पार्टी को चुकानी पड़ी।
 

Also Read