पावर ऑफिसर एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वकीलों से संपर्क करके एक पांच सदसीय लीगल पैनल तैयार किया है। अब इन्हें सभी गतिविधियों की जानकारी संवैधानिक तरीके से दी जाएगी।
UPPCL Privatisation : अब कानूनी लड़ाई की तैयारी, अभियंताओं ने बनाई लीगल टीम, सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट के अधिवक्ता शामिल
Dec 23, 2024 10:18
Dec 23, 2024 10:18
यूपी पावर ऑफिसर एसोसिएशन इस तरह लड़ाई को देगा धार
यूपी पावर ऑफिसर एसोसिएशन की कोर कमेटी ने इसे लेकर अहम निर्णय किया है। संगठन ने सोमवार को जानकारी दी कि अब तक के पीपीपी मॉडल पर पावर कारपोरेशन के उठाए कदम समीक्षा की गई है, जिसमें यह तय किया कि निजीकरण की प्रक्रिया को यदि यूपीपीसीएल की तरफ से बढ़ाया जाएगा तो संगठन संवैधानिक तरीका अपनाएगा। अपने संवैधानिक दायित्व के तहत आरक्षण को बचाने के लिए लीगल प्रक्रिया के तहत आगे की अपनी लड़ाई को धार दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट के वकीलों को जिम्मा
इसके लिए पावर ऑफिसर एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वकीलों से संपर्क करके एक पांच सदस्यीय लीगल पैनल तैयार किया है। अब इन्हें सभी गतिविधियों की जानकारी संवैधानिक तरीके से दी जाएगी और जो भी उचित फैसला करना आवश्यक होगा, वह निर्णय आरक्षण पर हो रहे कुठाराघात को रोकने व निजीकरण प्रक्रिया को वापस करने के लिए उठाया जाएगा।
हर गतिविधियों पर नजर
उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष के बी राम, कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, महासचिव अनिल कुमार, सचिव आरपीकेेन, अतिरिक्त महासचिव अजय कुमार, संगठन सचिव बिंदा प्रसाद, प्रभाकर, हरिश्चंद्र वर्मा, ट्रांसमिशन अध्यक्ष सुशील कुमार वर्मा, नीरज कुमार, अरुण कुमार, विनय कुमार ने प्रदेश में सभी बिजली कंपनियों में अपने सदस्यों से कहा है कि वह हर गतिविधियों पर नजर रखें और जो भी स्थितियां बिजली कंपनियों मे बन रही हैं। खास तौर पर पूर्वांचल व दक्षिणांचल में इसकी सूचना संगठन कार्यालय को अभिलंब दी जाए।
आरक्षण पर चुप्पी साधने पर यूपीपीसीएल को घेरा
एसोसिएशन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि पावर कारपोरेशन जैसे ही निजीकरण प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा, उसके आधार पर संगठन अपने लीगल फ्रेमवर्क के तहत अपनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए आगे की संवैधानिक लड़ाई की घोषणा करेगा। संगठन के नेताओं ने कहा जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश सरकार के संज्ञान में लाने के बाद भी आज तक पावर कारपोरेशन ने निजीकरण के फलस्वरुप आरक्षण की व्यवस्था कैसे सुनिश्चित होगी, उस पर कोई बयान नहीं दिया, उसे यह सिद्ध होता है कि पावर कारपोरेशन को दलित और पिछड़े वर्गों के आरक्षण से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि इसके लिए संगठन हर लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है। जहां तक संविधान उसे इजाजत देगा वहां तक लड़ाई को आगे बढ़ाया जाएगा।
प्रबंधन पर भरोसा खत्म, सरकार से हस्तक्षेप की मांग
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने कहा कि निजीकरण से कर्मचारियों और उपभोक्ताओं दोनों को नुकसान होगा। जिस तरीके से पीपीपी मॉडल को लेकर अफसरों ने तेजी दिखाई, उससे बिजली निगम के प्रबंधन पर सभी का भरोसा खत्म हो चुका है। ऐसे में सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप कर निजीकरण का निर्णय वापस ले।
बिजली निजीकरण पर संघर्ष : करो या मरो आंदोलन का ऐलान
पूर्वांचल और दक्षिणांचल निगमों को पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) के तहत सौंपने के प्रस्ताव के विरोध में देशभर के ऊर्जा संगठनों के प्रतिनिधि 'करो या मरो' आंदोलन की घोषणा कर चुके हैं। टेंडर जारी होते ही अनिश्चितकालीन संघर्ष शुरू करने की चेतावनी दी गई है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति का कहना है कि ओबरा डी और अनपरा ई परियोजनाओं को राज्य विद्युत उत्पादन निगम को सौंपने और 25 जनवरी 2000 के समझौते के तहत सभी विद्युत वितरण निगमों को मिलाकर राज्य विद्युत परिषद लिमिटेड का पुनर्गठन शामिल किया जाए।
उपभोक्ताओं और कर्मचारियों के लिए हितकारी नहीं
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने दलील दी है कि निजीकरण से उपभोक्ताओं और कर्मचारियों को कोई फायदा नहीं होगा। 7 साल में बिजली कर्मचारियों ने 24 प्रतिशत लाइन हानियां कम की हैं और अगले एक साल में इसे 12 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य रखा है। निजीकरण से न केवल कर्मचारियों का उत्पीड़न बढ़ेगा, बल्कि उपभोक्ताओं की समस्याएं भी बढ़ेंगी।
देशभर में समर्थन : 27 लाख अभियंता आंदोलन को तैयार
नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स के संयोजक प्रशांत चौधरी के अनुसार, अगर निजीकरण का फैसला वापस नहीं लिया गया, तो देशभर के 27 लाख से अधिक अभियंता अनिश्चितकालीन आंदोलन में शामिल होंगे। किसी भी कर्मचारी का उत्पीड़न होने पर तीखी प्रतिक्रिया दी जाएगी। इसके साथ ही निजीकरण के दायरे में आने वाले 42 जिलों में रथ यात्रा निकाली जाएगी और वहां पंचायतों का आयोजन किया जाएगा। श्रम संगठनों ने कहा कि ग्रेटर नोएडा, आगरा और अन्य राज्यों में निजीकरण पहले ही असफल हो चुका है।
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