वाराणसी की सड़कों पर भीख मांगने वालों को अब काशी में प्रभुजी के नाम से पुकारा जा रहा है। इन भिखारियों को बाकायदा आत्मनिर्भर बनने का गुण सिखाया जा रहा है, जिससे अब वो किसी पर बोझ बनकर नहीं रहेंगे।
भिखारी बने आत्मनिर्भर 'प्रभुजी' : अब तक 1700 से ज्यादा बेसहारा को दिया आश्रय, 700 से ज्यादा को पहुंचाया घर
Sep 15, 2024 16:47
Sep 15, 2024 16:47
भिखारियों को स्वावलंबन की ओर प्रेरित करती संस्था
डॉक्टर निरंजन बताते हैं कि उनकी संस्था सड़कों पर भटकने वाले बेसहारा लोगों को रेस्क्यू करती है और उन्हें आश्रम में लाकर उनके रहने, खाने और स्वास्थ्य का ध्यान रखती है। यहां आने के बाद इन लोगों का इलाज किया जाता है और फिर उन्हें अपने घर लौटने का विकल्प दिया जाता है। जो घर नहीं जाना चाहते, उन्हें आश्रम में रखा जाता है और उन्हें हुनर सिखाया जाता है, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। आश्रम में प्रभुजी साबुन, अगरबत्ती, और दोना-पत्तल जैसे उत्पाद बनाना सीखते हैं। इन उत्पादों की गुणवत्ता भी बेहतरीन होती है, जो कि प्राकृतिक सामग्री से बनाए जाते हैं।
महिला और पुरुष, दोनों को मिलता है अवसर
संस्था में पुरुषों के साथ महिलाएं भी आत्मनिर्भर बनने की राह पर हैं। यहाँ उन्हें पुराने अखबारों से पैकेट बनाना सिखाया जाता है, जिन्हें दवाओं की दुकानों पर वितरित किया जाता है। हर दिन दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे तक ये प्रभुजी इन कामों में जुटे रहते हैं। डॉक्टर निरंजन बताते हैं कि अगर ये लोग भविष्य में अपने घर लौटते हैं या अलग से जीवन यापन करना चाहते हैं, तो उनके पास हुनर होना चाहिए ताकि वे अपने जीवन को बेहतर बना सकें।
समाज को संदेश: भीख नहीं, भोजन दो
संस्था द्वारा निर्मित सभी उत्पादों में एक संदेश भी छिपा होता है - 'भिखारी मुक्त शहर'। डॉक्टर निरंजन अपील करते हैं कि लोग भिखारियों को भीख देने के बजाय उन्हें भोजन दें, ताकि धीरे-धीरे भिक्षावृत्ति समाप्त हो सके। संस्था इन उत्पादों को बाजार में नहीं बेचती, बल्कि 25 से 30 रुपये की सहायता राशि के बदले लोगों को देती है और इसकी रसीद भी दी जाती है।
1700 से ज्यादा प्रभुजी बने आत्मनिर्भर
डॉक्टर निरंजन के अनुसार, आश्रम में अब तक 1700 से ज्यादा प्रभुजी रह रहे हैं, जिनमें महिलाएं और पुरुष दोनों शामिल हैं। 700 से ज्यादा लोगों को उनके घरों तक पहुंचाया जा चुका है। आश्रम में रह रहे प्रभुजी बताते हैं कि अब उनका जीवन पहले से बेहतर हो गया है। पहले वे सड़कों पर भीख मांगकर अपना गुजारा करते थे, लेकिन अब वे आत्मनिर्भर बनकर समाज में एक नई पहचान बना रहे हैं
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