जूना अखाड़ा : 12वीं शताब्दी से धार्मिक परंपरा का प्रतीक, जुड़े हैं देश-विदेश के भक्त

12वीं शताब्दी से धार्मिक परंपरा का प्रतीक, जुड़े हैं देश-विदेश के भक्त
UPT | पंच दशनाम जूना अखाड़े के संत पूजा पाठ करते हुए

Oct 17, 2024 18:39

जूना अखाड़े की स्थापना 1145 में उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में पहला मठ स्थापित किया गया था। इसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं। इसके ईष्टदेव शिव और रुद्रावतार गुरु दत्तात्रेय भगवान हैं। इनका केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर माना जाता है और हरिद्वार के माया मंदिर के पास इनका आश्रम हैं।

Oct 17, 2024 18:39

Prayagraj News : श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े की स्थापना 12वीं शताब्दी में हुई थी। इसका मुख्यालय काशी के हनुमान घाट पर स्थित है। जूना अखाड़ा चार प्रमुख मढ़ियों में विभाजित है। इसमें 4 मढ़ी,  13 मढ़ी, 14 मढ़ी और 16 मढ़ी हैं। इन मढ़ियों के संतों और पदाधिकारियों के माध्यम से 'रमता पंच' का गठन होता है, जो विभिन्न धार्मिक आयोजनों में सक्रियता से भाग लेते हैं। जब भी जूना अखाड़े के संत किसी स्थान पर पहुंचते हैं, वहां चारों मढ़ियों के अलग-अलग शिविर लगते हैं, और इन शिविरों के बीच में इष्ट देव रुद्रावतार दत्तात्रेय भगवान विराजमान होते हैं।

कुंभ में रमता पंच के संतों की अहम भूमिका
महाकुंभ के आयोजन में रमता पंच के संतों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जब भी महाकुंभ या अर्ध कुंभ का मेला आयोजित होता है।सबसे पहले रमता पंच के संत वहां पहुंचकर व्यवस्थाओं का ध्यान रखते हैं। इनका मुख्य कार्य अखाड़ों के प्रचार-प्रसार और मठ-मंदिरों की देखरेख करना होता है। किसी भी समस्या का समाधान भी रमता पंच के संत करते हैं। जो संतों के बीच विवादों को सुलझाने का कार्य करते हैं।

देश विदेश के भक्त जुड़े हैं जूना अखाड़े से
दशनामी संप्रदाय जो शिव संन्यासी संप्रदाय का हिस्सा है। गिरी, पर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती, वन, अरण्य, तीर्थ और आश्रम जैसे नाम शामिल हैं। 13 अखाड़ों में से जूना अखाड़ा खास महत्व रखता है। इस अखाड़े का सर्वोच्च पद महामंडलेश्वर का होता है, जिसे स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज सुशोभित कर रहे हैं। वे अब तक एक लाख से अधिक संन्यासियों को दीक्षा दे चुके हैं। इस अखाड़े से लाखों की संख्या में देशी-विदेशी भक्त जुड़े हुए हैं।



दुनिया का सबसे बड़ा है यह अखाड़ा
संख्याबल के लिहाज से जूना अखाड़ा देश और दुनिया का सबसे बड़ा अखाड़ा है। इसमें पांच लाख से अधिक साधु संत विभिन्न हिस्सों से जुड़े हैं। इनमें करीब एक लाख नागा संन्यासी शामिल हैं। आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी और संरक्षक हरि गिरी महाराज इस अखाड़े के नेतृत्व में कार्यरत हैं। यहां मंहत, श्रीमहंत, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, भंडारी, कोतवाल, थानापति, सचिव जैसे विभिन्न पद हैं, जो अखाड़े की व्यवस्थाओं को संचालित करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है पहचान
आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी ने अपने कार्यकाल में एक लाख से अधिक संन्यासियों को दीक्षा देकर इस परंपरा को आगे बढ़ाया है। वहीं संरक्षक हरि गिरी जी महाराज पिछले 20 वर्षों से अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री पद पर कार्यरत हैं, जिससे सभी तेरह अखाड़ों का समन्वय और सहयोग बढ़ा है। जूना अखाड़ा एक अद्वितीय सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक है, जो न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना चुका है।

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