कृष्ण जन्मभूमि मामला : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे पर अंतरिम रोक बढ़ाई

UPT | कृष्ण जन्मभूमि मामला

Aug 09, 2024 13:11

सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे पर इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा लगाए गए अंतरिम रोक को बढ़ा दिया है। यह अंतरिम रोक पहले 16 जनवरी को इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई थी...

Mathura News : सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे पर इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा लगाए गए अंतरिम रोक को बढ़ा दिया है। यह अंतरिम रोक पहले 16 जनवरी को इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई थी, जब अदालत ने मस्जिद के सर्वे के लिए एक न्यायिक आयोग नियुक्त किया था। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने आज इस रोक की अवधि को बढ़ाने का निर्णय लिया।

सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका 
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिसंबर 2023 में हिंदू पक्ष के आवेदन पर शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे की अनुमति दी थी। इस सर्वे के लिए एक न्यायिक आयोग भी नियुक्त किया गया था। इस आदेश के खिलाफ मस्जिद का संचालन करने वाली समिति और सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। साथ ही, उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को भी चुनौती दी है जिसमें सभी संबंधित याचिकाओं को हाई कोर्ट के पास ट्रांसफर करने की बात की गई थी।

सर्वे की मांग 
हिंदू पक्ष का दावा है कि शाही ईदगाह मस्जिद भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर की भूमि पर बनाई गई थी। उनका कहना है कि इस मस्जिद को औरंगजेब ने मंदिर को तोड़कर बनवाया था। हिंदू पक्ष के अनुसार, मस्जिद के भीतर कुछ ऐतिहासिक और धार्मिक निशान हैं, जैसे कमल के आकार का स्तंभ और शेषनाग की छवि, जो यह संकेत देती हैं कि मस्जिद कभी एक हिंदू मंदिर के ऊपर बनाई गई थी। इसलिए, वे मस्जिद के सर्वे की मांग कर रहे हैं, ताकि विवादित भूमि पर श्रीकृष्ण के विराजमान होने के दावे की पुष्टि की जा सके।

कृष्ण जन्मभूमि विवाद
कृष्ण जन्मभूमि विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक से जुड़ा है। 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के बीच एक समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत 13.7 एकड़ भूमि पर मंदिर और मस्जिद दोनों का निर्माण हुआ। इसमें श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास 10.9 एकड़ जमीन का मालिकाना हक रखा गया, जबकि 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह के पास रही। वर्तमान में, हिंदू पक्ष इस 2.5 एकड़ जमीन पर भी दावा कर रहे हैं।

1968 का समझौता
1968 में हुए समझौते के अनुसार, तब तक परिसर का विस्तार सीमित था और 13.77 एकड़ भूमि पर विभिन्न धर्मों के लोग बसे हुए थे। समझौते के तहत, मुस्लिम समुदाय को स्थान खाली करने को कहा गया और मस्जिद और मंदिर के बीच सीमा तय की गई। यह सुनिश्चित किया गया कि मस्जिद में मंदिर की ओर कोई खिड़की, दरवाजा या खुला नाला न हो। मंदिर और मस्जिद के बीच एक दीवार भी बनाई गई थी ताकि दोनों स्थल अपने-अपने धार्मिक अनुष्ठानों को स्वतंत्र रूप से संचालित कर सकें।

हिंदू पक्ष का दावा 
मस्जिद परिसर में मौजूद धार्मिक निशानियों को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि ये संकेत देते हैं कि यह भूमि पहले एक मंदिर थी। सुप्रीम कोर्ट में, हिंदू पक्ष की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने अदालत को बताया कि आवेदन में स्पष्टता की कमी है। अदालत ने भी इस पर आपत्ति जताई और कहा कि आवेदन को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। पीठ ने यह भी निर्देशित किया कि आवेदन को सीपीसी के आदेश 26 नियम 9 के तहत स्थानीय आयुक्त की नियुक्ति के लिए स्पष्ट किया जाना चाहिए, और अदालत को केवल अस्पष्ट आवेदन पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

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