केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) रहमानखेडा, लखनऊ द्वारा विकसित "अवध समृद्धि" और "अवध मधुरिमा" नामक दो नई प्रजातियां जल्द ही रिलीज की जाएंगी...
आम के शौकीनों के लिए खुशखबरी : जल्द आ रही हैं फलों के राजा की नई प्रजातियां, कृषि निर्यात में उछाल की उम्मीद
Sep 24, 2024 18:48
Sep 24, 2024 18:48
- आम की दो नई प्रजातियां जल्द रिलीज की जाएंगी
- आम की नई प्रजातियों का लाभ विशेष रूप से यूपी को मिलेगा
- आम की खेती में नई संभावनाएं खुलेंगी
300 ग्राम का होता है एक आम
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. टी. दामोदरन के बताया कि अवध समृद्धि की विशेषताएं इसे विशेष बनाती हैं। यह प्रजाति नियमित रूप से फल देती है और इसका आकर्षक रंग इसे और भी लोकप्रिय बनाता है। एक फल का वजन लगभग 300 ग्राम होता है और पेड़ की ऊंचाई 15 से 20 फीट के बीच होती है, जिससे इसका प्रबंधन सरल है। इसकी फसल जुलाई और अगस्त में पकती है। इस समय अवध समृद्धि का फील्ड ट्रायल चल रहा है, जबकि अवध मधुरिमा की रिलीज में थोड़ी और देर हो सकती है।
यूपी को मिलेगा विशेष लाभ
उत्तर प्रदेश, जो कि देश का सबसे बड़ा आम उत्पादक राज्य है, को नई आम प्रजातियों से विशेष लाभ मिलने की उम्मीद है। ये प्रजातियां, जिनमें "अवध समृद्धि" और "अवध मधुरिमा" शामिल हैं, न केवल आकर्षक रंग और औसत आकार के कारण स्थानीय बाजारों में अच्छी कीमत प्राप्त करेंगी, बल्कि इनमें अधिक दिनों तक भंडारण की क्षमता भी है। इसलिए, इनका निर्यात करने की संभावनाएं भी बहुत अधिक हैं, खासकर अमेरिका और यूरोपीय बाजारों में, जहां रंगीन आम की मांग बढ़ रही है।
कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए सीएम योगी की पहल
दरअसल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश को कृषि उत्पादों के निर्यात का केंद्र बनाने की दिशा में कई पहल की हैं। इसके लिए राज्य में एक्सप्रेसवे का एक जाल बिछाया जा रहा है, जिसमें पूर्वांचल और बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे पहले से चालू हैं। इसके अलावा, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे का निर्माण भी अंतिम चरण में है। सीएम का स्पष्ट निर्देश है कि महाकुंभ से पहले गंगा एक्सप्रेसवे का कार्य पूरा हो जाए, ताकि उत्पादों को जल्दी और सुरक्षित तरीके से निर्यात किया जा सके।
प्रयागराज से हल्दिया तक जलमार्ग भी होगा सहायक
इसके साथ ही सरकार जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट को एक्सपोर्ट हब के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है, जिससे कृषि उत्पादों की गुणवत्ता और मानकों को ध्यान में रखते हुए आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जा सकें। इसके अलावा, प्रयागराज से हल्दिया तक बने जलमार्ग को भी कृषि उत्पादों के निर्यात में सहायक माना जा रहा है, और इसे अयोध्या से जोड़ने की योजना है। इससे राज्य के कृषि उत्पादों का निर्यात और भी सुगम होगा। इसके पहले भी सीआईएसएच-अंबिका और सीआईएसएच-अरुणिका प्रजातियां विकसित कर चुका है।
अंबिका प्रजाती की खासियत
अंबिका एक ऐसी आम की प्रजाति है जो नियमित रूप से फल देती है और अधिक उपज के लिए जानी जाती है। इसके फल पीले रंग के होते हैं, जिन पर गहरा लाल ब्लश होता है। गूदे का रंग गहरा पीला, ठोस और कम रेशे वाला होता है, जो इसकी गुणवत्ता को बढ़ाता है। इसकी भंडारण क्षमता भी अच्छी है और एक फल का वजन लगभग 350 से 400 ग्राम होता है। रोपण के दस साल बाद, प्रति पौधे लगभग 80 किलोग्राम उपज मिलती है, जिससे यह स्थानीय बाजारों में लोकप्रिय होती है और निर्यात के लिए भी अच्छी संभावनाएं रखती है।
इन राज्यों में उगाई जाती है अंबिका की फसल
यह प्रजाति विभिन्न जलवायु स्थितियों में उगाई जा सकती है, हालांकि यह देश के उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों को छोड़कर उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अधिक उपयुक्त है। अंबिका की फसल उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में ली जा सकती है। इसके आकर्षक रंग और आकार इसे विशेष रूप से ग्राहकों के बीच पसंदीदा बनाते हैं।
अरुनिका प्रजाति की खासियत
अरुनिका एक ऐसी आम की प्रजाति है जो नियमित रूप से फल देती है और देर से पकने के लिए जानी जाती है। इसके फल चिकने और आकर्षक नारंगी पीले रंग के होते हैं, जिन पर लाल ब्लश होता है, जो उन्हें खास बनाता है। इन फलों का स्वाद उत्तम होता है और उनकी गुणवत्ता भी उत्कृष्ट होती है। भंडारण क्षमता अच्छी होने के साथ-साथ, एक फल का वजन लगभग 190 से 210 ग्राम होता है और इसका गूदा नारंगी पीला, ठोस और कम रेशेदार होता है।
सघन बागवानी के लिए आदर्श है अरुनिका की प्रजाति
इस प्रजाति का पेड़ बौना होता है और इसकी छत्रिका घनी होती है। रोपण के दस साल बाद, प्रति पौधे लगभग 70 किलोग्राम फसल मिलती है, जिससे यह सघन बागवानी के लिए आदर्श होती है। अरुनिका प्रजाति उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय दोनों जलवायु स्थितियों में उगाई जा सकती है और यह आम उत्पादक क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
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नई प्रजाति को विकसित करने में लगते हैं बीस साल
केंद्रीय संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक, डॉ. आशीष यादव के अनुसार, आम की किसी नई प्रजाति को विकसित करने में लगभग बीस साल का समय लगता है। प्रारंभिक चरण में, यह प्रजाति पहले उस संस्थान में परीक्षण की जाती है, जहां इसे विकसित किया गया है। अगर यहां पर परीक्षण सफल रहता है, तो इसे अन्य राज्यों या संस्थाओं में भी परीक्षण के लिए भेजा जाता है। जब सभी स्थानों से सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं, तब संबंधित प्रजाति को आम जनता के लिए जारी किया जाता है।
इन प्रमुख संस्थानों ने तैयार की आम की नई प्रजातियां
गौरतलब है कि परंपरागत किस्मों के अलावा, देश के प्रमुख शोध संस्थानों के वैज्ञानिकों ने कई नई प्रजातियों को विकसित किया है जो व्यापक स्वीकार्यता और व्यावसायिक उपयोगिता रखती हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण किस्में हैं: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा (नई दिल्ली) ने पूसा अरुणिमा, पूसा सूर्या, पूसा प्रतिभा, पूसा श्रेष्ठ, पूसा पीताम्बर, पूसा लालिमा, पूसा दीपशिखा, और पूसा मनोहारी जैसी प्रजातियों का विकास किया है। इसी तरह, आईसीएआर-भारतीय बागवानी शोध संस्थान, बेंगलुरु ने अर्का सुप्रभात, अर्का अनमोल, अर्का उदय, अर्का पुनीत, अर्का अरुणा, और अर्का नीलाचल केसरी जैसी नई किस्में तैयार की हैं।
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