बरेली पुलिस के दरोगा और महिला सिपाही के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी : अब 9 जुलाई को सुनवाई, जानें एडीजी और एसएसपी से क्या कहा ...

UPT | जनपद न्यायालय।

Jul 04, 2024 21:22

बरेली देहात के भमौरा थाने में वर्ष 2023 में राज्य सरकार बनाम मोहम्मद सलीम दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज हुआ था। इस मामले में पुलिस ने चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की। इसमें 16 गवाह बने। मुकदमे के गवाह डॉ. रिचा, डॉ. बलराम सिंह यादव विशेषज्ञ साक्षी हैं, लेकिन उनके कालम में अन्य गवाह लिख दिया गया।

Bareilly News : उत्तर प्रदेश के बरेली में दुष्कर्म के मुकदमे की चार्जशीट में गड़बड़ी का मामला सामने आया है। जिसके चलते इस मामले में स्पेशल जज फास्ट ट्रेक कोर्ट रवि कुमार दिवाकर ने दरोगा और महिला सिपाही को गैर जमानती वारंट जारी किया है। 9 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई होगी। इस मामले में एडीजी और एसएसपी को भी पत्र भेज कर अधीनस्थों को मार्गदर्शन करने का आदेश दिया गया है।

बरेली देहात के भमौरा थाने में वर्ष 2023 में राज्य सरकार बनाम मोहम्मद सलीम दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज हुआ था। इस मामले में पुलिस ने चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की। इसमें 16 गवाह बने। मुकदमे के गवाह डॉ. रिचा, डॉ. बलराम सिंह यादव विशेषज्ञ साक्षी हैं, लेकिन उनके कालम में अन्य गवाह लिख दिया गया। इसी तरह तीन गवाहों का एक ही मोबाइल नंबर दर्ज किया गया। इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि गवाहों का मोबाइल नंबर एक होना ऐसा लगता है कि विवेचक दरोगा सत्येंद्र कुमार, प्रशिक्षण अधिकारी प्रभारी परमेश्वरी और तत्कालीन सीओ आंवला द्वारा अपने विधिक ज्ञान का प्रयोग नहीं किया है।

सीओ आंवला पर की टिप्पणी 
कोर्ट ने विवेचनाओं में सीओ पर भी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि सीओ अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट पर सीओ आंवला के हस्ताक्षर भी स्पष्ट नहीं है। उसमें किसी भी तिथि का अंकन नहीं है। किसी कार्यालय में जिस तरह आरोप पत्र सीओ के समक्ष रखा गया। संबंधित सीओ ने उसे पर हस्ताक्षर कर अपने दायित्वों की पूर्ति की है। 

अन्य प्रकरण में भी कमियां
कोर्ट ने कहा कि यह कमियां हर प्रकरण में पाई जाती हैं। कहीं पर सीओ का नाम स्पष्ट नहीं है। चार्जशीट भेजने की तारीख नहीं है। जिले में क्षेत्राधिकारियों की ओर से दायित्व एवं कर्तव्य में घोर लापरवाही बढ़ती जा रही है। आरोप पत्र में थानाध्यक्ष का नाम भी नहीं है। ऐसा गंभीर मामलों की विवेचना में नहीं होना चाहिए। 

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