लखनऊ कैथेड्रल चर्च : आइरिस मूल के सैनिकों ने 1860 में रखी आधारशिला, मुस्लिम परिवार 300 फीट ऊंचे क्रूस पर बांधता है स्टार

आइरिस मूल के सैनिकों ने 1860 में रखी आधारशिला, मुस्लिम परिवार 300 फीट ऊंचे क्रूस पर बांधता है स्टार
UPT | लखनऊ कैथेड्रल चर्च

Dec 21, 2024 16:13

लखनऊ का कैथेड्रल चर्च न केवल शहर का बल्कि पूरे उत्तर भारत का एक ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर है। वर्ष 1860 में ब्रिटिश हुकूमत के समय आइरिश मूल के सैनिकों ने इस चर्च की नींव रखी थी। पहली प्रार्थना सभा में केवल 200 लोग शामिल हुए थे। इसके पहले पादरी के रूप में आइरिश मूल के ग्लिसन की नियुक्ति की गई।

Dec 21, 2024 16:13

Lucknow News : शहर के सबसे बड़े कैथेड्रल चर्च में क्रिसमस की तैयारियां जोरों पर हैं। चर्च के 300 फीट ऊंचे क्रूस पर टिमटिमाटा दूधिया स्टार हर वर्ष क्रिसमस की खुशियों का संदेश देता है। इसे देखने के लिए लोग लालायित रहते हैं। यह स्टार सिर्फ ईसाई समुदाय ही नहीं, बल्कि अन्य धर्मों के लोगों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। इस साल भी चर्च से झांकियों का आयोजन करने की तैयारी की जा रही है और 24 दिसंबर की रात धर्माध्यक्ष जेराल्ड जान मथायस प्रभु यीशु का धार्मिक पद्धति के साथ अवतरण कराएंगे।

छह पीढ़ियों से मुस्लिम परिवार निभा रहा है परंपरा
लखनऊ के इस कैथेड्रल चर्च की सबसे खास बात यह है कि 300 फीट ऊंचे क्रूस पर स्टार लगाने का काम एक मुस्लिम परिवार पिछले छह पीढ़ियों से करता आ रहा है। मुहम्मद अली वर्तमान में इस काम को अंजाम देते हैं। उन्होंने बताया कि उनके पिता माजिद अली भी यह काम करते थे। यह परंपरा उनके परिवार में इतनी खास है कि उनकी मां सन्नोखां और पिता रोजा रखकर उनके सफलतापूर्वक स्टार लगाने का इंतजार करते हैं।



खतरे को मात देकर 300 फीट ऊंचाई पर स्टार लगाना
300 फीट ऊंचाई पर क्रूस पर चढ़कर स्टार लगाना कोई आसान काम नहीं है। मुहम्मद अली बताते हैं कि स्टार लगाने के दौरान हवा के रुख का ध्यान रखना पड़ता है। हर बार स्टार लगाने से पहले इसकी तारीख तय की जाती है। उनके परिवार के लिए यह सिर्फ एक काम नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है, जिसे वे पूरे दिल से निभाते हैं। कैथेड्रल चर्च के फादर डॉ. डोनाल्ड डिसूजा ने बताया कि क्रिसमस की तैयारियों में सभी समुदायों के लोग हिस्सा लेते हैं। चर्च परिसर में चरही (प्रभु यीशु के जन्म की झांकी) बनाई जाती है, साथ ही पोस्टरों पर प्रभु यीशु के संदेश और प्रवचन लिखे जाते हैं। रोशनी और सजावट से पूरा चर्च जगमगा उठता है।

नृत्य नाटिका और झांकियों से सजेगा क्रिसमस
25 दिसंबर को पूरे देश में क्रिसमस का जश्न मनाया जाएगा। इस दौरान लखनऊ के गिरिजाघरों में कई आयोजन होंगे। कैथेड्रल चर्च इस मौके पर सबसे ज्यादा आक​र्षण का केंद्र रहता है। हजरतगंज में क्रिसमस के मौके पर शाम को भारी भीड़ उमड़ती है। इसमें हर धर्मों के लोग मौजूद रहते हैं। खासतौर पर युवाओं की भारी भीड़ रहती है। यातायात प्रबंधन के लिए इस दौरान मुख्य सड़क पर दोनों ओर वाहनों की आवाजाही पूरी तरह से प्रतिबंधित रहती है। लोग कैथेड्रल चर्च के प्रांगण में कैंडल जलाकर प्रभु यीशु के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हैं। इस मौके पर नृत्य नाटिका के साथ-साथ प्रभु यीशु के जीवन की झलक दिखाने वाले 26 से अधिक आदमकद पोस्टर लगाए जाने की तैयारी की जा रही है। इनमें उनके अवतरण की कहानी और संदेश दर्ज होंगे। 24 दिसंबर की रात से ही पूरे शहर के चर्चों में मुख्य आयोजन शुरू हो जाएंगे।

लखनऊ में धर्म और संस्कृति का अनोखा संगम
कैथेड्रल चर्च का यह क्रिसमस आयोजन सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक सौहार्द का प्रतीक है। मुस्लिम परिवार का छह पीढ़ियों से चर्च से जुड़कर स्टार टांगने की परंपरा यह दिखाती है कि लखनऊ में धर्म और संस्कृति का अनोखा संगम है। यह आयोजन सभी समुदायों को जोड़ने का काम करता है और शहर की गंगा-जमुनी तहजीब को बरकरार रखता है।

लखनऊ के ऐतिहासिक कैथेड्रल चर्च का गौरवशाली इतिहास
लखनऊ का कैथेड्रल चर्च न केवल शहर का बल्कि पूरे उत्तर भारत का एक ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर है। वर्ष 1860 में ब्रिटिश हुकूमत के समय आइरिश मूल के सैनिकों ने इस चर्च की नींव रखी थी। पहली प्रार्थना सभा में केवल 200 लोग शामिल हुए थे। इसके पहले पादरी के रूप में आइरिश मूल के ग्लिसन की नियुक्ति की गई। यह चर्च न केवल धार्मिक गतिविधियों में बल्कि शैक्षणिक, चिकित्सा और सामाजिक सेवा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

डालीगंज से हजरतगंज तक चर्च का सफर, भारतीय और इटालियन वास्तुकला का अद्भुत संगम
लखनऊ में कैथोलिक समुदाय का पहला चर्च डालीगंज में बना था। हालांकि, जगह की कमी के चलते वर्ष 1860 में हजरतगंज में भूमि ली गई। उस समय हजरतगंज शहर के बाहरी क्षेत्र में था। यहां छोटे चर्च का निर्माण हुआ, जिसे वर्ष 1977 में वर्तमान भव्य कैथेड्रल बिल्डिंग का रूप दिया गया। नाव के आकार में दिखने वाले कैथेड्रल चर्च की बिल्डिंग भारतीय और इटालियन आर्किटेक्ट्स की कलात्मकता का नतीजा है। इस डिजाइन के पीछे गहरी आध्यात्मिक सोच थी। चर्च की संरचना यह संदेश देती है कि यह चर्च एक नाव की तरह है, जो भक्तों को स्वर्ग के रास्ते तक पहुंचाने का प्रतीक है। चर्च का नाम 'कैथेड्रल' लैटिन शब्द 'कतेद्रा' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'बैठका' या वह स्थान जहां धर्माध्यक्ष बैठते हैं।

शैक्षणिक और सामाजिक सेवाओं में अग्रणी
कैथेड्रल चर्च न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक सेवा के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनाए हुए है। यह गरीब बच्चों की शिक्षा में सहयोग करता है और उनकी फीस माफ कराने का प्रयास करता है। सेंट फ्रांसिस और सेंट पॉल स्कूल जैसे प्रतिष्ठित संस्थान इस चर्च से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा, सप्रू मार्ग पर स्थित प्रेम निवास अनाथालय में अनाथ बच्चों की देखभाल और उनकी सभी आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाता है। चर्च अनाथालयों में रह रहे बच्चों को सहारा देता है और जरूरतमंद परिवारों की शिक्षा से लेकर चिकित्सा तक हर प्रकार की मदद करता है।

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