इतिहास के साक्षी : फर्रुखाबाद से अयोध्या जाने के लिए मांगे थे उधार पैसे, निशानी के तौर पर लाए थे सरिया

फर्रुखाबाद से अयोध्या जाने के लिए मांगे थे उधार पैसे, निशानी के तौर पर लाए थे सरिया
Uttar Pradesh Times | फर्रुखाबाद के कारसेवक

Jan 22, 2024 12:53

अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो रहा है। राममंदिर का नाम आते ही 'कार सेवक' शब्द भी चर्चा में आता है। कार का अर्थ होता है कर यानी हाथ और सेवक का मतलब है सेवा करने वाला। कारसेवकों ने जिस मंशा से राम मंदिर आंदोलन में हिस्सा लिया था, वह दिन आने वाला है। हम आपको कुछ ऐसे लोगों की कहानी बताने जा रहे हैं , जो राम मंदिर आंदोलन के साक्षी रहे। पढ़िए खास रिपोर्ट...

Jan 22, 2024 12:53

Farrukhabad News : जहां अयोध्या के मंदिर में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम 22 जनवरी को विराजमान हो रहे हैं। इसको लेकर हर ओर उत्साह दिखाई दे रहा है। वहीं राम मंदिर आंदोलन से जुड़े कारसेवक जो 5 दिसंबर 1992 में फर्रुखाबाद से अयोध्या तक की यात्रा 18 वर्षों की उम्र में तय करके ढांचा विध्वंस में भागीदार बने थे। उस समय वह यादगार के लिए ढांचा टूटते ही शिलापट और सरिया उठा लाए थे। संजीव पांडे आज उन पलों को याद कर भावुक हुए। इस दौरान उन्होंने बताया कि रामकाज को कर जीवन धन्य हो गया। प्रभु श्री राम जी का भव्य मंदिर बन गया है। जल्द ही वह भी परिजनों के साथ आराध्य के दर्शन को जायेंगे अयोध्या।
 
फर्रुखाबाद के नगर पंचायत संकिसा के गांव मेरापुर निवासी सत्येंद्र मिश्रा और संजीव पांडे ने अयोध्या में ढांचा विध्वंस के समय वहीं थे। सत्येंद्र मिश्रा और संजीव पांडे ने बताया कि वह 18 वर्ष की आयु में शिक्षक स्व सुधीर मिश्रा द्वारा जानकारी होने पर अपनी चाची द्वारा पैसे उधार लेकर फर्रुखाबाद से अयोध्या गए थे। 5 दिसंबर की वह लोग रात में गौशाला में रुककर अगले दिन भगवान राम के कार्य में सहयोगी बने थे।
 
राम काज को यादगार बनाकर ले आए थे निशानी
जब विवादित ढांचे को तोड़ा जा रहा था तो वहां पर भी संजीव पांडे और सतेंद्र भी मौजूद थे। उन्होंने सबसे पहले एक ऊपरी गुंबद पर चढ़ाई की। इस दौरान देखते ही देखते कार सेवकों द्वारा तोड़फोड़ शुरू हो गई, तभी संजीव गेट के बाहर निकली हुई सरिया पर लटक कर उसे तोड़ने लगे और कुछ देर बाद ही ढांचा गिरने लगा और वहां पर मलबा भी साफ हो रहा था। इसी दौरान चबूतरा निर्माण के लिए खुदाई भी हो रही थी तो वहां पर एक शिलापट दिखाई दिया उसे सतेंद्र निशानी के तौर पर वहां से ले आए और घर पर आज तक संजोकर रखा है।

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