इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक निर्णय सुनाया है। जिसमें कहा कि शेयर बाजार में निवेश करने के अपने जोखिम होते हैं और इन जोखिमों के कारण एक शेयर ब्रोकर के खिलाफ आपराधिक प्राथमिकी...
इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी : निवेश में नुकसान हो जाए तो ब्रोकर पर एफआईआर उचित नहीं, पढ़िए पूरी खबर
Sep 28, 2024 11:07
Sep 28, 2024 11:07
जानिए क्या था मामला
यह मामला याची जितेन्द्र कुमार केसरवानी के खिलाफ था। जिनके खिलाफ इक्विटी शेयर लेनदेन विवाद के संबंध में आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी) और 409 (विशेष विश्वास का विश्वासघात) के तहत आगरा के हरिपर्वत थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी। न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की एकल पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि आवेदक एक शेयर ब्रोकर था और विरोधी पक्ष को शेयरों में निवेश के संभावित परिणामों की जानकारी थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि आवेदक के माध्यम से निवेश करने के दौरान निवेशक ने शेयर बाजार के जोखिमों को समझा और इन्हीं जोखिमों को ध्यान में रखते हुए निवेश किया। इस मामले में पक्षों के बीच कुछ लेखा विवाद था। जिसके कारण बिना उचित आधार के एफआईआर दर्ज की गई। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि राशि की वसूली के लिए आपराधिक कार्रवाई का सहारा लेना स्वीकार्य नहीं है।
आवेदक ने कार्यवाही को रद्द करने की मांग
आवेदक ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर आरोप पत्र और आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि एफआईआर में धारा 420 और 409 के तत्व मौजूद नहीं हैं और विवाद एक व्यापारिक लेनदेन से संबंधित है। इसके कारण यह मामला भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड (सेबी) अधिनियम 1992 के दायरे में आता है। कोर्ट ने ललित चतुर्वेदी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि वित्तीय लेनदेन पर विवाद को आपराधिक कार्यवाही का आधार नहीं बनाया जा सकता। न्यायालय ने यह भी बताया कि एक ही आरोप के आधार पर किसी व्यक्ति को धारा 409 और धारा 420 के तहत जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। क्योंकि ये दोनों धाराएं एक-दूसरे के विपरीत हैं।
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