स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने किया सनातन संरक्षण परिषद का गठन : उत्तराखंड की बदरीश गाय के आगमन से पवित्र हुआ धर्म संसद का सत्र

UPT | धर्म संसद और बदरीश गाय के साथ शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी

Jan 12, 2025 19:19

सनातन धर्म के संरक्षण और धर्मस्थलों की पवित्रता बनाए रखने के उद्देश्य से ज्यो तिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी की उपस्थिति में सनातन संरक्षण परिषद का गठन किया गया।

Prayagraj News : प्रयागराज कुंभ क्षेत्र में सनातन धर्म की रक्षा और धर्मस्थलों की पवित्रता बनाए रखने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया। 12 जनवरी, 2025 को ज्यो तिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की उपस्थिति में सनातन संरक्षण परिषद का गठन किया गया। यह निर्णय परमधर्म संसद के सत्र में लिया गया, जहां धर्म के संरक्षण और पवित्रता के लिए कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए गए। 

बदरीश गाय का हुआ आगमन
सत्र में उत्तराखंड की बदरीश गाय का आगमन हुआ, जिसे सनातन धर्म में अत्यधिक पवित्र माना जाता है। मान्यता के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। गाय के इस पवित्र आगमन से सत्र और भी अधिक पवित्र हो गया। इसके साथ ही, बाहर हो रही वर्षा को इंद्रदेव का आशीर्वाद माना गया, जिसने वातावरण को और भी धार्मिक बना दिया।



सनातन संरक्षण परिषद का गठन 
सत्र के दौरान धर्मांसद डॉ. मनीष तिवारी ने प्रस्ताव रखा कि सनातन संरक्षण परिषद का गठन किया जाए ताकि धर्मस्थलों की सुरक्षा और पवित्रता बनी रहे। उन्होंने इस पर भी जोर दिया कि सरकार के नियंत्रण में चल रहे मंदिरों और धर्मस्थलों को धार्मिक स्वायत्तता मिले, क्योंकि धार्मिक स्थल बिना धार्मिक दृष्टिकोण वाले व्यक्तियों के प्रभाव में आ सकते हैं, जिससे धर्म की मूल आत्मा को नुकसान हो सकता है।

शंकराचार्य ने रखे अपने विचार
शंकराचार्य ने इस विषय पर गहरा विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदू धर्म की नींव मठों, मंदिरों, गोशालाओं, और गुरुकुलों से जुड़ी हुई है। इनकी पवित्रता और प्रबंधन का हिंदू समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि धर्मस्थलों पर गैर-धार्मिक और विधर्मी व्यक्तियों की नियुक्ति नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने धर्मस्थलों को सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त करने की मांग की ताकि उनका सही प्रबंधन हो सके।

सनातन संरक्षण परिषद का उद्देश्य
सनातन संरक्षण परिषद का गठन इस पहल का मुख्य उद्देश्य था, जो देशभर के मंदिरों, मठों, और धर्मस्थलों की गरिमा बनाए रखने और उनकी सुरक्षा के लिए काम करेगा। सत्र के दौरान साध्वी पूर्णाम्बा जी और नरोत्तम पारीक जी ने शंकराचार्य जी के हाथों "जय ज्योतिर्मठ" नामक साप्ताहिक पत्रिका का विमोचन भी किया। साथ ही, गाय के संरक्षण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता भी जताई गई।

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