इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : शारीरिक संबंध से इनकार का दावा साबित नहीं, तलाक की याचिका खारिज

UPT | Allahabad High Court

Nov 10, 2024 23:15

मिर्जापुर निवासी डॉक्टर पति दिल्ली में चिकित्सा प्रैक्टिस करते हैं, जबकि उनकी डॉक्टर पत्नी, जिन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली है, बच्चों की देखभाल में लगी हैं। उनकी शादी 1999 में हुई थी और इस दंपति के दो बच्चे हैं।

Short Highlights
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मिर्जापुर के एक डॉक्टर पति द्वारा पत्नी के तलाक की मांग वाली अपील को खारिज कर दिया
  • कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी के बीच संबंधों की प्रकृति का निर्धारण न्यायालय का कार्य नहीं है
  • हाईकोर्ट ने न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनादी रमेश की खंडपीठ में पति की अपील को खारिज
Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मिर्जापुर के एक डॉक्टर पति द्वारा पत्नी के शारीरिक संबंध बनाने से इनकार के आधार पर तलाक की मांग वाली अपील को खारिज कर दिया। पति ने दावा किया था कि उनकी पत्नी लंबे समय से उनसे शारीरिक दूरी बनाए हुए है, जिसे उन्होंने क्रूरता का आधार मानते हुए तलाक की याचिका दाखिल की थी। परंतु, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर यह दूरी लंबे समय तक और लगातार जारी रहती है तभी इसे क्रूरता का आधार माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी के बीच संबंधों की प्रकृति का निर्धारण न्यायालय का कार्य नहीं है, और इसे साबित करने का दायित्व पक्षकारों पर है।

नौ साल बाद दाखिल की तलाक की अर्जी
मिर्जापुर निवासी डॉक्टर पति दिल्ली में चिकित्सा प्रैक्टिस करते हैं, जबकि उनकी डॉक्टर पत्नी, जिन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली है, बच्चों की देखभाल में लगी हैं। उनकी शादी 1999 में हुई थी और इस दंपति के दो बच्चे हैं, जिनमें से एक बच्चे की जिम्मेदारी मां के पास और दूसरे की पिता के पास है। पति ने 2008 में शादी के नौ साल बाद पारिवारिक न्यायालय में तलाक की अर्जी दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी पत्नी शारीरिक संबंधों से दूरी बना रही हैं और इसे धर्मगुरु के बहकावे का परिणाम बताया।

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तलाक की याचिका को किया खारिज
पत्नी ने पति के इन आरोपों का खंडन करते हुए स्पष्ट किया कि उनके बीच स्वस्थ संबंध रहे हैं, जिनके परिणामस्वरूप उनके दो बच्चे हुए हैं। पत्नी ने यह भी दलील दी कि यह साबित करता है कि उनके बीच कोई वास्तविक दूरी नहीं रही है। पारिवारिक न्यायालय ने पत्नी के तर्कों से सहमत होते हुए पहले ही पति की तलाक की याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद पति ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की, लेकिन वे इस बात को साबित करने में असफल रहे कि उनकी पत्नी ने वास्तव में लंबे समय तक उनसे संबंध रखने से इनकार किया था।



हाईकोर्ट का फैसला
हाईकोर्ट ने न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनादी रमेश की खंडपीठ में पति की अपील को खारिज करते हुए यह भी कहा कि पति-पत्नी के निजी संबंधों में न्यायालय की भूमिका सीमित होती है। कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी के संबंधों में अंतरंगता के स्तर का निर्धारण करना न्यायालय का कार्य नहीं है। यह मामला पति-पत्नी के बीच के संवेदनशील संबंधों का है, और इसमें क्रूरता का निर्णय केवल तभी लिया जा सकता है जब शारीरिक दूरी का सिलसिला लगातार और लंबे समय तक जारी रहे।

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