अच्छी खबर : अगले तीन से चार साल में खुद की दाल खाएगा यूपी, दलहन उत्पादन में 36 फीसद की वृद्धि हुई दर्ज

UPT | दाल

Jul 08, 2024 15:20

प्रदेश में दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए अरहर, उर्द और मूंग की कार्य-योजना योगी सरकार द्वारा तैयार कर ली गयी है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजनान्तर्गत 27200 हेक्टेयर फसल प्रदर्शन आयोजित होंगे...

Short Highlights
  • यूपी सरकार दलहन उत्पादन को दे रही बढ़ावा
  • खरीद की गारंटी भी दे रही सरकार
  • दलहन उत्पादन में 36 फीसद की वृद्धि हुई दर्ज
  • एमएसपी पर खरीद की व्यवस्था सुनिश्चित 
  • बुंदेलखंड में विकसित होंगे आदर्श दलहन ग्राम
Lucknow News : अगले तीन से चार साल में उत्तर प्रदेश दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाएगा। योगी सरकार का यह लक्ष्य है कि प्रदेश आने वाले समय में अपनी दाल खाए।  इसके संदर्भ में  निर्देश जारी किए गए थे, जिसके सात साल के नतीजे भी शानदार है। साल  2016/217 से 2023/2024 के दौरान दलहन उत्पादन में करीब 36% की वृद्धि दर्ज की गई है। इस दौरान दलहन का उत्पादन 23.94 लाख मिट्रिक टन से बढ़कर 32.55 लाख मिट्रिक टन हो गया। बता दें कि दलहन का रकबा और प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार की मदद से योगी सरकार किसानों की हर संभव मदद कर रही है।

सरकार की कार्ययोजना
प्रदेश में दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए अरहर, उर्द और मूंग की कार्य-योजना योगी सरकार द्वारा तैयार कर ली गयी है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजनान्तर्गत 27200 हेक्टेयर फसल प्रदर्शन आयोजित होंगे। इसी क्रम में दलहन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजनान्तर्गत 31553 कुंतल बीज वितरण और 27356 कुंतल प्रमाणित बीज उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। बीज व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए 14 सीड हब तैयार किए गए हैं। इनके जरिए  21000 कुंतल बीज उत्पादन किया जायेगा।

एमएसपी पर खरीद की व्यवस्था सुनिश्चित 
बता दें कि 10500 किसानों में अरहर की उन्नतशील प्रजातियों के मिनीकिट्स बांटे जाएंगे। पिछले साल की तरह इस साल भी दलहनी के अन्य फसलों मूंग ,उर्द आदि के भी मिनिकिट बांटे जाएंगे। दलहनी फसलों के उत्पादन के बाद बाजार में उपज का वाजिब दाम दिलाने के लिए सरकार ने इन सभी फसलों की एमएसपी पर खरीद की व्यवस्था भी सुनिश्चित कर रही है। किसान इनके उत्पादन के लिए प्रोत्साहित हों इनके लिए अन्य फसलों की तुलना में हर इनके एमएसपी में भी अधिक वृद्धि कर रही है।



बुंदेलखंड में विकसित होंगे आदर्श दलहन ग्राम
दलहन उत्पादन में अग्रणी बुंदेलखंड के जिलों-बांदा, महोबा, जालौन, चित्रकूट और ललितपुर में आदर्श दलहन ग्राम विकसित किये जाएंगे। उत्तर प्रदेश दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता राज्य है। पर, अभी उपभोग का आधा ही उत्पादन प्रदेश में होता है। रणनीति के अनुसार तय समयावधि में प्रति हेक्टेयर उपज 14 से बढ़ाकर 16 कुंतल करने का है। कुल उपज का लक्ष्य 30 लाख टन है। इसके अलावा करीब 1.75 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त रकबे को दलहन की फसलों से आच्छादित करने की भी तैयारी है। सरकार इसके लिए दलहन की परंपरागत फसलों की उन्नत और अधिक उपज देने वाली प्रजातियों के बीज उपलब्ध कराएगी। कुछ प्रगतिशील किसानों के वहां इनका प्रदर्शन भी होगा। किसानों को बड़ी संख्या में बीज के निशुल्क मिनीकिट भी दिए जाएंगे। यह क्रम जारी भी है। साथ ही फोकस कम समय में होने वाली मूंग, उर्द (उड़द) आदि की फसलों पर होगा। इनकी सहफसली खेती को भी बढ़ावा दिया जाएगा।

आम आदमी के लिए दाल जरूरी
सरकार दाल के उत्पादन पर काफी जोर दे रही है इसका एक कारण ये भी है कि आम आदमी, खासकर शाकाहारी लोगों के लिए प्रोटीन का एक मात्र स्रोत दाल ही है। खपत की तुलना में पैदावार कम होने से अक्सर कुछ वर्षों के अंतराल पर दाल के दाम सुर्खियों में रहते हैं। ऐसा होने पर आम आदमी के थाल की दाल पतली हो जाती है। गरीब के थाल से तो गायब ही। प्रोटीन का स्रोत होने के नाते आम आदमी खासकर गरीबों की सेहत के लिए भोजन में दाल जरूरी है। इसी तरह नाइट्रोजन फिक्ससेशन गुण के कारण दलहनी फसलें भूमि के लिए भी संजीवनी हैं। 
 
खरीद की गारंटी भी सरकार दे रही 
असमतल भूमि पर स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली का प्रयोग करते हुये उत्पादन में वृद्धि, फरो एंड रिज मेथड से खेती कर उत्पादन में वृद्धि और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की गारंटी भी सरकार दे रही है। दरअसल खाद्यान्न में रिकॉर्ड उत्पादन के बाद सरकार अब खाद्यान्न सुरक्षा से एक कदम आगे पोषण सुरक्षा के बारे में सोच रही है। इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका दलहनी फसलों की होगी। 

आत्मनिर्भरता से विदेशी मुद्रा भी बचेगी
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल का उत्पादक, उपभोक्ता और आयतक है। सर्वाधिक आबादी के नाते इस उपभोग का सर्वाधिक हिस्सा यूपी का ही है। ऐसे में पूरे दुनिया के दाल उत्पादक देशों (कनाडा, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, टर्की और म्यानमार) की नजर न केवल भारत और उत्तर प्रदेश के पैदावार बल्कि छह महीने के भंडारण पर भी रहती है। ऐसे में अगर पैदावार कम है तो यहां की भारी मांग के मद्देनजर अतंरराष्ट्रीय बाजार में दाल यूं ही तेज हो जाती है। इस पर रुपये के मुकाबले डॉलर की क्या स्थिति है, इसका भी बहुत असर पड़ता है। रुपये के मुकाबले अगर डॉलर के दाम अधिक हैं तो आयात भी महंगा पड़ता है। इस तरह दाल के आयात में देश को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भी खर्च करना होता है। अगर उत्तर प्रदेश दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाय तो विदेशी मुद्रा भी बचेगी। 

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