जांच में पाया गया कि बच्चे के दिमाग से पानी रिस रहा था, जो घातक साबित हो सकता था। इससे न केवल पैर लकवाग्रस्त होने का खतरा था, बल्कि बच्चे की जान भी खतरे में थी। ऐसे में डॉक्टरों ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए ऑपरेशन को अनिवार्य बताया।
मायलोमेनिंगोसील लिपोमा : चार दिन के मासूम को जन्मजात विकृति से मिली निजात, बलरामपुर अस्पताल के चिकित्सकों ने की जटिल सर्जरी
Jan 01, 2025 12:03
Jan 01, 2025 12:03
परिवार की आर्थिक स्थिति बनी चुनौती
नरही निवासी मोहम्मद फरुन के परिवार ने चार दिन पहले जन्मे बच्चे की रीढ़ और गर्दन में गांठ देखी। जब उन्होंने निजी डॉक्टरों से परामर्श लिया, तो इलाज का खर्च उनकी क्षमता से बाहर था। ऐसे में उन्होंने बलरामपुर अस्पताल का रुख किया। ओपीडी में मौजूद न्यूरो सर्जन डॉ. विनोद कुमार तिवारी ने बच्चे की स्थिति का गंभीरता से अध्ययन किया और तुरंत ऑपरेशन करने का निर्णय किया।
दिमाग से पानी रिसने की गंभीर स्थिति
जांच में पाया गया कि बच्चे के दिमाग से पानी रिस रहा था, जो घातक साबित हो सकता था। इससे न केवल पैर लकवाग्रस्त होने का खतरा था, बल्कि बच्चे की जान भी खतरे में थी। ऐसे में डॉक्टरों ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए ऑपरेशन को अनिवार्य बताया।
जटिल ऑपरेशन और सर्जिकल प्रक्रिया
डॉ. विनोद कुमार तिवारी के अनुसार, गांठ के कारण बच्चे की स्पाइनल कार्ड की एमआरआई नहीं हो सकी। इसलिए गांठ को काटकर निकाला गया। कटे हुए हिस्से पर कूल्हे की हड्डी का टुकड़ा लगाकर उसे टाइटेनियम प्लेट से जोड़ा गया। इस प्रक्रिया को बेहद सावधानी और विशेषज्ञता के साथ पूरा किया गया।
एनेस्थीसिया देना सबसे बड़ी चुनौती
चार दिन के नवजात को एनेस्थीसिया देना बेहद चुनौतीपूर्ण था। एनेस्थीसिया विभाग के प्रमुख डॉ. एमपी सिंह ने इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया। ऑपरेशन माइक्रोस्कोप की मदद से किया गया, ताकि बच्चे को किसी प्रकार की अतिरिक्त परेशानी न हो।
चिकित्सा टीम का सामूहिक प्रयास, बच्चे की स्थिति में सुधार
इस ऑपरेशन को सफल बनाने में कई विशेषज्ञ डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ शामिल रहे। सर्जरी टीम में डॉ. विनोद तिवारी, डॉ. एमपी सिंह, डॉ. मिर्जा, डॉ. सीपी सिंह, डॉ. पीयूष, डॉ. जूही के साथ नर्सिंग स्टाफ में निर्मला, उर्मिला सिंह और ऋषि की अहम भूमिका रही। ऑपरेशन के बाद बच्चे को आईसीयू में रखा गया, जहां उसकी हालत में तेजी से सुधार हो रहा है। अस्पताल के निदेशक डॉ. सुशील प्रकाश, सीएमएस डॉ. संजय तेवतिया, और एमएस डॉ. हिमांशु चतुर्वेदी ने इस सफलता के लिए पूरी टीम को बधाई दी।
दुर्लभ विकृति मायलोमेनिंगोसील लिपोमा के खतरे
यह विकृति नवजात बच्चों में दुर्लभ रूप से पाई जाती है। इसमें रीढ़ और गर्दन की हड्डी में गांठ बनने लगती है, जो दिमागी पानी के रिसाव, लकवे और यहां तक कि मौत का कारण बन सकती है। ऐसे मामलों में जल्दी सर्जरी करना आवश्यक होता है।
क्या है मायलोमेनिंगोसील लिपोमा?
मायलोमेनिंगोसील लिपोमा एक प्रकार की स्पाइना बिफिडा (Spina Bifida) का रूप है, जो भ्रूण के विकास के दौरान रीढ़ की हड्डी के पूर्ण रूप से विकसित न होने के कारण होता है। इस स्थिति में, रीढ़ की हड्डी के कुछ हिस्से त्वचा की सतह पर गांठ के रूप में उभर आते हैं। यह गांठ लिपोमा (वसायुक्त ऊतक) और तंत्रिका तंतुओं से बनी होती है।
इसके लक्षण कैसे पहचानें?
- गांठ का उभरना : नवजात की पीठ, गर्दन या रीढ़ के किसी हिस्से पर गांठ का दिखाई देना।
- तंत्रिका संबंधी समस्याएं : बच्चे के पैर या शरीर के अन्य हिस्सों में कमजोरी या लकवा।
- दिमागी पानी का रिसाव : दिमाग और रीढ़ की हड्डी में बहने वाले तरल का रिसाव, जो गंभीर संक्रमण का कारण बन सकता है।
- विकास में बाधा : यह विकृति बच्चे के सामान्य विकास को बाधित कर सकती है।
- गर्भावस्था के दौरान पोषण की कमी : फॉलिक एसिड की कमी भ्रूण के तंत्रिका तंत्र के विकास को प्रभावित कर सकती है।
- आनुवंशिक कारक : परिवार में तंत्रिका तंत्र संबंधी बीमारियों का इतिहास।
- गर्भावस्था के दौरान संक्रमण : कुछ विशेष प्रकार के संक्रमण भ्रूण के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं।
मायलोमेनिंगोसील लिपोमा के कारण कई गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जिनमें शामिल हैं-
- हाइड्रोसिफलस : दिमाग में तरल का अत्यधिक संचय।
- मेनिंजाइटिस : दिमाग और रीढ़ की झिल्ली में संक्रमण।
- लकवे की संभावना : तंत्रिका तंतुओं के क्षतिग्रस्त होने से शरीर के निचले हिस्से में लकवा।
मायलोमेनिंगोसील लिपोमा का इलाज जटिल होता है और इसमें विशेषज्ञ डॉक्टरों की जरूरत होती है।
- सर्जरी का महत्व : गांठ को निकालना और रीढ़ की हड्डी को सही स्थिति में लाना।
- टाइटेनियम प्लेट और ग्राफ्ट का उपयोग कर हड्डी को जोड़ना।
- फिजियोथेरेपी : ऑपरेशन के बाद बच्चे को फिजियोथेरेपी के माध्यम से शारीरिक कार्यक्षमता बहाल करने में मदद की जाती है।
- दिमागी पानी का प्रबंधन : शंट (Shunt) लगाने जैसी प्रक्रियाओं के जरिए हाइड्रोसिफलस को नियंत्रित किया जाता है।
- नवजात की नाजुक स्थिति : छोटे बच्चों की त्वचा, हड्डियां और अंग बेहद संवेदनशील होते हैं, जिससे ऑपरेशन के दौरान सावधानी जरूरी है।
- एनेस्थीसिया का प्रबंधन : नवजात को एनेस्थीसिया देना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि ओवरडोज से जान का खतरा रहता है।
- गर्भावस्था के दौरान पोषण : फॉलिक एसिड युक्त आहार का सेवन करें।
- नियमित जांच : गर्भावस्था के दौरान नियमित अल्ट्रासाउंड और डॉक्टर की सलाह लें।
- संक्रमण से बचाव : गर्भावस्था के दौरान किसी भी संक्रमण का तुरंत इलाज कराएं।
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