कोटेदारों ने दीपावली के बाद जिला अधिकारी को ज्ञापन देकर मानदेय की वृद्धि की मांग करने का निर्णय लिया है। उनका कहना है कि यदि स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो वे कोटा चलाने में असमर्थ होंगे।
बरेली में कोटेदारों ने दी लाइसेंस सरेंडर करने की धमकी : लाभांश बढ़ाने की मांग पर अड़े, जानें वजह
Oct 22, 2024 14:51
Oct 22, 2024 14:51
पहले पैसे और पावर का इस्तेमाल कर लेते थे दुकान
आपको बता दें कि एक समय था जब लोग पैसे और पावर का इस्तेमाल कर राशन की दुकानें हासिल करते थे। इसके साथ ही सत्ताधारी दल भी अपने करीबियों को राशन की दुकानें दिलाने की कोशिश करते थे। लेकिन अब हालात बदलने लगे हैं। राशन डीलरों ने राशन की दुकानें सरेंडर करने तक की धमकी दे दी है, क्योंकि, 2012 से ही राशन वितरण प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता लाने की कोशिश की जा रही थी। यह लगभग पूरा होने वाला है। लेकिन राशन डीलर इस पारदर्शिता और निष्पक्षता से काफी परेशान हैं। जिसके चलते कोटेदारों ने पहली बार लाभांश बढ़ाने की मांग की है। उन्होंने लाभांश नहीं बढ़ाए जाने पर राशन की दुकानें सरेंडर करने की धमकी तक दे दी है। इसे लेकर विरोध प्रदर्शन करने की भी तैयारी है।
गांव से लेकर वार्ड तक की सियासत में मुख्य भूमिका
शहर के मोहल्लों, वार्ड और गांव तक की सियासत (राजनीति) राशन की दुकानों की इर्द गिर्द घूमती थी। मगर, अब हालात बदलने लगे हैं। कोटेदार अपने करीबी को ही चुनाव जिताने में जी जान लगा देते थे। जिससे राशन की दुकान बची रहे। इसके साथ ही विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी प्रधान, सभासद और पार्षद के बाद कोटेदार की आवभगत होती थी। हालांकि, यह कोटेदार सत्ताधारी पार्टी के विधायक और सांसद के पक्ष में रहते थे। मगर, दुकान बचाने को विपक्षियों को भी मैनेज कर चलते थे।
कोटेदार, सत्ता और अफसरों का गठजोड़
राशन वितरण प्रणाली के तहत गरीबों को हर महीने मुफ्त राशन देने के लिए कोटेदारों की भूमिका महत्वपूर्ण है। मगर, पहले यह कोटेदार सत्ताधारी नेता और विभागीय अफसरों के साथ मिलकर हर वर्ष एक-दो महीने का राशन गायब कर देते थे। इसके साथ ही घटतोली की भी शिकायत थी। मगर, अब इस प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता लाने के लिए पॉश मशीन को बेइंग मशीन से जोड़ा गया है। इससे घटतौली पर अंकुश लगाने का प्रयास किया गया है, लेकिन यह व्यवस्था कोटेदारों के लिए चुनौतियाँ पैदा करने लगीं हैं।
हालात बिगड़ने पर उठाया गया कदम
कोटेदारों का आरोप है कि उन्हें मिलने वाला मानदेय कम और काम की जटिलताएं अधिक हो गई हैं। इस कारण दो दर्जन से अधिक कोटेदारों ने लाइसेंस सरेंडर करने की अर्जी भी दी है। कोटेदारों रोहित, रूपेश, और नसीम का कहना है कि मुनाफा कम होने के कारण वे अन्य कार्यों की तलाश में हैं। हर महीने साढ़े सात लाख लोगों को राशन वितरित करने के बावजूद उन्हें विभाग की नजर में संदेह का सामना करना पड़ रहा है।
यह मिलता है मानदेय
यूपी में कोटेदारों को 10 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से लाभांश मिलता है, जबकि अन्य राज्यों में यह राशि कहीं अधिक है। उदाहरण के लिए, गुजरात में 20 हजार रुपये प्रति महीने का मानदेय मिलता है, जबकि हरियाणा, गोवा, दिल्ली, और केरल में 200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से लाभांश दिया जाता है। महाराष्ट्र में यह राशि 150 रुपये और राजस्थान में 125 रुपये प्रति क्विंटल है।
कोटेदारों ने दीपावली के बाद जिला अधिकारी को ज्ञापन देकर मानदेय की वृद्धि की मांग करने का निर्णय लिया है। उनका कहना है कि यदि स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो वे कोटा चलाने में असमर्थ होंगे। मगर, पहले कभी मानदेय बढ़ाने की मांग नहीं की गई।
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