इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश : मकान मालिकों को मिला संपत्ति के उपयोग का कानूनी अधिकार, किराएदार को संपत्ति खाली करने का निर्देश

UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट

Dec 21, 2024 12:17

कोर्ट ने यह माना कि मकान मालिक को अपनी संपत्ति का मनचाहा प्रयोग करने का कानूनी अधिकार है। यदि किराएदार को संपत्ति दी जाती है, तो मकान मालिक के पास यह अधिकार है कि वह जरूरत पड़ने पर किराएदार से संपत्ति को खाली करा सके।

Prayagraj News : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने किराएदारी कानून पर एक अहम फैसला सुनाया है। जिसमें मकान मालिकों के पक्ष में स्पष्ट रूप से निर्णय लिया गया है। कोर्ट ने यह माना कि मकान मालिक को अपनी संपत्ति का मनचाहा प्रयोग करने का कानूनी अधिकार है। यदि किराएदार को संपत्ति दी जाती है, तो मकान मालिक के पास यह अधिकार है कि वह जरूरत पड़ने पर किराएदार से संपत्ति को खाली करा सके। कोर्ट ने इस फैसले में किराएदार की याचिका को खारिज कर दिया और उसे संपत्ति खाली करने का आदेश दिया।

क्या है पूरा मामला?
मेरठ के निवासी और सीनियर सिटिजन, जहांगीर आलम ने अपनी दिल्ली रोड स्थित तीन दुकानों में से दो दुकानों को जुल्फिकार अहमद को किराए पर दिया था। जहांगीर खुद इन दुकानों में मोटरसाइकिल मरम्मत और स्पेयर पार्ट्स की बिक्री का व्यवसाय करते थे। जब जहांगीर ने जुल्फिकार को एक दुकान खाली करने का नोटिस दिया, तो किराएदार ने इसे ठुकरा दिया और दुकान खाली करने से मना कर दिया। इस इनकार को लेकर मामला बढ़ा और अंततः यह मामला कोर्ट में पहुँच गया। पहले कोर्ट ने किराएदार को दुकान खाली करने का आदेश दिया, लेकिन जुल्फिकार ने इस आदेश के खिलाफ अपील की। जिसे भी खारिज कर दिया गया। इसके बाद किराएदार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया।

कोर्ट में दी गई दलीलें
हाई कोर्ट में जुल्फिकार के वकील ने तर्क दिया कि जहांगीर आलम अपनी तीसरी दुकान में आराम से व्यवसाय चला सकते हैं और इसलिए किराएदार के अधिकारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उनका कहना था कि किराएदारी कानून के तहत किराएदार के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए और दुकान मालिक को किराएदार का सुझाव मानने के लिए बाध्य होना चाहिए। इसके विपरीत, जहांगीर आलम के वकील रजत ऐरन और राज कुमार सिंह ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि मकान मालिक ने अपनी आवश्यकताओं को उचित साक्ष्य के साथ सिद्ध किया है। उन्होंने कहा कि जहांगीर को अपने व्यवसाय के लिए तीनों दुकानों की आवश्यकता है और किसी किराएदार को इस मामले में दखल देने का अधिकार नहीं है।

कोर्ट का फैसला
हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान से सुना और मकान मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि संपत्ति का मालिक होने के बावजूद, किसी किराएदार को यह अधिकार नहीं हो सकता कि वह मकान मालिक के निर्णय में हस्तक्षेप करे। कोर्ट ने यह भी कहा कि मकान मालिक को अपनी संपत्ति के प्रयोग के बारे में निर्णय लेने का पूरा अधिकार है और किराएदार को इस फैसले को मानना होगा। कोर्ट ने यह आदेश दिया कि जुल्फिकार को अपनी किराए की दुकान को खाली करना होगा और हाई कोर्ट ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया। इस फैसले ने किराएदारों और मकान मालिकों के अधिकारों के बीच एक अहम अंतर को स्पष्ट किया है। जिसमें मकान मालिकों को अपनी संपत्ति के प्रयोग का पूर्ण अधिकार दिया गया है।

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