47 साल बाद संभल में हिंदू परिवार को मिली अपनी जमीन : 1978 के दंगों के दौरान सुरक्षा के लिए घर छोड़कर नरौली में बसना पड़ा था 

1978 के  दंगों के दौरान सुरक्षा के लिए घर छोड़कर नरौली में बसना पड़ा था 
UPT | 47 साल बाद संभल में हिंदू परिवार को मिली अपनी जमीन ।

Jan 15, 2025 15:32

संभल के मोहल्ला जगत में 47 साल बाद एक हिंदू परिवार को अपनी पुश्तैनी ज़मीन का कब्जा मिल गया है। यह ज़मीन 1978 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान खो गई थी, जब परिवार को सुरक्षा की खातिर नरौली में बसना पड़ा था। अब प्रशासन ने ज़मीन पर कब्जा वापस दिलाने की प्रक्रिया शुरू की है, जिससे परिवार को राहत मिली है।

Jan 15, 2025 15:32

sambhal News : संभल जिले के मोहल्ला जगत में एक हिंदू परिवार को 47 साल बाद अपनी पुश्तैनी ज़मीन का कब्जा मिला है। यह जमीन 1978 में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान खो गई थी, जब परिवार को सुरक्षा की खातिर अपने घर-बार को छोड़कर नरौली में बसना पड़ा था। हालाँकि, अब प्रशासन द्वारा इस जमीन पर कब्जा वापस दिलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, जिससे इलाके में एक नई उम्मीद और बदलाव की झलक दिख रही है। 



1978 का दंगा और परिवार का विस्थापन
रघुनंदन और उनके परिवार का इतिहास संभल जिले के महमूद खां सराय से जुड़ा हुआ था, जहां वे 1978 तक रहते थे। लेकिन जब उस समय सांप्रदायिक दंगे हुए, तो उनका परिवार अपनी जान की सुरक्षा के लिए नरौली क्षेत्र में पलायन कर गया। उनकी पुश्तैनी ज़मीन मोहल्ला जगत में स्थित थी, जिस पर बाद में कुछ अन्य समुदाय के लोगों ने कब्जा कर लिया और इसे विद्यालय की भूमि के रूप में दाखिल करा दिया। इस दौरान रघुनंदन का परिवार कई बार प्रशासन से अपनी ज़मीन को वापस दिलाने की गुहार लगा चुका था, लेकिन उसे कोई सुनवाई नहीं मिली थी।

प्रशासन का सक्रिय हस्तक्षेप
जब रघुनंदन के परिवार ने डीएम डॉ. राजेंद्र पैंसिया से शिकायत की, तो उन्होंने मामले की जांच का आदेश दिया। इसके बाद एसडीएम वंदना मिश्रा ने मौके पर जाकर खतौनी के आधार पर करीब डेढ़ बीघा जमीन चिह्नित कराई। चिह्नित की गई जमीन विद्यालय के परिसर में स्थित थी, जो आजाद जन्नत निशा कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के परिसर में थी। इस कदम से पीड़ित परिवार को एक बड़ी राहत मिली और उनकी लम्बे समय से चली आ रही समस्याओं का समाधान हुआ।

विद्यालय प्रबंधक का विरोध
हालांकि, विद्यालय प्रबंधक डॉ. शाजेव ने दावा किया कि यह जमीन 1971 से 1976 के बीच विद्यालय के नाम खरीदी गई थी और इसके बैनामे भी कराए गए थे। उन्होंने यह भी बताया कि विद्यालय की स्थापना 1968 में हुई थी, और तब से यह संस्था बिना सरकारी मदद के संचालित हो रही है। उनके अनुसार, चिह्नित की गई ज़मीन विद्यालय के मैदान का हिस्सा है, और यह जमीन 1971 से 1976 के बीच उनके नाम पर बैनामे की गई थी। लेकिन अभी तक वे कोई ठोस दस्तावेज़ पेश नहीं कर सके हैं, जो इस दावे को साबित कर सके।

फायर स्टेशन का बोर्ड और नई जानकारी
वहीं, इस मामले में एक नया मोड़ तब आया जब एसडीएम को विद्यालय परिसर में फायर स्टेशन संभल का पुराना बोर्ड लगा हुआ मिला। जब इस बारे में प्रबंधक से पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि दमकल विभाग के कर्मचारी फायर सिलेंडर लगाने के लिए आते थे, और उन्होंने यह बोर्ड लगवा दिया था, लेकिन एसडीएम ने इस पर संदेह व्यक्त करते हुए कहा कि यदि यह केवल प्रचार का बोर्ड होता, तो उस पर फायर स्टेशन संभल क्यों अंकित होता। इसके बाद एसडीएम ने दमकल विभाग को मौके पर बुलाया, और यह जानकारी प्राप्त की गई कि 1984 से पहले फायर स्टेशन इस जगह पर संचालित हो सकता था। 

इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए, एसडीएम ने अग्निशमन अधिकारी बाबूराम से रिकॉर्ड मंगवाए, ताकि यह सत्यापित किया जा सके कि फायर स्टेशन कब से इस जमीन पर संचालित हो रहा था। यदि फायर स्टेशन 1984 से पहले यहां संचालित हो रहा था, तो यह जमीन पहले से ही सार्वजनिक संपत्ति के रूप में उपयोग की जा रही होगी, न कि विद्यालय की निजी संपत्ति के रूप में।

विद्यालय और प्रशासन का तनाव
इस पूरे मामले में विद्यालय प्रबंधक डॉ. शाजेव ने प्रशासन के खिलाफ खड़े होते हुए कहा कि अगर प्रशासन उनके दावे को नजरअंदाज करता है, तो वे न्याय के लिए अगला कदम उठाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि उनके विद्यालय की जमीन के सभी दस्तावेज़ सही हैं, और उनका विद्यालय वित्तविहीन संस्था के रूप में 1968 से संचालित हो रहा है। डॉ. शाजेव का आरोप है कि प्रशासन उनके दस्तावेज़ों की उचित जांच नहीं कर रहा, और यदि यही स्थिति रही, तो वे न्यायालय का रुख करेंगे।

एसडीएम का बयान
एसडीएम वंदना मिश्रा ने इस मामले पर जानकारी दी कि उन्होंने मौके पर जाकर पैमाइश कराई और डेढ़ बीघा ज़मीन को चिह्नित कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि विद्यालय प्रबंधक से कोई भी सही दस्तावेज़ नहीं प्रस्तुत किए गए, जिससे प्रशासन को स्थिति स्पष्ट करने में मदद मिल सके। साथ ही, फायर स्टेशन के बोर्ड को लेकर भी जांच की जा रही है। एसडीएम ने यह भी कहा कि वे मामले की पूरी जानकारी एकत्र कर आगे की कार्रवाई करेंगे, ताकि किसी भी प्रकार की गलतफहमी या विवाद से बचा जा सके।

एक नई शुरुआत
यह मामला केवल एक परिवार की ज़मीन को वापस दिलाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस बड़ी लड़ाई का हिस्सा है जो समाज में भूमि अधिकारों और प्रशासनिक भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही है। यह मामले उन परिवारों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं, जो लंबे समय से अपनी ज़मीन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस घटना से यह भी संदेश जाता है कि जब प्रशासन सही दिशा में काम करता है, तो नागरिकों को उनके अधिकार वापस मिल सकते हैं, चाहे वह कितनी भी बड़ी बाधाओं का सामना क्यों न करना पड़े। संभल में यह ज़मीन विवाद एक बड़ा उदाहरण बन गया है, जिसमें प्रशासन और नागरिकों की सक्रियता से सही न्याय मिल सकता है। इसके परिणामस्वरूप, यह परिवार अब अपने पुश्तैनी भूमि पर वापस कब्जा पा सका है, जो उनके लिए एक नई शुरुआत की तरह है। 

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