लोकसभा में यूपी का दबदबा कायम : देश को तीसरी बार दिया पीएम और नेता प्रतिपक्ष

UPT | लोकसभा में यूपी का दबदबा कायम

Jun 26, 2024 15:09

उत्तर प्रदेश को राजनीति का गढ़ माना जाता है। राजनीतिक रूप से राज्य की ताकत कभी कम नहीं हुई। दिल्ली की हर सरकार का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है। राज्य ने देश को तीसरी बार पीएम और नेता प्रतिपक्ष एक साथ दिया है।

New Delhi News : उत्तर प्रदेश से चुने गए प्रतिनिधियों का संसद में हमेशा दबदबा रहा है। यह पहली बार नहीं है जब यूपी ने सत्ता पक्ष और विपक्ष को नेता दिया हो। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश ने दो बार प्रधानमंत्री और दो बार विपक्ष का नेता दिया है।

1. वीपी सिंह और राजीव गांधी 
राजीव गांधी 1989 से 1990 तक विपक्ष के नेता के पद पर रहे। उस समय प्रधानमंत्री वीपी सिंह थे। वीपी सिंह जून 1989 में इलाहाबाद सीट का प्रतिनिधित्व कर पीएम बने थे। उन्होंने विपक्ष के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में इलाहाबाद से लोकसभा उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी। राजीव गांधी उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट से चुनाव जीतकर विपक्ष की भूमिका में आए थे।   

2. अटल बिहारी वाजयेयी और सोनिया गांधी
सोनिया गांधी 1999 से लेकर 2004 तक नेता प्रतिपक्ष बनी रहीं। अटल बिहारी वाजयेयी 1999 में पीएम बने थे। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। वहीं कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने यूपी के रायबरेली से चुनाव जीता था और विपक्ष की भूमिका निभाई।  

3. नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी
18 वीं लोकसभा में इस बार प्रदेश की वाराणसी सीट से चुने गए सांसद को देश का प्रधानमंत्री चुना गया है तो वहीं रायबरेली ने नेता प्रतिपक्ष दिया है। नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से लोकसभा चुनाव जीता है, जबकि राहुल गांधी रायबरेली से जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं। माना जा रहा है कि लोकसभा में राज्य का दबदबा बढ़ेगा। देश के इतिहास में यह तीसरी बार है जब प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता दोनों एक ही राज्य से जीतकर आए हैं।

कैबिनेट मंत्री के समान होगी राहुल गांधी की भूमिका 
कांग्रेस नेता राहुल गांधी 18वीं लोकसभा में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी निभाएंगे। यह फैसला गांधी इंडिया ब्लॉक की बैठक में लिया गया है। यह पहला संवैधानिक पद होगा जिसे राहुल गांधी अपने ढाई दशक से अधिक के लंबे राजनीतिक करियर में संभालेंगे। राहुल गांधी की भूमिका कैबिनेट मंत्री के समान होगी। राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद संभालने वाले गांधी परिवार के तीसरे सदस्य होंगे। उनसे पहले उनके माता-पिता सोनिया गांधी और राजीव गांधी इस पद पर रह चुके हैं।

फैसलों में नेता प्रतिपक्ष की सहमति जरूरी होगी
दरअसल नेता प्रतिपक्ष के पास कैबिनेट मंत्री का दर्जा होता है। नेता प्रतिपक्ष विपक्ष की जिम्‍मेदारी निभाने के साथ ही कई संयुक्‍त संसदीय पैनलों और चयन समितियों का भी हिस्‍सा होता है। विपक्ष के नेता के रूप में, राहुल गांधी प्रधानमंत्री के साथ-साथ प्रमुख समितियों का हिस्सा होंगे - इनमें सीबीआई के डायरेक्‍टर, सेंट्रल विजिलेंस कमिश्‍नर, भारत निर्वाचन आयोग के मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त और चुनाव आयुक्‍तों की नियुक्ति, मुख्‍य सूचना आयुक्‍त, लोकायुक्‍त और राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्‍यक्ष और सदस्‍यों को चुनने वाली समितियां शामिल हैं। संवैधानिक पद उन्हें राष्ट्रीय मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण रखने के लिए यात्रा पर आने वाले राष्ट्राध्यक्षों से मिलने का अवसर भी देगा।

10 साल बाद विपक्ष का नेता 
पिछले 10 सालों में लोकसभा में विपक्ष का नेता सिर्फ इसलिए नहीं रहा क्योंकि सत्ताधारी पार्टी के अलावा कोई भी राजनीतिक दल विपक्ष के नेता को नामित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम लोकसभा सीटें हासिल करने में सक्षम नहीं था। आखिरी बार 2009 से 2014 तक सुषमा स्वराज लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थीं। 
2019 के लोकसभा चुनावों में, कांग्रेस 52 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। यह अपेक्षित संख्या से तीन कम थी। 2014 के लोकसभा चुनावों में, कांग्रेस, जो फिर से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी, ने 44 लोकसभा सीटें जीतीं - जो कि लक्ष्य से काफी कम थी।

इस बार कांग्रेस को विपक्ष का नेता पद क्यों मिला? 
इस बार, कांग्रेस 99 लोकसभा सीटें जीतकर इंडिया गठबंधन  (विपक्ष) में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। एक राजनीतिक पार्टी के लिए विपक्ष का नेता नियुक्त करने के लिए आवश्यक 55 सदस्यों के आंकड़े को आसानी से पार कर लिया।

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