UP News: यूपी के आम और बनेंगे खास, सरकार के फैसले से बागवानों को मिली राहत

UPT | CM Yogi Adityanath

Jul 09, 2024 16:34

कैनोपी प्रबंधन के जरिए फलत अच्छी होने से उत्पादन तो बढ़ेगा ही, फलों की गुणवत्ता भी सुधरेगी। इससे निर्यात की नई संभावनाओं के द्वार भी खुलेंगे।

Short Highlights
  • प्रदेश में 2.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में 45 लाख टन आम की पैदावार 
  • कैनोपी प्रबंधन से आम के बागों का होगा रखरखाव
  • प्रदेश में आम का उत्पादन बढ़ेगा 2.5 लाख टन
Lucknow News: योगी आदित्यनाथ सरकार के फैसले के तहत अब आम उत्पादकों को आम के पुराने वृक्षों के जीर्णोद्धार हेतु पेड़ों की ऊंचाई कम करने और उनकी उत्पादकता बनाये रखने के लिए की जाने वाली काट-छांट के लिए किसी सरकारी विभाग से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी। इस फैसले से आम के पुराने बागों का कैनोपी प्रबंधन आसान हो गया है। कैनोपी प्रबंधन के जरिए फलत अच्छी होने से उत्पादन तो बढ़ेगा ही, फलों की गुणवत्ता भी सुधरेगी। इससे निर्यात की नई संभावनाओं के द्वार भी खुलेंगे।

कैनोपी प्रबंधन से आम के बागों का जीर्णोद्धार संभव
आम उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण फलों में से एक है। प्रदेश में 2.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में आम की खेती से 45 लाख टन आम पैदा होता है। प्रदेश में चालीस वर्ष से अधिक उम्र के बगीचे लगभग 40 प्रतिशत हैं। इन बागों में पुष्पन और फलत के लिए जरूरी नई पत्तियों और टहनियों की संख्या कम हो चुकी हैं। लम्बी और मोटी-मोटी शाखाओं की ही अधिकता है। आपस में फंसी हुई शाखाओं के कारण बागों में पर्याप्त रोशनी का अभाव है। ऐसे पेडों में कीट और बीमारियों का प्रकोप अधिक है, आम के भुनगे और थ्रिप्स के नियंत्रण के लिये छिडकी गई दवा अंदर तक नहीं पहुच पाती है। दवा की अधिक मात्रा से छिडकाव करने पर पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। ऐसे बागों की उत्पादकता 7 टन तक मिल पाती है जबकि एक बेहतर प्रबंधन वाले प्रति हेक्टेयर आम के बाग से 12-14 टन उपज लेना संभव है।

वृक्षों के जीर्णोद्धार हेतु उचित काट-छांट जरुरी 
इन्हीं तथ्यों का ध्यान रखते हुए केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने आम के ऐसे वृक्षों के जीर्णोद्धार हेतु उचित काट-छांट की तकनीक विकसित की है जिससे वृक्ष का छत्र खुल जाता है और पेड की ऊंचाई भी कम हो जाती है। इसे वृक्ष की तृतीयक शाखाओं की काट-छांट या टेबल टॉप प्रूनिंग भी कहा जाता है। इस प्रकार की काट-छांट से पेड़ 2-3 साल में ही 100 किलोग्राम/वृक्ष का उत्पादन देने लगता है। उत्तर प्रदेश के लिए तो खास है। क्योंकि, रकबे और उत्पादन में इसका नंबर देश में प्रथम है। यहां के दशहरी, लंगड़ा, चौसा, आम्रपाली, गौरजीत आदि की अपनी बेजोड़ खुशबू और स्वाद है। इसलिए इनकी आय बढ़ाने के लिए सरकार लगातार प्रयास भी कर रही है। 

बागानों का वैज्ञानिक तरीके से हो प्रबंधन
लखनऊ स्थित रहमानखेड़ा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. सुशील कुमार शुक्ल के मुताबिक पौधरोपण के समय से ही छोटे पौधों का और 15 साल से ऊपर के बागानों का अगर वैज्ञानिक तरीके से कैनोपी प्रबंधन कर दिया जाय तो इनका रखरखाव, समय-समय पर बेहतर बौर और फल के लिए संरक्षा और सुरक्षा का उपाय आसान होगा। इससे उत्पादन और गुणवत्ता दोनों सुधरेगी। निर्यात की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। शुरु से ही मुख्य तने को 60 से 90 सेमी पर काट दें। इससे बाकी शाखाओं को बेहतर तरीके से बढ़ने का मौका मिलेगा। 
 
पुराने बागों का प्रबंधन जरुरी 
ऐसे बाग जिनकी उत्पादन क्षमता सामान्य है लेकिन शाखाएं बगल के वृक्षों से मिलने लगी हैं, वहां काट-छांट के जरिये कैनोपी प्रबंधन जरूरी है। यदि इस अवस्था में बेहतर तरीके से कैनोपी प्रबंधन कर दिया जाये तो जीर्णोंद्धार की नौबत कभी नहीं आएगी। इसके बावत वृक्षों का निरीक्षण कर हर वृक्ष में उनके एक या दो शाखाओं या शाखाओं के कुछ अंश को चिह्नित करें। जो छत्र के मध्य में स्थित हों तथा वृक्ष की ऊँचाई के लिए सीधी तौर पर जिम्मेदार हों। इन चिह्नित शाखाओं या उनके अंश को उत्पत्ति के स्थान से ही काट कर हटा दें। इसका लाभ बागवान को अगले वर्ष से ही मिलने लगता है। इससे वृक्ष की ऊंचाई कम हो जाती है। वृक्ष के छत्र के मध्य भाग में सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता से फलों की गुणवत्ता बढ़ती है। 

कैनोपी प्रबंधन से फलों की गुणवत्ता बढ़ेगी 
इसमें तीस साल या इससे ऊपर के बाग आते हैं। ऐसे तमाम बाग कैनोपी प्रबंधन न किए जाने से अनुपयोगी या अलाभकारी हो जाते हैं। इनकी जगह पर नए बाग लगाना एक खर्चीला काम है। फिर बढ़ती आबादी की वजह से अब जमीन की उपलब्धता भी घटी है। डॉ.सुशील कुमार शुक्ला के अनुसार कैनोपी प्रबंधन के लिए दिसंबर- जनवरी में सभी मुख्य शाखाओं को एक साथ काटने की बजाय सर्वप्रथम अगर कोई एक मुख्य शाखा हो, जो सीधा ऊपर की तरफ जाकर प्रकाश के मार्ग में बाधा बन रही हो, उसको उसके उत्पत्ति बिंदु से ही काट दें। साथ ही जो शाखाएं बहुत नीचे और अनुत्पादक या कीटो और रोगों से ग्रस्त हों, उन्हें भी निकाल दें। कटे हुए स्थान पर मानक अनुपात में कॉपर सल्फेट, चूना और पानी, 250 मिली अलसी का तेल, 20 मिली कीटनाशक मिलाकर लेप करें। इस प्रकार काटने से शुरू के वर्षों में बाकी बची शाखाओं से भी 50 से 150 किग्रा प्रति वृक्ष तक फल प्राप्त हो जाते है। 

आम उत्पादन लगभग 2.5 लाख टन 
ऐसे बागों की सभी शाखाओं को एक साथ कभी न काटें। क्योंकि, तब पेड़ को तनाबेधक कीट से बचाना मुश्किल हो जाता है। इनके प्रकोप से 20 से 30 प्रतिशत पौधे मर जाते हैं। गुजिया कीट के रोकथाम के लिए वृक्षों के तने के चारों ओर गुड़ाई कर क्लोर्पयरीफोस 250 ग्राम वृक्ष पर लगाएं। तनों पर पॉलीथिन की पट्टी बांधें। पाले से बचाव हेतु बाग की सिंचाई करें। और, अगर खाद नही दी गई है तो 2 किलो यूरिया, 3 किलोग्राम एसएसपी और 1.5 किलो म्यूरियट ऑफ पोटाश प्रति वृक्ष देनी चाहिए वैज्ञानिक तरीके से कैनोपी प्रबंधन और उसके बाद के रखरखाव से प्रदेश के करीब पचास हजार हेक्टर के बगीचों पर असर पडेगा। इससे आम का उत्पादन लगभग 2.5 लाख टन तक बढ़ जाएगा।

कैनोपी प्रबंधन प्रशिक्षण की सुविधा भी उपलब्ध
कैनोपी प्रबंधन या जीर्णोद्धार की सबसे बड़ी समस्या कुशल श्रमिकों का न मिलना। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान इसके लिए इच्छुक युवाओं को प्रशिक्षण भी देता है। इस दौरान उनको बिजली, बैटरी या पेट्रोल से चलने वाली आरी से काम करने का तरीका और उनके रखरखाव की जानकारी दी जाती है। युवा यह प्रशिक्षण लेकर अपनी आय भी बढ़ा सकते हैं। 

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