श्रावस्ती लोकसभा सीट दो जिलों को मिलाकर बनी है, जिनमें बलरामपुर और श्रावस्ती शामिल हैं। 2009 में हुए नए परिसीमन के बाद बलरामपुर सीट का नाम बदलकर श्रावस्ती हो गया था। इस सीट पर 2019 में बसपा के उम्मीदवार ने जीत हासिल कर सबको चौंका दिया था। जिसको लेकर आगामी चुनावों में सभी राजनीतिक पार्टियां समीकरण तैयार करने में लगी हैं।
बलराज साहनी ने किया था प्रचार : पहली बार प्रचार के लिए उतारे गए थे बलराज साहनी, दिलचस्प है जिले का राजनीतिक सफर
![पहली बार प्रचार के लिए उतारे गए थे बलराज साहनी, दिलचस्प है जिले का राजनीतिक सफर](https://image.uttarpradeshtimes.com/-60718.jpg)
Nov 18, 2023 16:09
Nov 18, 2023 16:09
- पहली बार प्रचार के लिए उतारे गए थे बलराज साहनी, दिलचस्प है जिले का राजनीतिक सफर
- श्रावस्ती सीट पर राजनीतिक उठा-पटक
बलरामपुर को जोड़कर बनी सीट
परिसीमन के बाद श्रावस्ती लोकसभा सीट बलरामपुर जिले को मिलाकर बनाई गई थी। जिसके बाद इस लोकसभा क्षेत्र में बलरामपुर जिले की तीन विधानसभा सीटें- बलरामपुर, तुलसीपुर और गैंसड़ी को शामिल किया गया। इसके अलावा श्रावस्ती जिले की दो विधानसभा सीटें श्रावस्ती और भिनगा भी इस लोकसभा क्षेत्र में सम्मिलित हैं। राप्ती नदी के किनारे बसे पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस इलाके में अवधी बोली प्रचलित है। भारत-नेपाल अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे होने की वजह से बलरामपुर सामरिक दृष्टि से भी काफी अहम है।
श्रावस्ती सीट पर राजनीतिक उठा-पटक
जिले का राजनीतिक इतिहास देखें तो यहां रोचक कहानियां निकलकर सामने आती हैं। जानकारी के अनुसार पहले यहां भारतीय जनसंघ का काफी प्रभाव रहा है। दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार 1957 में इसी सीट से लोकसभा की चौखट तक पहुंचे थे। इसके बाद वह 1967 में भी जनसंघ के टिकट पर यहीं से निर्वाचित हुए। हालांकि 1962 के चुनाव में उन्हें कांग्रेस की सुभद्रा जोशी से शिकस्त झेलनी पड़ी थी। इस चुनाव में बलरामपुर लोकसभा सीट पर दिलचस्प जंग देखने को मिली थी।
बलराज साहनी ने किया था प्रचार
बताते हैं कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने यहां अटलजी के खिलाफ सुभद्रा जोशी को उतारा था। उस दौर में प्रचार के लिए फिल्मी हस्तियों को उतारने का चलन नहीं था, लेकिन वाजपेयी की भाषण कला से वाकिफ पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मशहूर ऐक्टर बलराज साहनी को प्रचार के लिए यहां भेजा था। दिवंगत शायर और पूर्व राज्यसभा सदस्य बेकल उत्साही ने बताया था, कि परेड ग्राउंड में हुई जनसभा में 15 हजार लोग बलराज साहनी को सुनने पहुंचे। प्रचार के लिए वह दो दिन कस्बे में रुके। कई बार तो साहनी रिक्शे से भी प्रचार करते नजर आए थे। कांटे की टक्कर में सुभद्रा जोशी ने वाजपेयी को सिर्फ 2052 वोटों से मात दी थी।
यहीं से जीते थे नानाजी देशमुख
बताया जाता है कि 1977 की जनता लहर में नानाजी देशमुख बलरामपुर से ही बतौर जनता पार्टी उम्मीदवार के रूप में जीते थे। केवल 2009 के आम चुनाव को छोड़कर तकरीबन हर बार बीजेपी यहां मुख्य मुकाबले में रही है। 1997 से पहले बलरामपुर, गोण्डा जिले का हिस्सा था। गोण्डा जिले की तीन तहसीलों उतरौला, तुलसीपुर और बलरामपुर को मिलाकर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने इसे नया जिला बनाया। खास बात यह है कि श्रावस्ती और बलरामपुर दोनों को जिला बनाने का ऐलान मायावती ने बुद्ध पूर्णिमा के दिन किया था।
जिले का राजनीतिक समीकरण
पिछले चार लोकसभा चुनाव (1999-2019) की अगर बात करें तो यह सीट दो बार बीजेपी और एक-एक बार समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बसपा के हिस्से में गई हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में लंबे अरसे बाद कांग्रेस के विनय कुमार पांडेय ने इस सीट पर बाजी मारी थी, लेकिन 2014 की मोदी लहर में यह सीट एक बार फिर बीजेपी के पास आ गई थी। वहीं 2019 में इस सीट से बसपा के उम्मीदवार ने जीत हासिल कर सभी को चौंका दिया था। इसी तरह 1989 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से निर्दलीय प्रत्याशी मुन्नन खां ने जीत हासिल करते हुए सभी को चौंका दिया था। 1991 की राम लहर में बीजेपी के सत्यदेव सिंह ने यहां जीत हासिल की थी। इसके बाद 1996 में भी उन्होंने यहां से कमल खिलाया। 1998 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के बाहुबली छवि वाले रिजवान जहीर ने इस सीट पर सत्यदेव सिंह को शिकस्त दी। इसके बाद अगला चुनाव (1999) भी रिजवान ने ही जीता था।
आमने-सामने थे दो बाहुबली
यह लोकसभा सीट (बलरामपुर-श्रावस्ती) 2004 के चुनाव में दो बाहुबलियों की टक्कर की गवाह बनी थी। बीजेपी ने जहां पड़ोसी गोण्डा जिले से बाहुबली बृजभूषण शरण सिंह को चुनाव मैदान में उतारा, वहीं रिजवान ने एसपी को छोड़कर बीएसपी के टिकट पर दांव आजमाया। सपा ने डॉ. मोहम्मद उमर को टिकट दिया था। चुनाव के दौरान 'बिल्ली नहीं बलवान चाहिए, उमर नहीं रिजवान चाहिए' जैसे नारे फिजाओं में गूंजे थे। हालांकि चुनाव में बृजभूषण ने रिजवान को पटखनी दे दी थी।
परिसीमन के बाद बदला समीकरण
2009 के लोकसभा चुनाव में परिसीमन की वजह से इस सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या बढ़ गई। इस चुनाव में कांग्रेस के डॉ. विनय कुमार पाण्डेय को इकलौता ब्राह्मण प्रत्याशी होने का फायदा मिला और उन्होंने बीएसपी के रिजवान जहीर को मात दी। 2014 की मोदी लहर में यहां बीजेपी के दद्दन मिश्र ने कामयाबी हासिल की। 2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने बलरामपुर की सभी तीनों सीटों पर कामयाबी हासिल की। वहीं श्रावस्ती की भिनगा सीट पर बीएसपी को जीत मिली थी।
एसपी-बीएसपी गठबंधन
एसपी-बीएसपी गठबंधन के तहत यह सीट बीएसपी के हिस्से में आई। 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो यहां से बीजेपी के दद्दन मिश्रा को 345,964 वोट हासिल हुए थे। वहीं, एसपी के अतीक अहमद को 260,051 जबकि बीएसपी के लालजी वर्मा को 194,890 वोट मिले थे। एसपी-बीएसपी के सम्मिलित वोट की बात करें तो दोनों को करीब 4.55 लाख वोट हासिल हुए। इस लिहाज से यह आंकड़ा बीजेपी कैंडिडेट को मिले वोट से करीब 1.10 लाख वोट बढ़कर है। इसके अलावा पीस पार्टी से चुनाव लड़ने वाले बाहुबली नेता रिजवान जहीर को 101,817 वोट मिले थे।
इस सीट पर जातीय गणित
श्रावस्ती लोकसभा सीट पर ब्राह्मण मतदाता जीत की कुंजी रहे हैं। 2009 और 2014 का चुनाव इसका गवाह है, जब कांग्रेस और बीजेपी के ब्राह्मण कैंडिडेट को जीत हासिल हुई। 2009 के परिसीमन के बाद जिले के जातिगत समीकरण बदल गए। इसके अलावा ओबीसी वर्ग की बात करें तो इस सीट पर कुर्मी और यादव वोटर भी निर्णायक भूमिका में हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक बलरामपुर जिले में मुस्लिम आबादी 37 फीसदी से ज्यादा है। ऐसे में अल्पसंख्यक वोटों का झुकाव चुनाव का रुख तय कर सकता है।
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