एकता का महाकुंभ 2025 : जाति-धर्म से परे एकजुट होते श्रद्धालु, एक पंगत में प्रसाद ग्रहण करते विभिन्न समुदाय

UPT | एकता का महाकुंभ

Jan 17, 2025 15:39

प्रयागराज के संगम तट पर इस समय सनातन आस्था और संस्कृति का महापर्व महाकुम्भ धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह महाकुम्भ विश्व का सबसे बड़ा मानवीय और आध्यात्मिक मिलन स्थल माना जाता है...

Prayagraj News : प्रयागराज के संगम तट पर इस समय सनातन आस्था और संस्कृति का महापर्व महाकुम्भ धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह महाकुम्भ विश्व का सबसे बड़ा मानवीय और आध्यात्मिक मिलन स्थल माना जाता है। यूनेस्को ने इसे मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता दी है। इस आयोजन में देशभर से विभिन्न भाषाओं, जातियों, पंथों और संप्रदायों के लोग बिना किसी भेदभाव के त्रिवेणी संगम में आकर स्नान कर रहे हैं। श्रद्धालु संत महात्माओं से आशीर्वाद प्राप्त कर, मंदिरों में दर्शन करते हुए सामूहिक रूप से भण्डारों में प्रसाद का आनंद ले रहे हैं। महाकुम्भ एकता, समानता और समरसता के आदर्शों का प्रतीक है, जो सनातन संस्कृति के उच्चतम मूल्यों को प्रदर्शित करता है।

महाकुम्भ में भेदभाव करना असंभव
महाकुम्भ भारत की सांस्कृतिक विविधता और एकता का सर्वोत्तम प्रतीक है। यह आयोजन न केवल भारतीय संस्कृति के समरसता और समानता के मूल्यों को प्रदर्शित करता है, बल्कि इसे देखने के लिए दुनिया भर से आए पर्यटक और पत्रकार भी हैरान रह जाते हैं। विभिन्न भाषाओं, जातियों, और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़े लोग बिना किसी भेदभाव के संगम में स्नान करने के लिए आते हैं। साधु-संन्यासियों के अखाड़ों से लेकर तीर्थराज प्रयागराज के मंदिरों और घाटों तक, श्रद्धालु बिना किसी रोक-टोक के दर्शन और पूजा करते हैं। संगम क्षेत्र में कई अन्नभण्डार दिन-रात खुले रहते हैं, जहां श्रद्धालु एक साथ बैठ कर प्रसाद और भोजन का आनंद लेते हैं। महाकुम्भ में भारत की विविधताएं इस तरह समाहित हो जाती हैं कि वहां किसी प्रकार का भेदभाव करना असंभव लगता है।



एकता, समता, समरसता का महाकुम्भ का सबसे बड़ा उदाहरण
प्रयागराज महाकुम्भ एकता, समता और समरसता का सबसे बड़ा उदाहरण है। यहां शैव, शाक्त, वैष्णव, उदासीन, नाथ, कबीरपंथी, रैदासी, भारशिव, अघोरी और कपालिक जैसे विभिन्न पंथों और संप्रदायों के साधु-संत अपने-अपने रीति-रिवाजों से पूजा और गंगा स्नान कर रहे हैं। संगम तट पर लाखों श्रद्धालु, जो देश के कोने-कोने से आते हैं, अलग-अलग जाति, वर्ग और भाषा के होते हुए भी महाकुम्भ की परंपराओं का पालन कर रहे हैं। यहां अमीर, गरीब, व्यापारी, अधिकारी सभी भेदभाव भुलाकर एक साथ संगम में स्नान कर रहे हैं। महाकुम्भ और मां गंगा में नर, नारी, किन्नर, शहरी, ग्रामीण, गुजराती, राजस्थानी, कश्मीरी, मलयाली सभी के लिए समानता है। यह आयोजन सनातन संस्कृति के समता और एकता के आदर्शों का प्रतीक है, जो अनादि काल से प्रयागराज के संगम तट पर निरंतर जारी है।

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