Mahoba
ऑथर Pankaj Parashar

चन्देलों  की राजधानी था महोबा : पृथ्वीराज चौहान और आल्हा- उदल के युद्ध की गाथा गाता है पूरा बुंदेलखंड

Uttar Pradesh Times | महोबा में राजपूतों, मराठों और अंग्रेजों में लंबा संघर्ष चलता रहा।

Nov 27, 2023 18:06

Mahoba News : महोबा उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा जिले में स्थित बुन्देलखंड क्षेत्र (Bundelkhand Region) का एक शहर है, जो नौवीं शताब्दी में प्रतिहार शैली में बने ग्रेनाइट सूर्य मंदिर (Surya Mandir) के लिए जाना जाता है। यह गोखर पहाड़ी पर 24 चट्टानों को काटकर बनाई गई जैन तीर्थंकरों की छवि के लिए भी जाना जाता है। महोबा खजुराहो, लवकुश नगर और कुलपहाड़, चरखारी, कालिंजर, ओरछा और झांसी जैसे अन्य ऐतिहासिक स्थानों के नजदीक है।

Mahoba News : महोबा उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा जिले में स्थित बुन्देलखंड क्षेत्र (Bundelkhand Region) का एक शहर है, जो नौवीं शताब्दी में प्रतिहार शैली में बने ग्रेनाइट सूर्य मंदिर (Surya Mandir) के लिए जाना जाता है। यह गोखर पहाड़ी पर 24 चट्टानों को काटकर बनाई गई जैन तीर्थंकरों की छवि के लिए भी जाना जाता है। महोबा खजुराहो, लवकुश नगर और कुलपहाड़, चरखारी, कालिंजर, ओरछा और झांसी जैसे अन्य ऐतिहासिक स्थानों के नजदीक है। यह शहर रेलवे और राजमार्गों से जुड़ा हुआ है। महोबा चंदेल राजवंश की राजधानी थी। जिसने बुंदेलखण्ड के अधिकांश भाग पर शासन किया था। 12वीं सदी के दौरान सेनापति उदल और उनके भाई आल्हा चंदेल राजा परमर्दि के अधीन थे। उनका पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) के खिलाफ युद्ध भारतीय साहित्यों में उल्लेखनीय है।

महोबा में अनुसूचित जातियां 25.22% हैं
साल 2011 की जनगणना के अनुसार महोबा जिले की जनसंख्या 8,75,958 है, जो लगभग फिजी राष्ट्र या अमेरिकी राज्य डेलावेयर के बराबर है। जनसंख्या के मामले में महोबा भारत के कुल 640 जिलों में से 469वीं रैंक पर है। जिले का जनसंख्या घनत्व 288 निवासी प्रति वर्ग किलोमीटर है। 2001-2011 के दशक में इसकी जनसंख्या वृद्धि दर 23.66% थी। महोबा में लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुषों पर 880 महिलाओं का है और साक्षरता दर 66.94% है। अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 25.22% हैं।

बुंदेली बोलने वालों की संख्या 33.63%
महोबा जिले में हिंदी और बुंदेली मुख्य भाषाएं हैं। जिले के 65.50% लोग हिंदी बोलते हैं। जबकि बुंदेली बोलने वालों की संख्या 33.63% है। अन्य भाषाएं 0.87% बोलते हैं। अगर धर्म के आधार पर जनसंख्या का विश्लेषण करें तो महोबा जिले में हिंदुओं की संख्या 93.06% है। मुसलमानों की संख्या 6.56% है। अन्य धर्म के अनुयायी महज 0.38% हैं।

राजपूतों, मराठों और अंग्रेजों में चला लंबा संघर्ष
चंदेलों के उदय से पहले महोबा पर राजपूतों के गहरवार और प्रतिहार वंशों का कब्ज़ा था। चंदेल शासक चंद्र वर्मन पन्ना के पास अपने जन्म स्थान मनियागढ़ के रहने वाले थे। उन्होंने इसे प्रतिहार शासकों से जीता था और इसे अपनी राजधानी के रूप में अपनाया था। बाद में वाक्पति, जेज्जा, विजय शक्ति और राहिला-देव उनके उत्तराधिकारी बने। बाद के चंदेल शासकों विजय पाल (1035-1045) ने विजय सागर झील का निर्माण कराया। कीर्ति-वर्मन (1060-1100) ने कीरत सागर तालाब का निर्माण कराया और मदन वर्मन (1128-1164) ने मदन सागर का निर्माण कराया।

आल्हा और उदल के नामों से मशहूर हुआ महोबा
अंतिम प्रमुख चंदेल शासक परमर्दि-देव या परमाल थे, जिनका नाम उनके दो सेनापतियों 'आल्हा' और 'उदल' के वीरतापूर्ण कार्यों के कारण आज भी लोकप्रिय है। दरबारी कवि जगनिक राव ने अपने लोकप्रिय वीर-काव्य 'आल्हा-खंड' के माध्यम से उनका नाम अमर कर दिया है। इसे देशभर में हिंदी भाषी जनता सुनती है। वर्ष 1860 में ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अंग्रेज अधिकारी विलियम वॉटरफ़ील्ड इस गीत से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसका अंग्रेजी में अनुवाद 'ले ऑफ़ आल्हा' शीर्षक से किया। जिसे इंग्लैंड की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने प्रकाशित किया। प्रमुख जैन ग्रंथ 'प्रबंध-कोश' में महोबा की भव्यता को संदर्भित करता है। जिसे केवल महसूस किया जा सकता है, वर्णित नहीं किया जा सकता है। वर्ष 1803 में बेसियन संधि के तहत मराठों ने बुन्देलखण्ड ब्रिटिश शासकों को सौंप दिया। हालांकि, इसका प्रशासन 1858 तक जालौन का सूबेदार संभाला रहा था। जब अंततः ईस्ट इंडिया कंपनी ने कब्जा कर लिया तो महोबा को हमीरपुर जिले के एक उपखण्ड का मुख्यालय बनाया गया।

राव महीपत सिंह भूरागढ़ किले में फांसी पर झूले
राव महीपत सिंह को बांदा के भूरागढ़ किले में बंद किया गया। वहां उन्हें फांसी की सजा दी गई। अंग्रेजों ने उन्हें गुलामी स्वीकार करने और अपनी जान बचाने की सलाह दी। राव महीपत सिंह ने झुकना स्वीकार नहीं किया। वह अंत समय तक कहते रहे, "मेरा बलिदान यहां के रजवाड़ों का स्वाभिमान जगाएगा। अब आजादी की लड़ाई और तेज होगी।" वह हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। यह घटना इतिहास के पन्ने में तो दर्ज नहीं हो पाई पर बांदा के डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में इसका संक्षिप्त ब्यौरा उपलब्ध है। राव महीपत सिंह इस इलाके में स्वाधीनता के लिए जान देने वाले पहले सेनानी थे। उनका किला आज भी सुगिरा गांव में है। पुरातत्व विभाग ने कहने के लिए किला संरक्षित तो कर लिया है पर पूरा परिसर दुर्दशा में है।

मेरठ से उठी चिंगारी ने बुंदेलों को सुलगाया
राजा फांसी पर झूला तो आम आदमी भी पीछे नहीं रहा। मेरठ, झांसी, बैरकपुर और तराई से विद्रोह की सूचनाएं आ रही थीं। महोबा में बुंदेले रणबांकुरों की भुजाएं भी फड़कने लगीं। महोबा शहर में लोगों ने बगावत कर दी। तत्कालीन अंग्रेज जनरल व्हिटलॉक बर्बरता पर उतर आया। मुकदमा दर्ज हुआ और 16 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई। शहर के हवेली दरवाजा में इमली के पेड़ पर ज्योरहा निवासी कल्लू और भवानी सहित 16 लोगों को लटकाकर अंग्रेजों ने क्रूरता की नजीर पेश की। जिले के गजेटियर में इस खौफनाक मंजर का जिक्र तो है, लेकिन फांसी के फंदों को चूमने वाले वीर सपूतों के नामों का जिक्र नहीं है। कल्लू और भवानी को छोड़कर बाकी की गिनती गुमनाम शहीदों में होती है। इतिहास के उस मूक गवाह इमली के पेड़ को अंग्रेजों ने काट दिया और बचा-खुचा गिर गया। इन शहीदों की स्मृति में पहले हवेली दरवाजा मैदान में मेला लगता था। जिसे दो दशक पहले बंद करवा दिया गया। अब बस ऐतिहासिक कजली मेले के अवसर पर विजय जुलूस निकलता है।

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