बच्चों की कस्टडी पर अहम फैसला : पिता से अलग होने पर भी मां का हक रहेगा बरकरार, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने की महत्वपूर्ण टिप्पणी

UPT | इलाहाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला।

Jan 15, 2025 12:01

बच्ची की देखभाल और उसकी भावनात्मक जरूरतों को सबसे बेहतर तरीके से मां ही पूरा कर सकती है। अदालत ने यह भी कहा कि किसी भी बच्ची की कस्टडी में हमेशा उसकी भलाई को सबसे ऊपर रखा जाता है।

Allahabad High Court : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि अगर किसी बच्ची को उसके माता-पिता के बीच अलगाव के समय पिता के पास रखा गया हो, तो इसका मतलब यह नहीं है कि मां को बच्ची की कस्टडी का अधिकार खत्म हो जाएगा। अदालत ने यह साफ किया कि मां ही एक छोटे बच्चे की प्राकृतिक अभिभावक होती है और उसे कस्टडी का अधिकार मिलना चाहिए, भले ही बच्ची कुछ समय के लिए पिता के साथ रही हो। अमित धामा बनाम पूजा और अन्य मामले में न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और  न्यायमूर्ति डोणाडी रमेश की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि बच्ची की प्राकृतिक अभिभावक उसकी मां है और उसे अपनी बेटी की देखभाल का पूरा अधिकार है।

मां का अधिकार
इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डोणादी रमेश ने कहा कि चार साल की बच्ची की देखभाल और उसकी भावनात्मक जरूरतों को सबसे बेहतर तरीके से मां ही पूरा कर सकती है। अदालत ने यह भी कहा कि किसी भी बच्ची की कस्टडी में हमेशा उसकी भलाई को सबसे ऊपर रखा जाता है। कोर्ट ने यह बात साफ की कि अगर बच्ची की उम्र 5 साल से कम हो, तो मां को सामान्य तौर पर कस्टडी का अधिकार मिलता है। 

पिता के पास रहने का कोई असर नहीं
कोर्ट ने यह भी कहा कि, अगर बच्ची को अलगाव के दौरान पिता के पास रखा गया था, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह मां से अलग हो जाएगी या उसकी कस्टडी का अधिकार छिन जाएगा। अदालत ने यह फैसला करते हुए कहा कि बच्ची के लिए मां के साथ रहना ज्यादा अच्छा होगा, क्योंकि उसकी शारीरिक और मानसिक जरूरतें मां की देखभाल में पूरी हो सकती हैं। कोर्ट ने कहा, "यह माना जा सकता है कि कस्टडी में बदलाव से बच्ची को मानसिक तनाव हो सकता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि बच्ची का भला कैसे हो सकता है।" 

अदालत का आदेश
अदालत ने यह फैसला सुनाया कि मां को बच्ची की कस्टडी मिलनी चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि पिता को अपनी बेटी से मिलने का अधिकार दिया गया है और वे उसे नियमित रूप से देख सकते हैं। हालांकि, कोर्ट ने पिता की अपील खारिज कर दी, क्योंकि मां को कस्टडी देना बच्ची के भले के लिए सबसे अच्छा था।

Also Read