इतिहास के पन्नों में इस जिले का लंबा इतिहास दर्ज है। यह जिला कौशल का एक प्रमुख नगर हुआ करता था। भगवान बुद्ध के जीवन काल में श्रावस्ती कौशल देश की राजधानी थी। इसे बुद्धकालीन भारत के 6 महानगरों, चम्पा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कौशाम्बी और वाराणसी में से एक माना जाता था।
महात्मा बुद्ध और भगवान राम से है खास नाता : कौशल के प्रमुख नगर श्रावस्ती के नाम को लेकर हैं कई मत, महात्मा बुद्ध और भगवान राम से है खास नाता
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Nov 18, 2023 13:56
Nov 18, 2023 13:56
- महात्मा बुद्ध और भगवान राम से है खास नाता
- कौशल के प्रमुख नगर श्रावस्ती के नाम को लेकर हैं कई मत
श्रावस्ती के नाम पर एक मत यह भी
ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार माना जाता है कि सावत्थी, संस्कृत श्रावस्ती का पालि और अर्द्धमागधी रूप है। बौद्ध ग्रन्थों में इस नगर के नाम की उत्पत्ति के विषय में एक अन्य उल्लेख भी मिलता है। इनके अनुसार सावत्थ (श्रावस्त) नामक एक ऋषि यहां पर रहते थे, जिनकी बड़ी मान-प्रतिष्ठा थी। इन्हीं के नाम के आधार पर इस नगर का नाम श्रावस्ती पड़ गया था। पाणिनि (लगभग 500 ई.पूर्व) ने अपने प्रसिद्ध व्याकरण-ग्रन्थ 'अष्टाध्यायी' में साफ़ लिखा है, कि कई स्थानों के नाम वहां रहने वाले किसी विशेष व्यक्ति के नाम के आधार पर पड़ जाते थे।
महाभारत के अनुसार
इतिहास के पन्नों में महाभारत के अनुसार श्रावस्ती के नाम की उत्पत्ति का कारण कुछ दूसरा ही बताया जाता था। बताते हैं कि उस दौरान श्रावस्त नामक एक राजा हुए, जो कि पृथु की छठी पीढ़ी में उत्पन्न हुए थे। वही इस नगर के जन्मदाता थे और उन्हीं के नाम के आधार पर इसका नाम श्रावस्ती पड़ गया था। पुराणों में श्रावस्तक नाम के स्थान पर श्रावस्त नाम मिलता है। महाभारत में उल्लिखित यह परम्परा उपर्युक्त अन्य परम्पराओं से कहीं अधिक प्राचीन है। अतएव उसी को प्रामाणिक मानना उचित बात होगी। बाद में चलकर कौशल की राजधानी, अयोध्या से हटाकर श्रावस्ती ला दी गयी थी और यही नगर कौशल का सबसे प्रमुख नगर बन गया।
पुराणों में मिलता है उल्लेख
ब्राह्मण साहित्य, महाकाव्यों एवं पुराणों के अनुसार श्रावस्ती का नामकरण श्रावस्त या श्रावस्तक के नाम के आधार पर पड़ा था। श्रावस्तक युवनाश्व का पुत्र था और पृथु की छठी पीढ़ी में उत्पन्न हुआ था। वहीं इस नगर के जन्मदाता थे और उन्हीं के नाम के आधार पर इसका नाम श्रावस्ती पड़ गया था। पुराणों में श्रावस्तक नाम के स्थान पर श्रावस्त नाम मिलता है। महाभारत में उल्लिखित यह परम्परा उपर्युक्त अन्य परम्पराओं से कहीं अधिक प्राचीन है। अतएव उसी को प्रामणिक मानना उचित बात होगी।
यहां रहते थे 57 हजार कुल
मत्स्य एवं ब्रह्मपुराणों में भी इस नगर के संस्थापक का नाम श्रावस्तक के स्थान पर श्रावस्त मिलता है। यह बाद में चलकर कौशल की राजधानी बना और अयोध्या से हटाकर श्रावस्ती गया यही नगर कौशल का सबसे प्रमुख नगर बन गया। एक बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार वहाँ 57 हज़ार कुल रहते थे और कौशल नरेशों की आमदनी सबसे ज़्यादा इसी नगर से हुआ करती थी। गौतम बुद्ध के समय में भारतवर्ष के 6 बड़े नगरों में श्रावस्ती की गणना हुआ करती थी। यह चौड़ी और गहरी खाई से घिरा हुआ था। इसके अतिरिक्त इसके इर्द-गिर्द एक सुरक्षा-दीवार भी थी, जिसमें हर दिशा में दरवाज़े बने हुए थे। हमारी प्राचीन कला में श्रावस्ती के दरवाज़ों का अंकन हुआ है। उससे ज्ञात होता है कि वे काफ़ी चौड़े थे और उनसे कई बड़ी सवारियां एक ही साथ बाहर निकल सकती थीं। कौशल के नरेश बहुत सज-धज कर बड़े हाथियों की पीठ पर कसे हुए चाँदी या सोने के हौदों में बैठ कर बड़े ही शान के साथ बाहर निकला करते थे।
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