गीत और संगीत से सजी शाम : कलाकारों की विविध प्रस्तुतियों ने दर्शकों का मन मोहा

UPT | गीत और संगीत से सजी शाम

Oct 05, 2024 19:41

संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली, भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय और सत्रीय केन्द्र गुवाहाटी की ओर से हो रहे 17 वें संगीत समारोह में शनिवार को विविध प्रस्तुतियों ने दर्शकों का दिल जीत लिया।

Lucknow News : संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली, भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय और सत्रीय केन्द्र गुवाहाटी की ओर से हो रहे 17 वें संगीत समारोह में शनिवार को विविध प्रस्तुतियों ने दर्शकों का दिल जीत लिया। देश भर से आए कलाकारों ने गीत और संगीत के अनूठे रंगों से रूबरू कराया। सबसे पहले पिरिश्मता फुकन (असम) ने बरगीत की एकल गायन प्रस्तुति दी। जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद कुंडल कुमार बोरा, सुदर्शन बोरा और अकिर्द अंशु गोस्वामी ने बरगीत की प्रस्तुति से असम की पारंपरिक संगीत धारा का अद्भुत मिश्रण पेश किया। वहीं भैरवज्योति दत्त और अरुणभ ज्योति मालाकर ने खोल वादन की जुगल प्रस्तुति दी, जो बेहद सराही गई।

सामूहिक बरगीत गायन
भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने सामूहिक बरगीत से समारोह की शोभा को और बढ़ा दिया। छात्रों ने सत्रीय संगीत की पारंपरिक धारा को उत्कृष्ट तरीके से प्रस्तुत किया, जिससे उनकी प्रतिभा और अभ्यास की झलक मिली। इस आयोजन ने असम की समृद्ध सत्रीय संगीत परंपराओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया। जिसमें देश भर से आए कलाकारों ने भाग लिया और श्रोताओं का मन मोह लिया।
 
संगोष्ठी और व्याख्यान
समारोह के तीसरे और अंतिम दिन के पहले सत्र में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें असम की सत्रीय संगीत परंपरा पर गहन चर्चा हुई। विभिन्न सत्रीय विशेषज्ञों ने व्याख्यान प्रस्तुत किए। इसमें प्रमुख वक्ता थे हिरचरण भुइयां बरबायन, जादब बोरा, उत्तर कमलबारी सत्र, माजुली, शंकरदेव कलाक्षेत्र, और बरपेटा सत्र के प्रतिनिधि। वक्ताओं ने सत्रीय परंपराओं की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता पर प्रकाश डाला और दर्शकों को सत्रीय संगीत की विशिष्टताओं से अवगत कराया।



सत्रीय संगीत की महत्ता
सत्रीय संगीत असम की एक प्राचीन और समृद्ध धरोहर है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ी है। यह संगीत परंपरा शंकरदेव के समय से चली आ रही है और आज भी इसे पूरी निष्ठा के साथ संजोया जा रहा है। इस संगीत समारोह का उद्देश्य सत्रीय संगीत की विशेषताओं को बढ़ावा देना और उसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना था।

समारोह की सफलता
इस तीन दिवसीय आयोजन ने न केवल असम की सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित किया, बल्कि इसे देश के अन्य हिस्सों में भी पहचान दिलाई। कलाकारों की उत्कृष्ट प्रस्तुतियों और श्रोताओं की भारी उपस्थिति ने इस समारोह को बेहद सफल बना दिया। मारोह के अंत में मुख्य अतिथि डॉ. कुमकुम धर ने सभी कलाकारों को सम्मानित किया। उन्होंने इस समारोह को सफल बनाने में कलाकारों और आयोजकों के प्रयासों की भी सराहना की। 

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