IPC की जगह लेगा अब BNS : अरेस्ट से लेकर कस्टडी तक, जानिए 1 जुलाई से कितना बदलेगा कानून ?

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Jun 30, 2024 17:46

गिरफ्तारी के नियमों में भी बदलाव हुआ है, हालांकि यह बदलाव बहुत ज्यादा नहीं है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35 में एक नया सब सेक्शन 7 जोड़ा गया है। इससे छोटे-मोटे अपराधियों और बुजुर्गों की गिरफ्तारी को लेकर नियम बनाया गया है...

UPT News Desk : 1  जुलाई से तीन नए क्रिमिनल लॉ लागू होने जा रहे हैं। इसके बाद 1860 में बनी आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता, सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 के इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य संहिता लेगी। इन तीनों नए कानूनों को लाने का मकसद अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे आउटडेटेड नियम-कायदों को हटाना और उनकी जगह आज की जरूरत के हिसाब से कानून लागू करना है। इन तीन नए कानूनों के लागू होने के बाद क्रिमिनल लॉ सिस्टम में काफी कुछ बदल जाएगा।

गिरफ्तारी के बदले नियम
गिरफ्तारी के नियमों में भी बदलाव हुआ है, हालांकि यह बदलाव बहुत ज्यादा नहीं है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35 में एक नया सब सेक्शन 7 जोड़ा गया है। इससे छोटे-मोटे अपराधियों और बुजुर्गों की गिरफ्तारी को लेकर नियम बनाया गया है। धारा 35 (7) के मुताबिक, ऐसे अपराध जिनमें तीन साल या उससे कम की सजा का प्रावधान है, उसमें आरोपी की गिरफ्तारी से पहले डीएसपी या उससे ऊपर की रैंक के अफसर की अनुमति लेनी होगी।

60 साल से ज्यादा उम्र के आरोपी की गिरफ्तारी के लिए भी ऐसा ही करना होगा। हालांकि, नए कानून में पुलिस कस्टडी को लेकर सख्ती की गई है। अब तक आरोपी को गिरफ्तारी की तारीख से ज्यादा से ज्यादा 15 दिनों के लिए पुलिस कस्टडी में भेजा जा सकता था। उसके बाद आरोपी को कोर्ट न्यायिक हिरासत में भेज देती है। लेकिन अब पुलिस गिरफ्तारी के 60 से 90 दिन के भीतर किसी भी समय 15 दिन की कस्टडी मांग सकती है।



हथकड़ी लगाने के लिए क्या है नियम
सुप्रीम कोर्ट ने हथकड़ी के इस्तेमाल को अनुच्छेद 21 के तहत असंवैधानिक करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी कैदी को हथकड़ी लगाने की जरूरत महसूस होती है तो उसका कारण दर्ज करना होगा और मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होगी। लेकिन अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 43 (3) में गिरफ्तारी या अदालत में पेश करते समय कैदी को हथकड़ी लगाने का प्रावधान किया गया है। इस धारा के मुताबिक, अगर कोई कैदी आदतन अपराधी है या पहले हिरासत से भाग चुका है या संगठित अपराध या आतंकवादी गतिविधि में शामिल रहा है, ड्रग्स से जुड़े अपराध करता हो, हथियार या गोला-बारूद, हत्या, दुष्कर्म, एसिड अटैक, नकली सिक्कों और नोटों की तस्करी, मानव तस्करी, बच्चों के खिलाफ यौन अपराध या राज्य के खिलाफ अपराध में शामिल रहा हो तो ऐसे कैदी को हथकड़ी लगाकर गिरफ्तार किया जा सकता है या मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जा सकता है। बता दें बिना हथकड़ी लगाए पुलिस थाने ले जा सकती है, परंतु शर्त यह होगी कि आरोपी का पुराना आपराधिक इतिहास न हो।

फरार घोषित अपराधियों पर भी चलेगा  मुकदमा
अब तक किसी अपराधी या आरोपी पर ट्रायल तभी शुरू होता, जब वो अदालत में मौजूद हो। पर अब फरार घोषित अपराधियों पर भी मुकदमा चल सकेगा। नए कानून के मुताबिक, आरोप तय होने के 90 दिन बाद भी अगर आरोपी अदालत में पेश नहीं होता है तो ट्रायल शुरू कर दिया जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि कोर्ट मान लेगी कि आरोपी ने निष्पक्ष सुनवाई के अपने अधिकार को छोड़ दिया है।

30 दिन के भीतर दायर करनी होगी दया याचिका
मौत की सजा पाए दोषी को अपनी सजा कम करवाने या माफ करवाने का आखिरी रास्ता दया याचिका होती है। जब सारे कानूनी रास्ते खत्म हो जाते हैं तो दोषी के पास राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर करने का अधिकार होता है। अब तक सारे कानूनी रास्ते खत्म होने के बाद दया याचिका दायर करने की कोई समय सीमा नहीं थी। लेकिन अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 472 (1) के तहत, सारे कानूनी विकल्प खत्म होने के बाद दोषी को 30 दिन के भीतर राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर करनी होगी। राष्ट्रपति का दया याचिका पर जो भी फैसला होगा, उसकी जानकारी 48 घंटे के भीतर केंद्र सरकार को राज्य सरकार के गृह विभाग और जेल के सुपरिटेंडेंट को देनी होगी।

कहीं भी दर्ज करवा सकेंगे एफआईआर
अब कहीं भी जीरो एफआईआर अब देश में कहीं भी जीरो एफआईआर दर्ज करवा सकेंगे। इसमें धाराएं भी जुड़ेंगी। अब तक जीरो एफआईआर में धाराएं नहीं जुड़ती थीं।15 दिन के भीतर जीरो एफआईआर संबंधित थाने को भेजनी होगी। नए कानून में पुलिस की जवाबदेही भी बढ़ा दी गई है। हर राज्य सरकार को अब हर जिले के हर पुलिस थाने में एक ऐसे पुलिस अफसर की नियुक्ति करनी होगी, जिसके ऊपर किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी से जुड़ी हर जानकारी रखने की जिम्मेदारी होगी।

पीड़िता को देनी होगी जांच की जानकारी
पुलिस को अब पीड़ित को 90 दिन के भीतर उसके मामले से जुड़ी जांच की प्रोग्रेस रिपोर्ट भी देनी होगी। पुलिस को 90 दिन में चार्जशीट दाखिल करनी होगी। परिस्थिति के आधार पर अदालत 90 दिन का समय और दे सकती है। 180 दिन यानी छह महीने में जांच पूरी कर ट्रायल शुरू करना होगा। अदालत को 60 दिन के भीतर आरोप तय करने होंगे। सुनवाई पूरी होने के बाद 30 दिन के अंदर फैसला सुनाना होगा। फैसला सुनाने के बाद  सजा का ऐलान  7 दिन के भीतर करना होगा।

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