मझवां में सपा का सपना अधूरा : 'बंटोगे तो कटोगे' के नारे ने बटोरे वोट, इन 5 कारणों से हुई अखिलेश की हार

'बंटोगे तो कटोगे' के नारे ने बटोरे वोट, इन 5 कारणों से हुई अखिलेश की हार
UPT | मझवां सीट पर बीजेपी की जीत

Nov 24, 2024 20:32

मिर्जापुर की मझवां सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल की है। यहां बीजेपी उम्मीदवार सुचिस्मिता मौर्य ने सपा की प्रत्याशी ज्योति बिंद को 4836 वोटों से हराया...

Nov 24, 2024 20:32

Mirzapur News : मिर्जापुर की मझवां सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल की है। यहां बीजेपी उम्मीदवार सुचिस्मिता मौर्य ने सपा की प्रत्याशी ज्योति बिंद को 4836 वोटों से हराया। इस चुनाव में कुल 50.41 प्रतिशत मतदान हुआ, जो अपेक्षाकृत कम था। मतदान प्रतिशत में गिरावट को लेकर सभी राजनीतिक दलों में चिंता थी, जिससे मुकाबला और भी रोमांचक हो गया था। हालांकि, बीजेपी की रणनीति सफल रही और उसने इस सीट पर विजय प्राप्त की।

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अखिलेश का PDA फार्मूला फेल
मिर्जापुर की मझवां विधानसभा उपचुनाव का परिणाम 32 राउंड की काउंटिंग के बाद सामने आया, जिसमें बीजेपी की प्रत्याशी सुचिस्मिता ने 4936 वोटों से जीत हासिल की। सुचिस्मिता मौर्य को कुल 77,503 वोट मिले, जबकि समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार ज्योति बिंद को 72,567 वोट और बहुजन समाज पार्टी के दीपू तिवारी को 34,800 वोट मिले। मझवां सीट पर समाजवादी पार्टी का पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (PDA) फार्मूला असरकारक साबित नहीं हुआ। हालांकि, बीजेपी की जीत की संभावना पहले से ही मजबूत थी, क्योंकि पार्टी का यहां मजबूत ग्राउंड कनेक्शन था, जबकि सपा का कनेक्शन अपेक्षाकृत कमजोर था। इसके अतिरिक्त, बसपा उम्मीदवार के लिए यहां कोई रैली भी नहीं हुई थी, जिससे उनकी स्थिति और कमजोर हुई।

इन 5 कारणों से हुई अखिलेश की हार...

1. रमेश बिंद के वायरल बयान से हुआ घाटा
समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी ज्योति बिन्द के पिता रमेश बिंद का जाति विशेष को लेकर दिये गये बयान घातक साबित हुआ। उनका वीडियो इस चुनाव में भी वायरल हुआ। जिसका असर दिखाई पड़ा। वीडियो में रमेश बिन्द यह कहते हुए दिखाई दिए हैं कि अगर उनकी बिरादरी के लोगों पर अगर किसी ने हाथ उठाया तो वो उसको सजा देंगे। उसमें उन्होंने एक मामले का उदाहरण देते हुए पुलिस थाना को फूंकने की बात भी कही है। हालांकि, वीडियो के वायरल होने के बाद सफाई देते हुए उनका बयान भी सामने आया था। उन्होंने कहा है था कि वो बीस वर्षों से समाज की सेवा कर रहे हैं। कहा कि मुझे पता चला है कि एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें विशेष रूप से ब्राम्हण विरोधी बताया गया है। वह वीडियो पूरी तरह से फर्जी है। उसमें जो आवाज है वो मेरी आवाज नहीं है।

2. 'बंटोगे तो कटोगे' के नारे ने बटोरे वोट
भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में वोट मांगने आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम बृजेश पाठक समेत तमाम नेताओं ने 'बंटोगे तो कटोगे' के नारे को बुलंद किया। इस नारे का असर रैलियों में दिखाई दिया, जहां यह नारा जोरदार तालियां बटोरता रहा। हालांकि, समाजवादी पार्टी ने इस नारे को गलत बताया और भाजपा पर बोटी पार्टी देने का आरोप भी लगाया, लेकिन इस आरोप का असर चुनाव परिणामों पर नहीं पड़ा। सीएम का यह नारा चुनावी रणनीति का गेम चेंजर साबित हुआ और भाजपा की जीत में इसका योगदान अहम था।

3. भाजपा ने इन नेताओं ने झोंकी अपनी ताकत
मतगणना के प्रथम चरण में बढ़त लेकर भाजपा प्रत्याशी आगे निकली तो यह सिलसिला अंतिम चरण तक जारी रहा। भाजपा प्रत्याशी सुचिस्मिता मौर्या को विजय दिलाने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मझवां सीट पर उत्तर से लेकर दक्षिण तक मतदाताओं को साधा। इसके लिए उन्होंने एक सप्ताह के अंदर दो जनसभा की। डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने भी जनसभा करने के साथ ही जन चौपाल लगाकर लोगों को भाजपा प्रत्याशी के लिए वोट मांगा था। इसके अलावा डिप्टी सीएम केशव मौर्य को मझवा क्षेत्र का तीन बार भ्रमण करना पड़ा। कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर को चुनाव प्रभारी बनाया गया था। जन समर्थन के लिए वह क्षेत्र में ही वह डटे रहे। इसके अलावा अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल, प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री आशीष पटेल के अलावा कई सांसद विधायक भाजपा के लिए जनसंपर्क अभियान में लग रहे। 

4. पिछड़े वर्ग का दबदबा
मझवां विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जहां पिछड़ा वर्ग के वोटरों की बड़ी संख्या है। इस सीट पर दलित, ब्राह्मण और बिंद वोटरों की संख्या करीब 60,000-60,000 है, जबकि कुशवाहा/मौर्य वोटर 30,000, पाल 22,000, राजपूत 20,000, मुस्लिम 22,000 और पटेल 16,000 हैं। 1960 में अस्तित्व में आई इस सीट पर ब्राह्मण, दलित और बिंद बिरादरी का प्रभाव रहा है। लेकिन इसके बावजूद यहां पर पिछड़े वर्ग का दबदबा रहा।

5. पहली बार चुनावी मैदान में उतरी थी ज्योति बिंद
सुचिस्मिता ने 2017 में भी भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतने का अनुभव हासिल किया था। जबकि ज्योति बिंद के लिए मझवां सीट पर यह पहला चुनाव था। ज्योति बिंद, मझवां से पूर्व विधायक और भदोही के पूर्व सांसद रमेश बिंद की बेटी हैं, लेकिन क्षेत्र में उनकी पहचान काफी सीमित थी। वहीं, सुचिस्मिता मौर्य के ससुर भी भाजपा के बड़े नेता हैं और उनकी क्षेत्र में मजबूत पकड़ रही है।

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हर राउंट में बदला खेल
मझवां सीट पर काउंटिंग की शुरुआत में ही बीजेपी प्रत्याशी ने बड़ी लीड ले थी। शुरू में ही सुचिस्मिता मौर्य 2000 से अधिक वोटों आगे चल रही थी। इसके बाद उनकी बढ़त लगातार बढ़ती गई। लेकिन मतगणना के 14वें राउंड के बाद भाजपा की बढ़त कम हो गई थी। 15वें राउंड के बाद यहां बीजेपी 1968 वोटों से आगे चल रही थी। इसके बाद 16 वें राउंड में बीजेपी 1432 वोटों से आगे चल रही थी।

इस राउंड में कांटे की टक्कर का हो गया था मुकाबला
मतगणना के 22वें राउंड में बीजेपी 3871 वोटों से आगे चल रही थी। वहीं ज्योति बिंद को 51310 वोट मिले थे। बसपा प्रत्याशी दीपू तिवारी को 23657 वोट मिले थे।  23वें राउंड की मतगणना के बाद बीजेपी का ग्राफ बढ़ता चला गया। लेकिन 28वें राउंड में मुकाबला कांटे की टक्कर का हो गया। सुचिस्मिता मौर्य को 69168 वोट, सपा प्रत्याशी डा. ज्योति बिंद को 63378 वोट और बसपा प्रत्याशी दीपू तिवारी को 30595 वोट मिले थे।

सपा नहीं खोल पाई खाता
मझवां विधानसभा सीट पर कांग्रेस, जनसंघ, जनता दल, बसपा और बीजेपी ने अब तक चुनावी जीत हासिल की है। 1952 से 1969 तक यह सीट सुरक्षित थी और 1974 में इसे सामान्य सीट के रूप में बदल दिया गया। इस दौरान कांग्रेस के नेताओं रुद्र प्रसाद और लोकपति त्रिपाठी ने विधायक पद पर जीत हासिल की। मझवां सीट से कांग्रेस ने 8 बार जबकि बीएसपी ने 5 बार जीत दर्ज की है। 2017 में बीजेपी की सुचिष्मिता मौर्य और 2022 में बीजेपी-निषाद पार्टी के डॉ. विनोद बिंद विधायक बने। हालांकि, समाजवादी पार्टी (सपा) अब तक इस सीट पर कोई भी चुनावी सफलता नहीं हासिल कर पाई है।

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