शिक्षा क्षेत्र मवई के दर्जनों कम्पोजिट व प्राथमिक विद्यालयों के परिसर में गंदे पानी का जमाव होने से छात्र-छात्राओं व शिक्षकों को प्रतिदिन भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इससे स्वच्छ भारत का सपना धूमिल होता नजर आ रहा है।
Jul 04, 2024 13:12
शिक्षा क्षेत्र मवई के दर्जनों कम्पोजिट व प्राथमिक विद्यालयों के परिसर में गंदे पानी का जमाव होने से छात्र-छात्राओं व शिक्षकों को प्रतिदिन भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इससे स्वच्छ भारत का सपना धूमिल होता नजर आ रहा है।
Ayodhya News : रुदौली तहसील के शिक्षा क्षेत्र मवई में स्थित अनेक कम्पोजिट और प्राथमिक विद्यालयों की दुर्दशा आज किसी से छिपी नहीं है। इन विद्यालयों के परिसरों में फैला कीचड़ और जलभराव न केवल छात्र-छात्राओं के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है, बल्कि शिक्षकों के लिए भी दैनिक चुनौती बन गया है। यह स्थिति शासन की घोषित प्राथमिकताओं और बेसिक शिक्षा के महत्व के विपरीत है, जहाँ जिम्मेदार अधिकारियों की उदासीनता साफ़ नज़र आ रही है।
विकास की पोल खोलता जलभराव
शिक्षा क्षेत्र मवई के लगभग दो दर्जन से अधिक शैक्षणिक संस्थानों की दशा विकास के दावों की पोल खोल रही है। प्राथमिक विद्यालय हमीरपुर, कंपोजिट विद्यालय बाबा बाजार, प्राथमिक विद्यालय धनौली, प्राथमिक विद्यालय पठान पुरवा, कंपोजिट विद्यालय सुल्तानपुर, प्राथमिक विद्यालय दुर्गीं का पुरवा, जूनियर हाई स्कूल जयसुखपुर, प्राथमिक विद्यालय कामापुर, कंपोजिट विद्यालय नेवाजपुर, प्राथमिक विद्यालय रसूलपुर सहित अन्य कई विद्यालयों के परिसरों में जमा पानी और कीचड़ विकास कार्यों की असलियत बयान कर रहे हैं।
स्वच्छ भारत का उपहास
इन शैक्षणिक संस्थानों की दयनीय स्थिति, परिसरों में फैला कीचड़, जलभराव और लहलहाती ऊंची घास स्वच्छ भारत और सुंदर भारत के नारों का मज़ाक उड़ा रही है। यह स्थिति सम्बंधित ग्राम प्रधानों, प्रधानाध्यापकों और ब्लॉक स्तर के अधिकारियों व कर्मचारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है।
कागज़ों और हकीकत में अंतर
जबकि सरकारी दस्तावेजों में स्वच्छता का आंकड़ा शत-प्रतिशत दिखाया जाता है, वास्तविकता इससे कोसों दूर है। उल्लेखित सभी विद्यालयों में छात्र-छात्राओं को रोज़ाना कीचड़ भरे पानी से होकर गुज़रना पड़ता है। यह स्थिति विद्यालयों के चहुँमुखी विकास के नाम पर हुए घोटालों का जीता-जागता सबूत है।
स्वास्थ्य जोखिम की आशंका
विद्यार्थियों और शिक्षकों को प्रतिदिन इस कीचड़ भरे पानी से होकर कक्षाओं तक पहुंचना पड़ता है। यह दूषित जल विभिन्न संक्रामक रोगों के प्रसार का कारण बन सकता है, जो चिंता का विषय है। बावजूद इसके, जल निकासी की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई है।
स्वच्छता अभियान की विफलता
एक ओर जहां सरकार और प्रशासन लगातार स्वच्छ भारत और सुंदर भारत जैसे अभियानों पर जोर दे रहे हैं, वहीं इन विद्यालयों की स्थिति इन प्रयासों की विफलता को दर्शाती है। यदि समय रहते जल निकासी की उचित व्यवस्था की गई होती, तो आज की यह दुर्दशा न देखनी पड़ती।
शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रभाव
इस परिस्थिति का सीधा असर शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ रहा है। छात्र-छात्राओं का ध्यान पढ़ाई से हटकर इन बुनियादी समस्याओं पर केंद्रित हो जाता है। शिक्षकों के लिए भी यह माहौल काम करने के लिए अनुकूल नहीं है, जो अंततः शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
जवाबदेही का अभाव
इस समस्या के लिए किसी एक व्यक्ति या विभाग को जिम्मेदार ठहराना मुश्किल है। यह एक संयुक्त विफलता है जिसमें स्थानीय प्रशासन, शिक्षा विभाग और निर्माण एजेंसियाँ सभी शामिल हैं। जवाबदेही के अभाव में समस्या का समाधान और भी कठिन हो जाता है।