पिछले हफ्ते इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी की फैशन मॉडल ममता राय के खिलाफ 2022 में दर्ज आपराधिक मामले पर रोक लगा दी। मामला एक विवादित तस्वीर से जुड़ा है, जिसमें राय शिवलिंग पर फूल चढ़ाते हुए मैं काशी हूं कैप्शन के साथ नजर आई थीं।
शिवलिंग पोस्टर विवाद पर सुनवाई जारी : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मॉडल ममता राय के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई पर लगाई रोक
Jan 15, 2025 14:34
Jan 15, 2025 14:34
तस्वीर ने खड़ा किया विवाद
वाराणसी में सावन के भव्य त्योहार के दौरान शहरभर में पोस्टर और बैनर लगाए गए थे, जिनमें राय की तस्वीर के साथ एक शिवलिंग भी चित्रित था। पोस्टरों में राय को बाबा विश्वनाथ के शहर में लोगों का स्वागत करते हुए दिखाया गया। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और इसके बाद विवाद बढ़ गया। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के नेता विक्रांत सिंह ने राय के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई।
कानूनी धाराओं के तहत मामला दर्ज
इस मामले में वाराणसी पुलिस ने राय के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से अपमान), 506 (आपराधिक धमकी), और 153A (धार्मिक और नस्लीय दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत आरोप पत्र दाखिल किया। 2023 में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने इस चार्जशीट का संज्ञान लिया।
हाईकोर्ट में चुनौती
ममता राय ने इस मामले में हाईकोर्ट का रुख किया और आरोप पत्र व आपराधिक कार्यवाही को चुनौती दी। उनके वकील, एडवोकेट मोहक अग्रवाल ने तर्क दिया कि मामला आईपीसी की धारा 153A, 504 और 506 के तहत दर्ज किए गए आरोपों से मेल नहीं खाता। उन्होंने कहा कि तस्वीर में ऐसा कुछ नहीं है जो धार्मिक दुश्मनी को बढ़ावा देता हो या किसी की भावनाओं को जानबूझकर आहत करता हो।
राजनीतिक प्रभाव का आरोप
राय के वकील ने यह भी तर्क दिया कि शिकायतकर्ता विक्रांत सिंह, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सक्रिय सदस्य हैं और उन्होंने अपने राजनीतिक प्रभाव का उपयोग करके यह मामला दर्ज कराया है। वकील ने अदालत को यह भी बताया कि राय ने संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत अपने भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल किया था।
संविधान के अधिकारों का संदर्भ
राय के पक्ष ने अदालत में जोर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) के तहत उन्हें अपने विचार रखने का अधिकार है। उन्होंने यह तर्क भी रखा कि महज एक पोस्टर देखकर किसी की धार्मिक भावनाएं आहत होना, मामला दर्ज करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकता।
अदालत का फैसला और आगे की सुनवाई
जस्टिस दिनेश पाठक की अगुवाई वाली हाईकोर्ट की पीठ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी। अदालत ने शिकायतकर्ता विक्रांत सिंह को नोटिस जारी करते हुए मामले की अगली सुनवाई की तारीख 28 फरवरी, 2025 तय की।
मामले के कानूनी और सामाजिक पहलू
यह मामला न केवल कानूनी दृष्टि से बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी चर्चा का विषय बन गया है। एक ओर, यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक संवेदनशीलता के बीच के संतुलन को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर, यह दिखाता है कि कैसे व्यक्तिगत और राजनीतिक प्रभाव का उपयोग न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए किया जा सकता है।
संवेदनशीलता बनाम स्वतंत्रता
इस पूरे प्रकरण ने समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस को जन्म दिया है। एक तरफ राय जैसे लोग अपनी कला और विचारों के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति जाहिर करते हैं, वहीं दूसरी ओर, ऐसे कृत्य धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं को भड़काने का माध्यम भी बन सकते हैं।
मुद्दे को संवेदनशीलता और निष्पक्षता के साथ सुलझाने की कोशिश
ममता राय का मामला इस बात की मिसाल है कि किस तरह से आधुनिक समाज में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक संवेदनशीलता के बीच टकराव हो सकता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला इस बात पर प्रकाश डालता है कि न्यायपालिका इन मुद्दों को संवेदनशीलता और निष्पक्षता के साथ सुलझाने की कोशिश कर रही है। 28 फरवरी, 2025 को होने वाली सुनवाई इस मामले में और रोशनी डाल सकती है।
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