महाकुंभ 2025 : फ्रांसीसी गणितज्ञ फेड्रिक ब्रूनो ने नागा संन्यासी बनकर अपनाया सनातन धर्म, जानें उनकी अद्भुत यात्रा

UPT | जूना अखाड़े में प्रोफेसर फेड्रिक ब्रूनो।

Dec 16, 2024 13:48

फ्रांस की प्रतिष्ठित सारबोर्न यूनिवर्सिटी के गणित के प्रोफेसर फेड्रिक ब्रूनो ने सनातन धर्म से प्रभावित होकर दशनामी परंपरा के पंच दशनाम जूना अखाड़े में नागा संन्यासी के रूप में दीक्षा ली।

Prayagraj News : प्रयागराज में महाकुंभ 2025 के पहले संगम की रेती पर एक अद्भुत घटना घटी। फ्रांस की प्रतिष्ठित सारबोर्न यूनिवर्सिटी के गणित के प्रोफेसर फेड्रिक ब्रूनो ने सनातन धर्म से प्रभावित होकर दशनामी परंपरा के पंच दशनाम जूना अखाड़े में नागा संन्यासी के रूप में दीक्षा ली। अब वे "महंत ब्रूनो गिरि" के नाम से जाने जाएंगे।

सनातन धर्म की ओर आकर्षण
फेड्रिक ब्रूनो सनातन संस्कृति, भक्ति और अध्यात्म से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने भरे-पूरे परिवार, पत्नी और तीन बच्चों को छोड़कर संन्यास का मार्ग चुन लिया। गणित के जोड़-घटाने और सांसारिक माया से उनका मन उचट गया। नौकरी छोड़कर वे प्रयागराज के महाकुंभ में पहुंचे और जूना अखाड़े में नागा संन्यासी बनने की विधि पूरी की। अब वे अखाड़े की छावनी में रहकर कल्पवास करेंगे।

गणित से अध्यात्म तक का सफर
महंत ब्रूनो गिरि का कहना है कि उन्हें अंकों और गणित की दुनिया से वैराग्य हो गया है। उनका मन अब शांति, प्रेम और अध्यात्म की ओर आकर्षित हो गया है। जीवन के अंतिम सत्य की खोज के लिए उन्होंने सनातन धर्म को अपनाया। उन्होंने कहा, "अंकों के गणित और गुणा-भाग से मुझे अब कोई मतलब नहीं है। अब मैं केवल शांति और भक्ति में रमना चाहता हूं।"

गुरु घनानंद गिरि से ली दीक्षा
जूना अखाड़े के थानापति घनानंद गिरि ने प्रोफेसर ब्रूनो को नागा संन्यासी के रूप में दीक्षा दी। घनानंद गिरि ने बताया कि ब्रूनो अक्सर हरिद्वार स्थित उनके आश्रम में आते थे। वहां वे योगाभ्यास और ध्यान की शिक्षा लेते थे। योग ने उनके मन को शांति दी और उन्हें अध्यात्म की ओर प्रेरित किया।

धर्मशास्त्रों का अध्ययन और नई पहचान
योग के माध्यम से शांति प्राप्त करने के बाद, ब्रूनो ने भारतीय धर्मशास्त्रों का गहन अध्ययन शुरू किया। उन्होंने भगवद्गीता, वेदों और उपनिषदों से जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने की कोशिश की। इस ज्ञान ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया और वे सनातन धर्म की शरण में आ गए। दीक्षा के बाद अब वे नागा संन्यासियों की परंपरा के अनुसार जूना अखाड़े में धूनी रमाकर जीवन बिताएंगे।

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