प्रयागराज में राष्ट्रीय लॉ यूनिवर्सिटी शुरू : सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ बोले- छात्रों को मिले हिन्दी में शिक्षा,  सुप्रीम कोर्ट ने भी की है पहल

UPT | मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़

Feb 17, 2024 10:44

भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने कहा कि अंग्रेजी को लेकर छात्रों में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 36 हजार....

Short Highlights
  • शिक्षा में बराबरी से ही समाजिक बराबरी संभव
  • मुख्य न्यायाधीश ने कहा अंग्रेजी को लेकर छात्रों में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए

 

प्रयागराज न्यूज : भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने कहा कि अंग्रेजी को लेकर छात्रों में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 36 हजार फैसलों का हिंदी अनुवाद कराया है। जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते, उनके दरवाजे तक न्याय ले जाने की पहल है। इस यूनिवर्सिटी को भी हिन्दी में शिक्षा देने की पहल करनी चाहिए। इससे तमाम प्रतिभाएं सामने आ सकती हैं।

शिक्षा में बराबरी से ही समाजिक बराबरी संभव
प्रयागराज में डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की औपचारिक शुरुआत के मौके पर डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में बराबरी की बात करके ही समाज में बराबरी लाई जा सकती है। शिक्षा का अवसर सभी को समान रूप से मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषा, जेंडर और रीजन के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। संविधान भी इसकी इजाजत नहीं देता है। हमारी शिक्षा व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य मानवीय भावों को समझना और समस्याओं को दूर करने के साथ ही व्यवस्थाओं को और बेहतर करना होना चाहिए।

हमें भविष्य की चुनौतियों के लिए भी तैयार रहना चाहिए
डॉ. चंद्रचूड़ ने कहा कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सामाजिकता लाना होना चाहिए। समाज के प्रति जिम्मेदार बनाना होना चाहिए। जिम्मेदार लोगों को यह सोचना चाहिए कि हम विधि शिक्षा को किस तरफ ले जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें भविष्य की चुनौतियों के लिए भी तैयार रहना चाहिए। सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को भी बराबरी से शिक्षा देना चाहिए। उनकी क्षमता में वृद्धि करनी चाहिए, यही इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य होना चाहिए। उत्तर प्रदेश की दोनों नेशनल लाॅ यूनिवर्सिटी में प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए। इससे छात्रों को प्रतिस्पर्धी शिक्षा मिल सकेगी। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद मेरे लिए दूसरे घर की तरह है। उन्होंने संत कबीर के दोहे के जरिए कहा कि हमारे जैसे जज के लिए अधिक बोलना और अधिक चुप रहना, दोनों ही ठीक नहीं है।

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