इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला : पोकर और रम्मी जुआ नहीं , दिमागी कौशल के खेल

UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट और पोकर रम्मी ताश

Sep 05, 2024 15:04

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पोकर और रम्मी जैसे ताश के खेलों को जुआ नहीं, बल्कि दिमागी कौशल खेल करार दिया है। इस फैसले ने ताश खेलने के शौकीनों और गेमिंग इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को राहत दी है।

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पोकर और रम्मी जैसे ताश के खेलों को जुआ नहीं, बल्कि दिमागी कौशल खेल करार दिया है। इस फैसले ने ताश खेलने के शौकीनों और गेमिंग इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को राहत दी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले के आधार पर आगरा की मेसर्स इंजीनियरिंग गेमिंग प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर अपने जजमेंट के आधार पर पुलिस को नए सिरे से अनुमति देने का निर्देश दिया है।

डीएम ने दर्ज की याचिका 
यह मामला तब सामने आया जब आगरा की डीएम गेमिंग प्राइवेट लिमिटेड ने पोकर और रम्मी जैसे ताश के खेलों की यूनिट का संचालन करने के लिए आगरा पुलिस से अनुमति मांगी थी। पुलिस ने इस अनुरोध को जुआ मानते हुए अस्वीकार कर दिया। पुलिस का तर्क था कि ऐसे खेलों से शांति और सद्भाव को खतरा हो सकता है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। 

मामले की सुनवाई जस्टिस शेखर बी. सर्राफ और जस्टिस मंजीव शुक्ला की डिवीजन बेंच में हुई। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से निवेदन किया कि पोकर और रम्मी ताश के खेल जुआ नहीं, बल्कि दिमागी कौशल के खेल हैं, जिन्हें कई देशों में मान्यता प्राप्त है। इसलिए इन खेलों को जुआ की श्रेणी में रखना अनुचित है।



अदालत का फैसला
हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि पोकर और रम्मी जैसे खेल जुआ नहीं हैं। ये खेल पूरी तरह से कौशल पर आधारित होते हैं और इनमें जीतने के लिए दिमागी योग्यता की जरूरत होती है। अदालत ने यह भी कहा कि ताश के पत्तों का इस्तेमाल सिर्फ एक उपकरण के रूप में होता है, और इसे जुआ मानना उचित नहीं है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जुए में भाग्य की भूमिका अधिक होती है, जबकि पोकर और रम्मी जैसे खेलों में कौशल और दिमागी क्षमता की अधिक आवश्यकता होती है। इसलिए, इन खेलों को जुए की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

पुलिस के फैसले की आलोचना
अदालत ने आगरा पुलिस द्वारा सिर्फ आशंका के आधार पर याचिकाकर्ता की अनुमति को अस्वीकार करने के फैसले को अनुचित ठहराया। हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस ने बिना यथोचित आधार और तथ्यों के सिर्फ एक आशंका के तहत निर्णय लिया, जो कि सही नहीं है। अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा दिए गए पूर्वनिर्देशों को ध्यान में रखते हुए नए सिरे से आदेश पारित करे। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा के डीसीपी सिटी को 6 हफ्ते के अंदर याचिकाकर्ता का पक्ष सुनकर और सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए फिर से निर्णय लेने का निर्देश दिया। 

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