इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : पति पर झूठा मुकदमा दर्ज कराना क्रूरता, जानिए क्या है पूरा मामला

UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट

Sep 26, 2024 11:11

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार पर झूठा आपराधिक मुकदमा दर्ज कराना क्रूरता के समान है। यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट की जस्टिस एस.डी. सिंह और जस्टिस डी. रमेश...

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार पर झूठा आपराधिक मुकदमा दर्ज कराना, पति के साथ मानसिक और सामाजिक क्रूरता के समान है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे झूठे मुकदमे पति के मन में अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर संदेह उत्पन्न करना स्वाभाविक है। इसलिए, इस प्रकार का झूठा मुकदमा हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत 'क्रूरता' साबित करने के लिए पर्याप्त आधार है। हाईकोर्ट ने इस आधार पर कानपुर नगर की तृप्ति सिंह की अपील को खारिज कर दिया।

ये है पूरा मामला
यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट की जस्टिस एस.डी. सिंह और जस्टिस डी. रमेश की डिवीजन बेंच ने दिया। याचिकाकर्ता तृप्ति सिंह की शादी 2002 में अजातशत्रु के साथ हुई थी। शादी के कुछ सालों बाद, उनके एक बेटे का भी जन्म हुआ। लेकिन 2006 में तृप्ति ने अपने पति को छोड़ दिया। इसके बाद, अजातशत्रु ने कानपुर के परिवार न्यायालय में तलाक की अर्जी दाखिल की। जब तृप्ति को इस तलाक की अर्जी की जानकारी मिली, तो उन्होंने अपने पति और उसके परिवार वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और अन्य आपराधिक धाराओं में मुकदमे दर्ज करा दिए। इन मुकदमों के आधार पर अजातशत्रु और उनके परिवार के सदस्यों को जेल भी जाना पड़ा, हालांकि बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया।

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हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता का आधार
कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत यदि कोई एक पक्ष दूसरे पक्ष के साथ मानसिक, शारीरिक या सामाजिक क्रूरता करता है, तो वह तलाक का पर्याप्त आधार होता है। इस मामले में, पत्नी द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों और मुकदमों के कारण पति और उसके परिवार को न केवल कानूनी परेशानियों का सामना करना पड़ा, बल्कि उन्हें सामाजिक बदनामी का भी शिकार होना पड़ा।

झूठे मुकदमों का प्रभाव
कानपुर के परिवार न्यायालय ने अजातशत्रु की तलाक की अर्जी स्वीकार कर ली और तलाक की डिक्री जारी कर दी। तृप्ति सिंह ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे अब हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पत्नी ने पति के खिलाफ दहेज की मांग का मुकदमा तब दर्ज कराया जब पति ने तलाक की अर्जी दाखिल कर दी थी, जबकि शादी के छह साल बाद तक ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया था। कोर्ट ने पाया कि पत्नी अपने आरोपों को साबित नहीं कर पाई, जिसके चलते पति और उनके परिवार के सदस्यों को इस मामले से बरी कर दिया गया। कोर्ट ने इसे क्रूरता का प्रमाण मानते हुए कहा कि इस तरह के झूठे आरोप लगाने से पति के मानसिक और सामाजिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो तलाक के लिए पर्याप्त आधार है।

क्रूरता को साबित करने के लिए पर्याप्त आधार
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि झूठे आपराधिक मुकदमों के कारण पति और उसके रिश्तेदारों को जेल जाना पड़ा, जो सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए धक्का था। कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्ष शिक्षित हैं, और भविष्य में भी ऐसे विवाद उत्पन्न हो सकते हैं, इसलिए समझौते का कोई आधार नहीं है। इस कारण कोर्ट ने तृप्ति सिंह की अपील को खारिज कर दिया और पति को तलाक की डिक्री को बरकरार रखा।

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