धर्म रक्षा से लेकर आधुनिकता तक : 5 लाख नागा साधुओं की फौज, जानिए जूना अखाड़े का इतिहास

UPT | जूना अखाड़ा

Jan 20, 2025 16:15

जूना अखाड़ा शैव संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा है, जिसका मुख्यालय वाराणसी के हनुमान घाट पर स्थित है। यह अखाड़ा विशेष रूप से नागा साधुओं को शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा देने के लिए प्रसिद्ध है...

Prayagraj News : महाकुंभ मेला भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण आयोजन है, जिसमें देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक भाग लेते हैं। यह मेला न केवल धार्मिक आस्थाओं का केंद्र है, बल्कि यहां से जुड़े कई प्राचीन परंपराओं और रीति-रिवाजों को भी देखा जा सकता है। इस लेख में हम विशेष रूप से धार्मिक अखाड़ों पर चर्चा करेंगे, जो सनातन धर्म की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

धार्मिक अखाड़ों का प्रमुख उद्देश्य सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा करना है। इन अखाड़ों में विशेष रूप से नागा साधुओं की सेना तैयार की जाती है, जिन्हें अस्त्र-शस्त्र के साथ शास्त्र की शिक्षा भी दी जाती है। यह परंपरा आदि शंकराचार्य द्वारा छठवीं शताब्दी में शुरू की गई थी, जब उन्होंने सनातन धर्म की रक्षा के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी। इस परंपरा की शुरुआत सात अखाड़ों से हुई थी, जो अब बढ़कर 13 अखाड़ों तक पहुँच चुकी है। 



जूना अखाड़ा शैव संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा है, जिसका मुख्यालय वाराणसी के हनुमान घाट पर स्थित है। यह अखाड़ा विशेष रूप से नागा साधुओं को शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा देने के लिए प्रसिद्ध है। जूना अखाड़ा कुंभ मेले में प्रमुख भूमिका निभाता है, जहां वह पेशवाई की अगुवाई करता है और महामंडलेश्वर के चयन में भी सक्रिय भागीदारी निभाता है।

जूना अखाड़े का इतिहास बहुत पुराना है। इसकी स्थापना 12वीं शताब्दी में हुई थी, और धर्मशास्त्रों के अनुसार, इसका उल्लेख 1259 में हुआ था। सरकारी दस्तावेजों में इसका रजिस्ट्रेशन 1860 में हुआ था। विशेष रूप से शाही स्नान के समय अखाड़ों के बीच मतभेदों को देखते हुए, 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई थी, ताकि सभी अखाड़ों के मामलों में एकतापूर्वक निर्णय लिया जा सके।

जूना अखाड़े का निर्माण इसलिए हुआ क्योंकि सनातन धर्म के साथ-साथ भारतीय संस्कृति पर अन्य धर्मों का प्रभाव बढ़ रहा था। आदि गुरु शंकराचार्य ने मठों और मंदिरों को बचाने के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी। इसके माध्यम से साधु-संन्यासियों को शास्त्र और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देकर उन्हें युद्ध कौशल में पारंगत किया गया। इसके बाद, ये नागा साधु धर्म की रक्षा के लिए विभिन्न क्षेत्रों में तैनात किए जाते थे।

समय के साथ, अखाड़ों में आधुनिकता का भी प्रभाव पड़ा है। आजकल अखाड़ों के साधु-संन्यासी टेक्नोलॉजी और डिजिटल साधनों का उपयोग करते हुए दिखते हैं। जहां पहले नागा साधु समाज में कम दिखाई देते थे, वहीं अब उनका रहन-सहन आधुनिक हो गया है। मोबाइल, लैपटॉप और महंगे हेडफोन जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए वे अब नज़र आते हैं।

शैव संप्रदाय के दशनामी संप्रदाय के अंतर्गत कई अखाड़े आते हैं। जूना अखाड़ा इन अखाड़ों में एक प्रमुख अखाड़ा है। इस अखाड़े का प्रमुख पद महामंडलेश्वर का होता है, और वर्तमान में जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी हैं। इस अखाड़े से जुड़ने वाले भक्तों की संख्या करोड़ों में है, जो देश-विदेश से आते हैं।

जूना अखाड़ा 52 परिवारों के सहयोग से बना है, जिसमें सभी साधु-संन्यासी शामिल हैं। इस अखाड़े में एक समिति बनाई जाती है, जिसमें 17 सदस्य होते हैं। इनमें काशी के श्रीमंत थानापति, सचिव, रमता पंच, श्री महंत, और अन्य प्रमुख पदों पर लोग नियुक्त होते हैं। यह समिति कुंभ मेले के दौरान सभापति का चुनाव करती है।

अखाड़े के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका आचार्य महामंडलेश्वर की होती है, जो सभी मामलों का निर्णय लेते हैं। जूना अखाड़े का काम करने का तरीका अन्य अखाड़ों से कुछ अलग है। यहां, देशी-विदेशी भक्तों को न केवल प्रवेश की अनुमति दी जाती है, बल्कि उन्हें शिक्षा-दीक्षा भी दी जाती है।

अखाड़े में पदों का बंटवारा बड़े ध्यान से किया जाता है। हर अखाड़े के मुख्य मठ में विभिन्न पदों पर नियुक्तियां होती हैं। इन पदों में श्री महंत, अष्ट कौशल महंत, थानापति, सभापति, रमता पंच जैसे पद शामिल हैं। इन पदों पर नियुक्त किए गए साधु-संन्यासी अपने क्षेत्र में कार्य करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

अखाड़े में शामिल होने के लिए कुछ विशेष नियम होते हैं। जूना अखाड़े के महंत सोमदत्त के अनुसार, इस अखाड़े में शामिल होने के लिए व्यक्ति को कम से कम 10 वर्षों तक गुरु की सेवा करनी होती है। इस समय के दौरान, व्यक्ति अपने गुरु से शिक्षा प्राप्त करता है और जब वह सच्चे संत और महंत के रूप में उभरता है, तो उसे अखाड़े के प्रमुख के रूप में स्वीकार किया जाता है।

नागा साधु बनने की प्रक्रिया में पिंडदान और आहूतित संस्कार शामिल होते हैं। यह प्रक्रिया व्यक्ति को सांसारिक मोह-माया से दूर करती है और उसे एक सच्चा संन्यासी बनाती है। नागा साधुओं को विशेष रूप से धर्म की रक्षा के लिए तैयार किया जाता है। उनके पास शास्त्र और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा होती है, ताकि वे किसी भी संकट से निपट सकें।

नागा साधु की दीक्षा एक खास प्रक्रिया है, जिसमें उन्हें विशेष गुरु से शिक्षा दी जाती है। इस दौरान, उन्हें अपनी आस्था और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई जाती है। नागा साधुओं को युद्ध कौशल, शास्त्र ज्ञान और आत्मा की शुद्धि के लिए भी शिक्षा दी जाती है। 

अखाड़े के भीतर, साधु-संन्यासी के नियमों का पालन कड़ा होता है। उन्हें किसी भी गलती पर सजा दी जा सकती है, और गंभीर मामलों में उन्हें निष्कासित भी किया जा सकता है। यह कड़े नियम उनके अनुशासन और संन्यास के जीवन को बनाए रखने के लिए जरूरी होते हैं।

जूना अखाड़े के संन्यासी आत्मानंद के अनुसार, नागा साधु आमतौर पर समाज से बाहर रहते हैं, लेकिन वे हमेशा सनातन धर्म और राष्ट्र धर्म की रक्षा के लिए तैयार रहते हैं। भारत में इनकी संख्या पांच लाख से अधिक है, जो किसी भी संकट का सामना करने के लिए तैयार रहते हैं।

इस प्रकार, जूना अखाड़ा एक महत्वपूर्ण धार्मिक संस्था है, जो सनातन धर्म की रक्षा में प्रमुख भूमिका निभाता है। इसके साधु-संन्यासी न केवल धार्मिक शिक्षा प्राप्त करते हैं, बल्कि समाज की भलाई के लिए भी काम करते हैं।
 

Also Read