यूपी में दलित मतदाताओं के भाजपा से छिटकने पर बीएल संतोष ने किया मंथन : विपक्ष की तैयारी देख रणनीति बनाने पर दिया जोर

UPT | भाजपा राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष लखनऊ में पार्टी नेताओं के साथ।

Jul 07, 2024 19:21

यूपी में आंकड़ों के अनुसार, अनुसूचित जाति की जनसंख्या 20.70 प्रतिशत है। कई सीटों पर इनके वोट निणार्यक होते हैं। ऐसे में पार्टी दलितों के भाजपा से मोहभंग होने की वजह समाप्त करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। बीएल संतोष दलित वर्ग से ज्यादा से ज्यादा संवाद करने के पक्ष में हैं।

Short Highlights
  • लोकसभा चुनाव में दलित वोट नहीं मिलने से पार्टी को हुआ बड़ा नुकसान
  • उपचुनाव और मिशन 2024 को लेकर दलित मतदाताओं को साधने की रणनीति
Lucknow News : लोकसभा चुनाव की हार को विधानसभा उपचुनाव में जीत में तब्दील करने के लिए भाजपा नेतृत्व सजग हो गया है। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष राजधानी में अपनी बैठकों में स्पष्ट कर चुके हैं कि अब वक्त पुरानी गलतियों से सबक लेकर आगे बढ़ने का है। पार्टी की समीक्षा बैठक में दलित मतदाताओं का छिटकना अहम मुद्दा रहा है। इसे लेकर नेतृत्व बेहद गंभीर है। इसी कड़ी में बीएल संतोष ने रविवार को दलित नेताओं के साथ अहम बैठक की। इस दौरान उनकी राय ली गई और आगे की रणनीति पर विचार विमर्श हुआ। इस दौरान दलित नेताओं ने खुलकर अपनी बात रखी। चुनाव में कमियों को लेकर बात की और आगे को लेकर सुझाव दिए। 

लोकसभा चुनाव में भाजपा से छिटका दलित वोटबैंक
लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जाति के मतदाताओं के बड़े हिस्से ने विपक्ष के गठबंधन इंडिया को वोट दिया। इसकी वजह से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का फायदा मिला। सपा 37 सीटों के साथ यूपी में सबसे बड़ी पार्टी बनने में कामयाब हुई तो कांग्रेस की सीटें भी 1 से बढ़कर 6 तक पहुंच गई। चुनाव परिणाम के पहले दिन से भाजपा इसका मंथन करने में जुटी है। वहीं विभिन्न स्तर पर नेताओं, कार्यकर्ताओं के फीडबैक से भी अनुसूचित जाति के वोट नहीं मिलने की वजह सामने आई है। इसके बाद भाजपा संगठन दलित मतदाताओं पर फोकस करने में जुट गया है।

बीएल संतोष ने आगे की रणनीति पर किया मंथन
राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष ने रविवार को बैठक में अनुसूचित जाति के नेताओं के साथ गहरा विचार विमर्श किया। इस दौरान इस तबके को पार्टी से जोड़ने के लिए धरातल पर कार्यक्रम आयोजित करने की भी रणनीति बनी। दरअसल भाजपा लोकसभा चुनाव में अपने लचर प्रदर्शन से सबक लेते हुए आगे कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। उसका लक्ष्य न सिर्फ 10 सीटों पर होने वाला उपचुनाव है, बल्कि विधानसभा चुनाव 2027 की भी संगठन ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी की पूरी कोशिश है कि विपक्ष को अब किसी भी सूरत में हावी नहीं होने दिया जाए। दलित मतदाताओं के पाला बदलने से भाजपा को बड़ा झटका लगा है। इसलिए वह अभी से अलर्ट मोड पर आ गई है। एक समय ये मतदाता खुलकर बसपा के पक्ष में वोट करते थे। लेकिन, धीरे धीरे जाटव मतदाताओं को छोड़कर भाजपा अन्य दलित वोटबैंक में सेंध लगाने में सफल हुई। इससे बसपा सुप्रीमो मायावती को बड़ा झटका लगा। लेकिन, लोकसभा चुनाव में इस वर्ग ने सपा-कांग्रेस को एकतरफा वोट दिया। इसलिए भाजपा अब आने वाले उपचुनाव, चुनाव को लेकर समीकरण साधने में जुट गई है। माना जा रहा है कि हाथरस सत्संग भगदड़ प्रकरण में सूरजपाल जाटव उर्फ साकार विश्वहरि बाबा को लेकर जिस तरह सरकार और पार्टी ने स्टैंड लिया है, उसके पीछे दलित वोटबैंक बड़ी वजह है। पार्टी इस विषय पर आक्रामक तेवर नहीं अपना रही है, इसलिए एसआईटी, न्यायिक आयोग   का सहारा लिया गया है। बाबा पर सीधे हमला से पार्टी नेता अब तक बच रहे हैं।  

चंद्रशेखर आजाद के बढ़ते कद को लेकर भाजपा सचेत
यूपी में आंकड़ों के अनुसार, अनुसूचित जाति की जनसंख्या 20.70 प्रतिशत है। कई सीटों पर इनके वोट निणार्यक होते हैं। ऐसे में पार्टी दलितों के भाजपा से मोहभंग होने की वजह समाप्त करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। बताया जा रहा है कि बीएल संतोष दलित नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी सौंपने के पक्ष में हैं। वह इन नेताओं के जरिए दलित वर्ग से ज्यादा से ज्यादा संवाद करने के पक्ष में हैं।  इसलिए भाजपा संगठन इसे लेकर कार्यक्रम बनाने में जुट गया है। भाजपा के इस संबंध में अलर्ट होने की एक वजह नगीना लोकसभा सीट से चंद्रशेखर आजाद की जीत भी है। आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के उम्मीदवार चंद्रशेखर आजाद ने इस सीट पर भाजपा के ओम कुमार को 151473 मतों से शिकस्त दी। चंद्रशेखर इस चुनाव में एक बड़े चेहरे के रूप में उभरकर सामने आए हैं। लोकसभा में भी वह दलितों के मुद्दों पर आक्रामक तेवर अपना चुके हैं। चंद्रशेखर ने उपचुनाव में भी उम्मीदवार उताने का ऐलान किया है। इसके साथ ही दलित राजनीति को आगे बढ़ाने के इरादे जाहिर कर दिए हैं। ऐसे में भाजपा नहीं चाहती कि जिस वोटबैंक को उसने बड़ी मुश्किल से हासिल किया है, वह उससे दूर छिटककर किसी और के पास जाए। नगीना लोकसभा सीट में तो दलित मतदाताओं ने भाजपा के बजाय चंद्रशेखर आजाद को खुल वोट दिए। इसलिए भाजपा आगे की रणनीति बनाने में जुट गई है। 

दलित वोटबैंक को लेकर भाजपा व अन्य दलों की स्थिति
प्रदेश में लोकसभा की 17 सीटें रिजर्व कैटेगरी की हैं। भाजपा लोकसभा चुनाव 2014 में इन सभी 17 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल हुई थी। इसके बाद 2019 में आरक्षित सीटों में उसे 14 और उसकी सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) को एक सीट में जीत मिली। जबकि इस बार वह सिर्फ 8 सीटें बुलंदशहर, हाथरस, आगरा, शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख, बहराइच और बांसगांव जीत सकी। सपा को 7 सीटें, जबकि आजाद समाज पार्टी और कांग्रेस को 1-1 सीट मिली। सपा ने 6 जाटव उम्मीदवार मैदान में उतारे। इनमें से दो को उसने सामान्य सीटों पर उतारा। इससे सपा को लेकर दलित मतदाताओं में सकारात्मक संदेश गया। पिछले चुनाव में बसपा को दो आरक्षित सीटें मिली थीं। इस बार वह शून्य पर सिमट गई। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2012 में भाजपा को 5 प्रतिशत जाटव वोट और 11 प्रतिशत गैर जाटव वोट मिले। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में 21 प्रतिशत जाटव वोट और 41 प्रतिशत गैर जाटव वोट भाजपा को मिले।

खोया वोटबैंक पाकर कांग्रेस ने दलित पॉलिटिक्स पर किया फोकस
यूपी में दलित पॉलिटिक्स को हवा देने की बात करें तो बाबू जगजीवन राम की पुण्यतिथि पर इस वर्ग के परिवार के यहां भोजन करके कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय भी अपने इरादे जाहिर कर चुके हैं। कांग्रेस तीन दिनों तक दलित बस्तियों में सहभोज कार्यक्रम चला रही है। बाबू जगजीवन राम की पुण्यतिथि के बहाने कांग्रेस इस तबके को साधने में जुट गई है। उसके नेताओं का मानना है कि जिस तरह से लोकसभा चुनाव में उसके प्रत्याशियों को इस वर्ग का वोट मिला, उसके मद्देनजर अब जरूरी हो गया कि कांग्रेस इनके बीच में अपनी पैठ बढ़ाने में जुट जाए। कांग्रेस नेताओं के मुताबिक अनुसूचित जाति के मतदाता पहले से ही कांग्रेस को वोट देते रहे हैं। बीच में समीकरण बिगड़ने पर ये तबका बसपा के साथ चला गया। लेकिन, अब पार्टी इनका भरोसा वापस हासिल करने में सफल हुई है। इसलिए दलित बस्तियों और अनियोजित कॉलोनियों में पहुंचकर इनके बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जा रही है। कांग्रेस विधानसभा चुनाव 2027 के मद्देनजर अनुसचित वर्ग को ध्यान में रखते हुए विशेष कार्यक्रम संचालित करने की तैयारी कर रही है। 

अखिलेश यादव पीडीए फॉर्मूले को बढ़ाएंगे आगे
इसके साथ ही अखिलेश यादव पहले से ही अपने पीडीए फॉर्मूले यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक पर फोकस कर रहे हैं।  उपचुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव में अखिलेश पीडीए की रणनीति को धार देने का संदेश दे चुके हैं। वहीं मायावती भी अपने से छिटके वोटबैंक को हासिल करने के लिए जुट गई हैं। ऐसे में यूपी में आने वाले दिनों में दलित राजनीति को लेकर सियासी दलों के बीच काफी उठा पटक देखने को मिल सकती है। 

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