मैरिटल रेप पर कल होगी सुनवाई : हाईकोर्ट के फैसलों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला, जानिए देश में क्या है कानून

UPT | Supreme Court

Sep 23, 2024 17:22

2016 में, मोदी सरकार ने मैरिटल रेप के विचार को यह कहते हुए खारिज किया था कि भारतीय संदर्भ में इसे लागू नहीं किया जा सकता। 2017 में, सरकार ने इस मुद्दे पर अपना विरोध जारी रखा...

नेशनल डेस्क : सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार, 24 सितंबर को मैरिटल रेप के मुद्दे पर सुनवाई होगी कि क्या पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने के मामले में पति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच इस मामले पर विचार करेगी।

यह मामला कर्नाटक और दिल्ली हाईकोर्ट के दो फैसलों के खिलाफ दायर किया गया है और इसके साथ ही कुछ अन्य जनहित याचिकाएं भी शामिल हैं। सभी याचिकाओं को एक साथ सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में लाया गया है।



मैरिटल रेप पर नए कानून बनाने की मांग
मैरिटल रेप को लेकर नए कानून बनाने की मांग लंबे समय से उठाई जा रही है। पिछले दो वर्षों में दिल्ली और कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसलों के बाद इस मांग में तेजी आई है। सुप्रीम कोर्ट में दायर दो मुख्य याचिकाओं में से एक पति की ओर से है, जबकि दूसरी एक महिला द्वारा दायर की गई है।

दिल्ली हाईकोर्ट का मामला
2022 में एक महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में पति द्वारा जबरन शारीरिक संबंध बनाने के खिलाफ याचिका दायर की। 11 मई 2022 को, हाईकोर्ट के दो जजों ने अलग-अलग फैसले दिए। जस्टिस राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को खत्म करने का समर्थन किया, जबकि जस्टिस सी हरिशंकर ने इसे असंवैधानिक नहीं माना।

कर्नाटक हाईकोर्ट का मामला
कर्नाटक हाईकोर्ट में एक पति ने पत्नी द्वारा लगाए गए रेप के आरोपों के खिलाफ अपील की। 23 मार्च 2023 को हाईकोर्ट ने पति पर लगे आरोपों को समाप्त करने से इनकार कर दिया और कहा कि इस तरह के यौन हमले के लिए पति को पूरी छूट नहीं दी जा सकती।

मैरिटल रेप की परिभाषा
पत्नी की सहमति के बिना पति द्वारा जबरन शारीरिक संबंध बनाने को मैरिटल रेप माना जाता है, जो घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न का एक रूप है। भारत में इसे अपराध नहीं माना जाता है।

क्या कहती है भारतीय न्याय संहिता
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 63 के अनुसार, मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना गया है। केंद्र सरकार को भी इस मामले पर जवाब दाखिल करना है, जिसमें कहा गया है कि कानून में बदलाव के लिए विचार-विमर्श की आवश्यकता है।

सरकार ने भी किया अपराध मानने से इनकार
याचिकाकर्ताओं ने BNS की धारा 63 से अपवाद हटाने के लिए कई तर्क दिए। जिसमें कहा गया कि मैरिटल रेप समानता, गरिमापूर्ण जीवन और सेक्शुअल-पर्सनल  जीवन में स्वतंत्रता के अधिकारों के खिलाफ है। मैरिटल रेप को अपराध नहीं मानना विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच अंतर पैदा करना है। कानून में यह प्रावधान संविधान लागू होने से पहले जोड़ा गया था, ऐसे में अब इसकी जरूरत नहीं है।

लेकिन 2016 में, मोदी सरकार ने मैरिटल रेप के विचार को खारिज किया था, यह कहते हुए कि भारतीय संदर्भ में इसे लागू नहीं किया जा सकता। 2017 में, सरकार ने इस मुद्दे पर अपना विरोध जारी रखा, यह तर्क देते हुए कि इससे विवाह की संस्था अस्थिर हो जाएगी। केंद्र ने यह भी कहा है कि केवल इसलिए कि अन्य देशों ने इसे अपराध माना है, भारत को भी ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है।

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