इलाहाबाद हाईकोर्ट ने की अहम टिप्पणी : पति पत्नी की चरित्रहीनता साबित करने के लिए बच्चों का नहीं करा सकता डीएनए टेस्ट

पति पत्नी की चरित्रहीनता साबित करने के लिए बच्चों का नहीं करा सकता डीएनए टेस्ट
UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट

Jun 27, 2024 06:40

हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि कोई पति अपनी पत्नी को चरित्रहीन साबित करने के लिए बच्चों का डीएनए परीक्षण नहीं करा सकता।

Jun 27, 2024 06:40

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि कोई पति अपनी पत्नी को चरित्रहीन साबित करने के लिए बच्चों का डीएनए परीक्षण नहीं करा सकता। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की अदालत ने एक ऐसे मामले में की, जहां एक डॉक्टर पति ने अपनी बेटियों का डीएनए टेस्ट कराने की मांग की थी।

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यह है पूरा मामला
यह मामला कासगंज के डॉ. इफराक उर्फ मोहम्मद इफराक हुसैन से संबंधित था। उनका निकाह शाजिया परवीन से 12 नवंबर 2013 को हुआ था। शुरुआती चार वर्षों तक उनका दांपत्य जीवन सुखमय रहा और इस दौरान उन्हें दो बेटियां हुईं। परंतु 2017 में उनके रिश्ते में तनाव आ गया, जिसके परिणामस्वरूप शाजिया अपने मायके चली गई।



आरोप को सिद्ध करने के लिए की बेटियों का डीएनए टेस्ट की मांग
इसके बाद, शाजिया ने गुजारा भत्ते की मांग को लेकर ग्राम न्यायालय पटियाली में एक याचिका दायर की। प्रतिक्रिया में, डॉ. इफराक ने न केवल आपत्ति जताई बल्कि अपनी पत्नी पर व्यभिचार का गंभीर आरोप भी लगा दिया। अपने आरोप को सिद्ध करने के लिए, उन्होंने अपनी दोनों बेटियों का डीएनए परीक्षण कराने की मांग की।

डीएनए बच्चों के हित में होना चाहिए : कोर्ट
इस मांग को खारिज करते हुए, न्यायालय ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। सबसे पहले, अदालत ने स्पष्ट किया कि डीएनए परीक्षण को भरण-पोषण के दायित्व से बचने के एक उपकरण के रूप में नहीं देखा जा सकता। न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि डीएनए जांच का उद्देश्य बच्चों के हित में होना चाहिए, न कि माता-पिता के विवादों को सुलझाने के लिए।

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कोर्ट ने क्या कहा... 
न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी मां को व्यभिचारी सिद्ध करने के लिए उसके बच्चों को माध्यम नहीं बनाया जा सकता। यह टिप्पणी बच्चों के अधिकारों और उनकी भावनात्मक सुरक्षा के महत्व को रेखांकित करती है। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका बच्चों के हितों को सर्वोपरि मानती है। वैवाहिक विवादों में बच्चों का उपयोग एक हथियार के रूप में नहीं किया जा सकता। यह फैसला पारिवारिक कानून में बच्चों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के महत्व को पुनः स्थापित करता है।

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