इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि एफआईआर में दर्ज तिथि और समय जैसे महत्वपूर्ण विवरणों का उल्लेख न होना, एक स्पष्ट त्रुटि है, जिसे विवेचना के दौरान ठीक नहीं किया जा सकता...
CJM मिर्जापुर की कार्यवाही पर हाईकोर्ट सख्त : बिना तारीख-समय वाली FIR पर चार्जशीट का संज्ञान लेने को बताया 'चौंकाने वाला'
Nov 19, 2024 14:26
Nov 19, 2024 14:26
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त्रुटिपूर्ण FIR पर चार्जशीट स्वीकार करना गंभीर
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि मिर्जापुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) ने एफआईआर में महत्वपूर्ण विवरणों की अनदेखी करते हुए आरोप पत्र का पुनः संज्ञान लिया, जबकि पुनर्विचार न्यायालय ने इस मामले को नए सिरे से तय करने के लिए मजिस्ट्रेट को भेजा था। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह की त्रुटि गंभीर है, खासकर जब एफआईआर में तारीख, समय और अन्य आवश्यक विवरणों का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया था। मामले की पृष्ठभूमि के अनुसार, याचिकाकर्ता जगत सिंह ने 1 अक्टूबर 2018 को मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती देते हुए आपराधिक पुनर्विचार दायर किया था। पुनर्विचार न्यायालय ने मामले को संबंधित मजिस्ट्रेट को वापस भेजा था, ताकि मामले को फिर से सही तरीके से तय किया जा सके।
धारा 190 के तहत संज्ञान लेने से पहले विचार करना जरूरी
एकल न्यायाधीश ने कहा कि मजिस्ट्रेट को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 190 के तहत संज्ञान लेने से पहले कुछ महत्वपूर्ण कारकों पर विचार करना चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संज्ञान लेने से पहले, एफआईआर में दर्ज जानकारी की संपूर्णता और तथ्यों का सही से मूल्यांकन करना आवश्यक है।
जानें पूरा मामला
प्रस्तुत मामले में याचिकाकर्ता जगत सिंह के खिलाफ रास्ते के अधिकार को लेकर हुए विवाद के सिलसिले में आईपीसी की धारा 143, 341, 504 और 506 के तहत मिर्जापुर में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इसके बाद, चार्जशीट दाखिल की गई, जिस पर मिर्जापुर के संबंधित मजिस्ट्रेट ने 1 अक्टूबर, 2018 को संज्ञान लिया था। हालांकि, याचिकाकर्ता ने इस आदेश को पुनर्विचार याचिका दायर कर चुनौती दी, जिसके बाद एडिशनल जिला एवं सत्र न्यायाधीश, मिर्जापुर ने 20 जुलाई, 2022 को इस आदेश को स्वीकार करते हुए मजिस्ट्रेट का आदेश खारिज कर दिया और मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए भेज दिया। न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट को एफआईआर और चार्जशीट के महत्वपूर्ण विवरणों की सही तरीके से जांच करनी चाहिए थी, और यदि इनमें कोई महत्वपूर्ण जानकारी की कमी होती, तो उस पर संज्ञान नहीं लिया जा सकता था। न्यायालय ने यह भी माना कि पुनर्विचार न्यायालय द्वारा मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए भेजने का आदेश उचित था और संबंधित मजिस्ट्रेट को उस आदेश का पालन करना चाहिए था। हालांकि, मिर्जापुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) ने 1 दिसंबर, 2023 को पुनः संज्ञान लिया, जिसे याचिकाकर्ता ने पुनर्विचार अदालत के समक्ष चुनौती दी। इस बार पुनर्विचार अदालत ने याचिकाकर्ता की चुनौती को खारिज कर दिया और मजिस्ट्रेट के आदेश की पुष्टि की।
इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता ने पुनर्विचार न्यायालय के आदेश और सीजेएम के संज्ञान लेने के आदेश दोनों को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। याचिकाकर्ता का कहना था कि प्राथमिकी में आवश्यक विवरण-जैसे विशिष्ट तिथि, समय और गवाहों का अभाव था, जो कि धारा 154 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत दायर किसी भी जानकारी के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। इसके बावजूद, याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि सीजेएम ने यंत्रवत (मैकेनिकल) तरीके से संज्ञान लिया और पुनर्विचार न्यायालय ने इस आदेश की गलत तरीके से पुष्टि की है।
हाईकोर्ट ने याचिका को मंजूर कर लिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोनों आदेशों को अत्यधिक अवैध और गलत करार देते हुए याचिका को मंजूर कर लिया और पूरे मामले की कार्यवाही को अलग रखते हुए इसे खारिज कर दिया। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि मामले में दर्ज किए गए विवरणों की गंभीर कमी को नजरअंदाज करना कानूनी प्रक्रिया के खिलाफ है। हालांकि, कोर्ट ने प्रतिवादी नंबर 2 को एक महत्वपूर्ण निर्देश देते हुए कहा कि यदि कोई घटना घटी हो, तो उसे संबंधित प्राधिकारी के पास शिकायत दर्ज कराने के लिए स्वतंत्रता दी जाती है और यह जानकारी तिथि और समय के साथ प्रदान की जानी चाहिए।
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