Court Commissioner Survey : एक विवादित मुद्दा जिसने पूरे देश को हिला दिया, कोर्ट कमिश्नर के सर्वे की पूरी प्रक्रिया क्या है? आइए जानते हैं!

UPT | कोर्ट कमिश्नर का सर्वे

Nov 28, 2024 14:08

कोर्ट कमिश्नर का सर्वे पहली बार नहीं हो रहा था। संभल से पहले धर्म नगरी काशी में ज्ञानवापी के कानूनी विवादों में भी कोर्ट कमिश्नर का सर्वे हो चुका है। दोनों ही जगह कोर्ट कमिश्नर कचहरी के ही वकील को बनाया गया...

Short Highlights
  • कैसे होता है कोर्ट कमीशन सर्वे और क्या है प्रक्रिया?
  • संभल से लेकर अजमेर तक इस पर क्यों उठा तूफान?
  • सर्वे में क्या होता है पुलिस और सरकार का रोल ?
  • संभल में शाही जामा मस्जिद के सर्वे पर भी हुआ संग्राम 
     
Sambhal Court Commission: संभल की शाही जामा मस्जिद में कोर्ट कमिश्नर के सर्वे के दूसरे दिन खूब बवाल हुआ। हालात ऐसे हो गए कि सर्वे के दौरान जमकर ईट-पत्थर चले। गोलियां भी दागी गईं। जिसमें चार लोगों ने अपनी जान गंवा दी। ऐसे में एक सवाल आपके दिमाग में उठता होगा कि आखिर कोर्ट कमिश्नर का सर्वे है क्या? इसकी पूरी प्रक्रिया क्या है? क्यों यह मुद्दा काशी-मथुरा से लेकर संभल और अजमेर तक चर्चा में है? आइए जानते हैं इस मुद्दे की जड़ में क्या है! जिसकी वजह से कई दिनों से यूपी में हंगामा मचा हुआ है। 
कौन होता है कमिश्नर?
बता दें कोर्ट कमिश्नर का सर्वे पहली बार नहीं हो रहा था। संभल से पहले धर्म नगरी काशी में ज्ञानवापी के कानूनी विवादों में भी कोर्ट कमिश्नर का सर्वे हो चुका है। दोनों ही जगह कोर्ट कमिश्नर कचहरी के ही वकील को बनाया गया। जानकारों का कहना है कि अधिकतर मामलों में अदालत कचहरी के किसी अधिवक्ता को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करता है। उसके साथ एक या दो सहायक कोर्ट कमिश्नर होते हैं। जिन दो या उससे ज्यादा लोगों और संस्थाओं के बीच कानूनी विवाद होता है। यानी वादी और प्रतिवादी के अधिवक्ता को छोड़कर किसी भी अधिवक्ता को नियुक्त किया जाता है। ताकि निष्पक्षता बनी रहे। यह कोर्ट कमिश्नर एक तरीके से न्यायालय की आंखे होती हैं, जो मौके पर जाकर मुकदमे के दावे को कानून की कसौटी पर परखता है। 

क्या होता है कोर्ट कमिश्नर का सर्वे?
कोर्ट कमिश्नर सर्वे एक कानूनी प्रक्रिया है जिसमें अदालत के आदेश पर किसी विशेष स्थान या संपत्ति का सर्वेक्षण किया जाता है। यह सर्वेक्षण आमतौर पर किसी विवादित संपत्ति या स्थान के मालिकाना हक को तय करने के लिए किया जाता है। मुकदमे के दावे को कानून की कसौटी पर परखने के लिए कोर्ट कमिश्नर वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी भी कराता है। इसके बाद कमिश्नर ने तयशुदा समय में जो देखा और जो समझा उसकी रिपोर्ट बनाता है। फिर उस रिपोर्ट को कोर्ट में दाखिल करता है। इसके बाद कोर्ट उस मुकदमे को आगे बढ़ाने की दिशा तय करता है। अगर कोर्ट चाहे तो राजस्व के इस वाद में किसी राजस्वकर्मी मसलन अमीन या उससे सीनियर किसी कर्मचारी को भी कोर्ट कमिश्नर बना सकता है। रिपोर्ट्स की मानें तो कभी-कभी अदालत कोर्ट कमिश्नर बने वकील की रिपोर्ट के बाद क्रॉस चेक करने के लिए किसी राजस्व कर्मी को भी कोर्ट कमिश्नर बनाकर एक दूसरी रिपोर्ट मंगवा सकती है, ताकि दोनों रिपोर्ट के अंतर को समझकर फैसला हो सके। 

कमीशन नियुक्त करने की शक्ति
जानकारों की मानें तो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 75 में कमीशन नियुक्त करने की शक्ति दी गई है। इसकी प्रक्रिया आदेश 26 में विस्तार से बताई गई है। कमीशन जारी करने की शक्ति अदालत के विवेकाधीन है। ऐसे में अदालत द्वारा पार्टियों के बीच पूरा न्याय करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल कोर्ट या तो वाद के पक्षकार के आवेदन पर या स्वप्रेरणा से करता है। 

क्या होता है सरकार का कोई रोल?
जानकारों की मानें तो पुलिस और प्रशासन का काम सिर्फ इतना ही होता है कि कोर्ट कमिश्नर कार्रवाई को बिना किसी रुकावट के पूरा कराना। यानी साफ तौर पर आप कह सकते हैं कि कोर्ट कमिश्नर सर्वे में सरकार का कोई रोल नहीं होता। जानकारों का कहना है कि सरकार पर कोई भी पक्ष परेशान या पक्षपात करने का आरोप लगाता है। ऐसे में वह कानूनी तर्क के लिहाज से सही साबित नहीं होता है, क्योंकि ये कार्रवाई पूरी तरह से अदालती है। 

सर्वे में क्या होता है इसमें पुलिस का रोल?
कोर्ट कमीशन में पुलिस और प्रशासन का काम या रोल सिर्फ कोर्ट कमिश्नर कार्रवाई को बिना किसी अवरोध के पूरा कराना होता है। यानी कुल मिलाकर कोर्ट कमिश्नर सर्वे में सरकार का कोई रोल नहीं होता है। कोई भी पक्ष सरकार पर परेशान करने या पक्षपात करने का आरोप लगाता है तो ये कानूनी लिहाज से सही साबित नहीं होता है क्योंकि यह पूरी तरह से अदालती कार्रवाई है। 

काशी, मथुरा और संभल के बाद क्या अजमेर भी है निशाने पर
उधर, अजमेर के विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा किया गया है। जिस पर कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए हैं। परिवादी ने अपने वाद में दरगाह कमेटी, नई दिल्ली में केंद्रीय अल्पसंख्यक विभाग और केंद्रीय पुरात्तव विभाग को प्रतिवादी बनाया था। 20 दिसंबर को इस मामले की अगली सुनवाई होनी है। वहीं, आगरा में लघुवाद न्यायालय के न्यायाधीश मृत्युंजय श्रीवास्तव की अदालत में ताजमहल या तेजोमहालय विवाद की सुनवाई चली रही है। जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मुस्लिम पक्ष के सैय्यद इब्राहिम हुसैन जैदी के इस मामले में वादी बनाए जाने के प्रार्थना पर आपत्ति दाखिल की। सुनवाई के दौरान एएसआई ने भी अपना पक्ष रखा और कहा कि सैय्यद इब्राहिम हुसैन जैदी को पक्षकार बनाए जाने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट में सारी जानकारी साझा करने की जिम्मेदारी एएसआई की है। जिस पर सैय्यद इब्राहिम हुसैन जैदी के अधिवक्ता ने मामले में जबाव दाखिल करने के लिए समय मांगा है। 

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