गौतमबुद्ध नगर पुलिस कमिश्नरेट की उपायुक्त (DCP) सुनीति सिंह के लिए कानपुर देहात जिला एवं सत्र न्यायालय का एक हालिया फैसला मुश्किलें बढ़ाने वाला साबित हुआ है। परिवार को दी गई 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता की...
गौतमबुद्ध नगर पुलिस को बड़ा झटका : कस्टडी डेथ केस में कानपुर देहात कोर्ट ने सुनाया फैसला, वेतन से आर्थिक सहायता की वसूली
Oct 25, 2024 11:42
Oct 25, 2024 11:42
क्या है पूरा मामला
12 दिसंबर 2022 को कानपुर देहात में लूट के एक मामले में बलवंत सिंह को हिरासत में लिया गया था। आरोप है कि हिरासत के दौरान बलवंत सिंह को इतनी बर्बरता से पीटा गया कि उसकी मौत हो गई। इस घटना के बाद कानपुर देहात में जनता में आक्रोश फैल गया था। नौ पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। इस मामले में आरोपी तत्कालीन शिवली थाने के एसएचओ राजेश कुमार सिंह और मैथा चौकी इंचार्ज ज्ञान प्रकाश पांडेय को अदालत ने धारा 304 (2) आईपीसी के तहत दोषी ठहराया। इस धारा के अंतर्गत अधिकतम सजा 10 साल होती है। अदालत ने दोनों अधिकारियों को 5-5 साल की कैद और 10-10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
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सीनियर अफसरों की भूमिका पर सवाल
अदालत में दोषी ठहराए गए इंस्पेक्टर राजेश कुमार सिंह और सब-इंस्पेक्टर ज्ञान प्रकाश पांडेय ने अपने बयान में कहा कि उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निर्देशों का पालन किया। उनका कहना था कि उनकी बलवंत सिंह से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी और उनकी मंशा बलवंत को नुकसान पहुंचाने की नहीं थी, बल्कि वे अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे थे।
जांच में वरिष्ठ अफसर सवालों में घिरे
बलवंत सिंह की मौत के मामले की जांच कन्नौज के तत्कालीन एसपी कुंवर अनुपम सिंह के नेतृत्व में की गई थी। जांच में पाया गया कि कानपुर देहात के तत्कालीन एसपी सुनीति सिंह, रसूलाबाद के सीओ (CO) आशाराम पाल सिंह, अकबरपुर के सीओ (CO) प्रभात कुमार और रनिया थाने के एसएचओ (SHO) शिवप्रकाश सिंह ने अपने पदों का दुरुपयोग किया और उचित कर्तव्यों का पालन नहीं किया। अदालत ने इनके खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया कि बलवंत सिंह की पत्नी को दिए गए 10 लाख रुपये का मुआवजा इन अधिकारियों के वेतन से काटा जाए।
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सुनीति सिंह के कार्यकाल पर पड़ेगा प्रभाव
अदालत ने इस मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि बलवंत सिंह महज 30 वर्ष का एक स्वस्थ व्यक्ति था। उसकी असमय मौत ने उसकी पत्नी और नाबालिग बच्चों को बेसहारा कर दिया है। भले ही मुआवजा उन्हें कुछ राहत दे सके, लेकिन एक पिता का प्रेम और संरक्षण उन्हें वापस नहीं मिल सकता। यह निर्णय पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों की जिम्मेदारी और संवेदनशीलता पर भी एक बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। इस फैसले का असर वर्तमान में गौतमबुद्ध नगर की DCP सुनीति सिंह के कार्यकाल पर भी पड़ सकता है।
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