उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित जय प्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (JPNIC) ने समाजवादी पार्टी (SP) के नेताओं का गुस्सा भड़का दिया है।
क्या है जेपीएनआईसी? : 813 करोड़ रुपये में बनी बिल्डिंग खंडहर जैसे हाल में, इसलिए अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट...
Oct 11, 2024 16:19
Oct 11, 2024 16:19
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अखिलेश ने सरकार पर लगाए गंभीर आरोप
अखिलेश यादव ने मीडिया से बातचीत में आरोप लगाया कि टीन शेड लगाकर सरकार कुछ छिपाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि कहीं सरकार इसे बेचे जाने की योजना तो नहीं बना रही। यादव ने कहा, "जयप्रकाश नारायण की जयंती के दिन श्रद्धांजलि देने से रोकना सभ्य लोगों की पहचान नहीं है।" उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जेपीएनआईसी के मेन गेट पर टिन लगाने का वीडियो साझा किया, जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सपा कार्यकर्ता हर साल इस अवसर पर जयंती मनाते हैं, लेकिन इस बार उन्हें माल्यार्पण से रोक दिया गया।
क्या है जेपीएनआईसी?
जेपीएनआईसी को अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट माना जाता है। सपा सरकार के कार्यकाल में 2013 में इसकी नींव रखी गई थी और 2016 तक इस पर 813 करोड़ रुपये का खर्च आया। 11 अक्टूबर 2016 को अखिलेश यादव ने स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन किया, जिसमें ऑल वेदर ओलंपिक साइज स्विमिंग पूल और मल्टीपर्पज कोर्ट जैसी सुविधाएं थीं। हालांकि, इसके बाद से कई हिस्सों को बंद कर दिया गया, और केंद्र में समाजवादी विचारक जय प्रकाश नारायण की प्रतिमा भी स्थापित की गई।
बिल्डिंग अब खंडहर में तब्दील
दुर्भाग्यवश, सपा की सरकार जाने के बाद जनता की मेहनत की कमाई से बने जेपीएनआईसी की स्थिति खंडहर में तब्दील होती जा रही है। अब यह इमारत टूट-फूट का शिकार हो चुकी है, और यहां की लैंडस्केपिंग भी जंगल में बदल गई है। स्पोर्ट्स ब्लॉक में जो निर्माण कार्य हुआ था, वह भी बर्बाद हो गया है। कन्वेंशन ब्लॉक, पार्किंग ब्लॉक और म्यूजियम ब्लॉक की भी स्थिति बदहाल है। मुख्य बिल्डिंग की छत पर लगे टाइल्स भी कई स्थानों पर टूट चुके हैं।
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खंडहर में तब्दील को बताया राजनीतिक प्रतिशोध का परिणाम
इस प्रकार, जेपीएनआईसी का जो सपना अखिलेश यादव ने देखा था, वह अब अपनी बदहाली की दास्तान बयां कर रहा है। भाजपा सरकार की आलोचना करते हुए यादव ने कहा कि यह केवल राजनीतिक प्रतिशोध का परिणाम है, जिसके चलते इस प्रोजेक्ट की उपेक्षा की जा रही है। जेपीएनआईसी की वर्तमान स्थिति न केवल प्रदेश की संस्कृति और विरासत के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाती है, बल्कि यह यह भी स्पष्ट करती है कि किस तरह राजनीतिक बदलावों का असर विकास परियोजनाओं पर पड़ता है।
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